जानिए पहाड़ी लोगों की 10 दिलचस्प बातें
अगर आप पहाड़ी हैं..चाहे आप देश के किसी और राज्य में रह रहे हैं या फिर विदेशों में रह रहे हैं, तो आप ये 10 बातें कभी भी नहीं भूल सकते।
कंडाली(सिशौण), घुघुती-बासुती,देवभूमि,फूलदेई,बेड़ु पाको गीत,भारतीय सेना,माल्टे-नारंगी,रोटने (रोट)और अर्से(पूवे), सिंगोरी(बाल मिठाई)
अगर आप पहाड़ी हैं, तो ये 10 बातें आपकी जिंदगी को उन पलों में ज़रूर ले जाएंगी...जब आप अपने गांव की गोद में रहते थे। चलिए 2 मिनट में वो खास बातें भी जान लीजिए।
कंडाली की झपाक(कंडाली की सब्जी)
कंडाली(सिशौण)....नाम सुनकर आज भी कई लोगों की कुछ पुराने दिन याद आ जाते होंगे। घर में कभी मां की मार खाई होगी, कभी गुरुजी की, कभी गलती से ही कंडाली को छू लिया होगा...तो वो झमनाठ आज तक याद होगा। पहाड़ी को कंडाली की पता नहीं ? सवाल ही नहीं उठता।
कंडाली की सब्जी बहुत ही टेस्टी होती है कंडाली की सब्जी खाने से कई प्रकार की बीमारियां भी ठीक होती हैं इसमें विटामिन और प्रोटीन भरपूर मात्रा में होता है जैसे पथरी बवासीर इत्यादि
माल्टा, नारंगी और खट्टे नींबू (यहां नींबू साधारण नींबू से कहीं ज्यादा खट्टा होता है) खटाई
सर्दियों की गुनगुनी धूप में छत पर बैठ जाना। माल्टे-नारंगी की फांहे अलग कर एक थाली में सजाना। उसके ऊपर घर में सिलवटे का पिसा हुआ नमक मिलाकर तैयार होती थी खटाई। एक बार खा लीजिए तो आत्मा तक तृप्त हो जाती थी। खटाई मैं विटामिन सी भरपूर मात्रा में होता है खटाई को कहीं प्रकार से बनाया जाता है।
1 धनिया नमक को पीसकर खटाई के साथ
2 धनिया पुदीना नमक और हरी मिर्च और उसके साथ दही
3 चीनी धनिया पुदीना नमक और हरी मिर्च और उसके साथ दही
उसे तो कहीं प्रकार से बनाया जा सकता है कहीं प्रकार यूज़ किया जा सकता है
सेना या फौजी
बेशक और सबूत के साथ...भारतीय सेना से गढ़वाल और कुमाऊं रेजीमेंट का रिश्ता बहुत पुराना है। आज भारतीय सेना में सबसे ज्यादा भर्ती होने वाले जवान पहाड़ से हैं। इंडियन मिलिट्री एकेडमी से पास होने वाले सबसे ज्यादा ऑफिसर्स देवभूमि से हैं। हमने बचपन से A फॉर APPLE नहीं A फॉर ARMY को जिया है।
‘चा’ का स्वाद
चाय..पिलाते रहो। एक के बाद एक गिलास..घपाघप। गांव के एक घर से दूसरे घर में जाओ तो चाय। चाय ही चाय पिलाते रहिए पर पहाड़ी तृप्त नहीं होता। वैसे भी चाय को पहाड़ में चाय नहीं ‘चा’ या 'चाहा ' कहते हैं।
"कहीं भी आप रिश्तेदारी या कोई मेहमान घर पर आया तो सबसे पहले चाय दी जाती है"
"पहाड़ों पर किसी के घर में कोई अनजान व्यक्ति भी आ जाए तो उसको चाहे अवश्य पिलाते हैं जिसका कोई पैसा नहीं लेता"
शादी-त्यौहार..मांगल और बेड़ु पाको
