ऋतुओं के स्वागत का त्यौहार: हरेला
उत्तराखंड की संस्कृति अपनी समृद्धता और विविधता के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ के तीज-त्यौहार हमारे पूर्वजों की वैज्ञानिक सोच और व्यवहारिक दृष्टिकोण को दर्शाते हैं। ऐसा ही एक विशेष पर्व है हरेला, जो ऋतुओं के परिवर्तन और नई शुरुआत का प्रतीक है।

हरेला पर्व का परिचय
हरेला, उत्तराखंड का एक प्रमुख लोकपर्व है, जो तीन प्रमुख ऋतुओं - शीत, ग्रीष्म, और वर्षा के आगमन को चिह्नित करता है। यह पर्व हिन्दी सौर पंचांग के अनुसार मनाया जाता है:
- शीत ऋतु का हरेला - आश्विन मास की दशमी।
- ग्रीष्म ऋतु का हरेला - चैत्र मास की नवमी।
- वर्षा ऋतु का हरेला - श्रावण मास की प्रथम तिथि।
हरेला पर्व कृषि प्रधान उत्तराखंड में ऋतुओं के स्वागत की परंपरा के रूप में मनाया जाता है।
श्रावण मास का हरेला और शिव परिवार
श्रावण मास का हरेला विशेष महत्व रखता है क्योंकि यह देवाधिदेव भगवान शिव और उनके परिवार को समर्पित है। इस दिन मिट्टी से शिव-परिवार की मूर्तियां, जिन्हें डिकारे कहते हैं, बनाई जाती हैं। इन मूर्तियों को प्राकृतिक रंगों से सजाया जाता है और उनकी पूजा की जाती है।
हरेला का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
हरेला शब्द का स्रोत हरियाली से है। यह पर्व उत्तराखंड की कृषि परंपरा से गहराई से जुड़ा हुआ है। हरेला से नौ दिन पहले सात प्रकार के अन्न (जैसे जौ, गेहूं, मक्का, गहत, सरसों, उड़द, और भट्ट) को रिंगाल की टोकरी में बोया जाता है। इसे एक विशेष प्रक्रिया द्वारा तैयार किया जाता है:
- मिट्टी और बीजों की परतें बनाई जाती हैं।
- इसे सूर्य की सीधी रोशनी से बचाकर रखा जाता है।
- प्रतिदिन पानी देकर सिंचाई की जाती है।
दसवें दिन हरेले को काटा जाता है और परिवार के बुजुर्गों द्वारा सभी सदस्यों को आशीर्वाद स्वरूप लगाया जाता है।
हरेला पर्व पर आशीर्वाद वचन
हरेला लगाते समय बुजुर्ग यह पंक्तियां कहते हैं:
"जी रये, जागि रये
धरती जस आगव, आकाश जस चाकव है जये
सूर्ज जस तराण, स्यावे जसि बुद्धि हो
दूब जस फलिये, सिल पिसि भात खाये,
जांठि टेकि झाड़ जाये।"
(अर्थ: दीर्घायु हो, धैर्यवान बनो, बुद्धिमान बनो, और हरियाली की तरह जीवन में समृद्धि लाओ।)
हरेला के दिन विशेष पकवान
इस दिन परिवार के सभी सदस्य साथ बैठकर भोजन करते हैं। खासतौर पर उड़द दाल के बड़े, पुये, और खीर बनाई जाती है।
हरेला और वृक्षारोपण
हरेला को उत्तराखंड में वृक्षारोपण त्यौहार के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन एक पौधा अवश्य लगाया जाता है। मान्यता है कि हरेला के दिन रोपे गए पौधों की जड़ें जल्दी और मजबूत होती हैं।
हरेला और सामाजिक परंपराएं
हरेला सामूहिक रूप से भी मनाया जाता है। गाँव के द्याप्ता थान (स्थानीय देवता के मंदिर) में हरेला बोया जाता है और सभी को आशीर्वाद दिया जाता है।
हरेला की विशेष मान्यताएं
- हरेले का आकार कृषि समृद्धि का संकेत माना जाता है।
- यदि किसी परिवार में मृत्यु हो जाए, तो हरेला बोया नहीं जाता, जब तक कि उसी दिन जन्म न हो।
- गाय के बच्चा देने पर भी हरेला बोया जा सकता है।
हरेला पर्व का संदेश
हरेला हमें प्रकृति के प्रति प्रेम और सम्मान का संदेश देता है। यह पर्व न केवल हरियाली का प्रतीक है, बल्कि सामाजिक और पारिवारिक एकता का भी प्रतीक है।
आप सभी को हरेला पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं!