पारंपरिक वाद्य यंत्रों और मांगल से शादी-त्योहार की शुरुआत। ये तो लगभग हर पहाड़ी के खून में है। कहीं भी रह रहे हों, बेड़ु पाको गीत गुनगुनाए बिना आनंद ही नहीं आता। खास तौर पर शादी का मौका हो तो बेड़ु पाको पर कदम थिरकना तय है।
उत्तराखंड की शादियों में मंगल गीतों का बड़ा प्रचलन है मंगल गीत शादी के शुरुआत से लेकर विदाई तक गाए जाते हैं
काफल की वो मिठास
पहाड़ी होकर भी काफल का स्वाद आपको याद नहीं? शायद हो ही नहीं सकता। इसका स्वाद लगभग हर किसी की जुंबा पर होता है। अब तो काफल पहाड़ों से उतरकर शहरों में भी बिकने लगा है, ऐसे में पहाड़ियों की काफल पर पहुंची भी आसान हो गई है।
"काफल पहाड़ का बड़ा स्वादिष्ट फल है " इसका नाम सुनते ही मुंह में पानी आ जाता है
काफल जब हरा होता है और उसमें घर का पिसा हुआ नमक के साथ खाने में जो स्वाद है वह हर किसी को बचपन में ले जाता है
रोटना और अरसा
शादियों का सीजन, त्यौहार की सीजन...रोटने और अर्से का स्वाद। गजब का टेस्ट। आज शहरों में आ रही हैं और बच्चे उसे खाकर खुश होते हैं। पहाड़ के बच्चों के लिए टेस्टी, स्वास्थ्यवर्धक का काम रोटना और अरसा ने ही किया है।
अरसा पहाड़ का एक प्रचलित मिठाई के रूप में जानी जाती हैं यहां काफी दिनों तक खराब नहीं होता है और इसका स्वाद काफी अच्छा होता है
"अरसा हो चाय अगर किसी पहाड़ी को स्वाद पूछो तो उसके मुंह में पानी आ जाता है"
बुंरास..बचपन का साथी
बुरांस के जूस का स्वाद तो कौन भूल सकता है। पहाड़ियों के लिए बचपन में रसना से बेहतर बुरांस ही रहा। फूलदेई के वक्त फ्योंली के साथ बुरांस जंगलों में खिले रहते हैं। उस दौरान पहाड़ की खूबसूरती देखने लायक होती है।
बुरांश का फूल पहाड़ों में बहुत अधिक मात्रा में मिलता है और इसका स्वाद बड़ा ही अच्छा होता है
कहीं लोग जब जंगल में लकड़ी लेने जाते हैं तो वहां बुरांश के फूलों का रस और फूलों का अपना भोजन बनाते हैं जिससे कई प्रकार की बीमारियां भी ठीक हो जाती हैं
बाल मिठाई-सिंगोरी..बचपन की चॉकलेट
बाल मिठाई और सिंगोरी से प्यार तो हर किसी को रहा है। आज भले ही हम कहीं भी रह रहे हों। बाल मिठाई और सिंगोरी का नाम सुनकर मंह में पानी ना आ जाए, ये हो नहीं सकता।
ट्विंकल-ट्विंकल नहीं घुघूती बासूती
गांव में अगर आपने अपना बचपन बिताया है, तो दादी-नानी के गीतों और कहानियों में घुघुती-बासुती ज़रूर होता था। हमारे लिए ट्विंकल-ट्विंकल लिटिल स्टार से बेहतर घुघुती-बासुती रहा है। शहरों की भीड़ में आज भी अगर ये कहीं बजे, तो कदम ठिठककर रुक जाते हैं। वास्तव में हमारे बचपन की लोरियों, गीतों, किस्से, कहानियों मे ये बातें घुलीमिली हैं। इसलिए हम पहाड़ी हैं।
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