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FAQs: ऋतुओं के स्वागत का त्यौहार - हरेला
1. हरेला त्यौहार क्या है?
हरेला उत्तराखंड का एक प्रमुख लोक पर्व है, जो ऋतुओं के आगमन का स्वागत करता है। यह मुख्य रूप से शीत, ग्रीष्म और वर्षा ऋतु की शुरुआत को चिह्नित करता है।
2. हरेला कब-कब मनाया जाता है?
हरेला साल में तीन बार मनाया जाता है:
- चैत्र मास (ग्रीष्म ऋतु के लिए)
- श्रावण मास (वर्षा ऋतु के लिए)
- आश्विन मास (शीत ऋतु के लिए)
3. हरेला शब्द का क्या अर्थ है?
हरेला शब्द "हरियाली" से लिया गया है, जो प्रकृति और हरितिमा का प्रतीक है।
4. हरेला पर्व का धार्मिक महत्व क्या है?
श्रावण मास के हरेले का विशेष धार्मिक महत्व है क्योंकि इस दिन शिव परिवार की मूर्तियां (डिकारे) बनाकर उनकी पूजा की जाती है।
5. हरेला कैसे मनाया जाता है?
हरेले के दिन:
- नौ दिन पहले रिंगाल की टोकरी में सात प्रकार के अन्न बोए जाते हैं।
- हरेले के दिन इन्हें काटकर तिलक, चंदन और अक्षत से पूजित किया जाता है।
- घर के सदस्यों को आशीर्वाद स्वरूप हरेला लगाया जाता है।
6. हरेला लगाने के पीछे क्या परंपरा है?
हरेला लगाने का अर्थ है व्यक्ति को जीवन में हरियाली, समृद्धि और दीर्घायु का आशीर्वाद देना। यह खासकर बुजुर्ग महिलाओं द्वारा किया जाता है।
7. हरेला का कृषि से क्या संबंध है?
हरेला अच्छी फसल और हरियाली की कामना का प्रतीक है। मान्यता है कि हरेले के तिनकों का आकार जितना बड़ा होगा, उस साल की फसल उतनी ही अच्छी होगी।
8. हरेला के दिन क्या-क्या पकवान बनाए जाते हैं?
इस दिन उड़द दाल के बड़े, पुये, खीर आदि पकवान विशेष रूप से बनाए जाते हैं।
9. सामूहिक रूप से हरेला कैसे मनाया जाता है?
कई गांवों में हरेला सामूहिक रूप से स्थानीय देवता (द्याप्ता थान) के मंदिर में मनाया जाता है। यहां सभी को आशीर्वाद स्वरूप हरेले के तिनके दिए जाते हैं।
10. हरेला और वृक्षारोपण का क्या संबंध है?
श्रावण मास के हरेला पर्व पर घर में हरेला पूजने के बाद पेड़-पौधे लगाने की परंपरा है। इसे "वृक्षारोपण त्यौहार" भी कहा जाता है।
11. हरेले के साथ कौन-सी मान्यताएं जुड़ी हैं?
यदि हरेले के दिन किसी परिवार में मृत्यु हो जाए, तो उस परिवार में हरेला तब तक नहीं बोया जाता जब तक उसी दिन किसी का जन्म न हो जाए।
12. हरेला पर्व उत्तराखंड की संस्कृति में क्यों खास है?
हरेला उत्तराखंड की कृषि पर आधारित संस्कृति, हरियाली, और शिव परिवार की पूजा के कारण अत्यंत महत्वपूर्ण है।
13. क्या हरेले के दिन वृक्षारोपण का विशेष महत्व है?
जी हां, हरेले के दिन पेड़ लगाने को शुभ माना जाता है। यह पर्यावरण संरक्षण और हरियाली बढ़ाने का संदेश देता है।
14. हरेले के दौरान बोए गए बीज कौन-कौन से होते हैं?
हरेले में मुख्य रूप से जौ, गेहूं, मक्का, गहत, सरसों, उड़द और भट्ट के बीज बोए जाते हैं।
15. हरेले से संबंधित प्रमुख आशीर्वाद पंक्तियां क्या हैं?
हरेला लगाते समय यह आशीर्वाद दिया जाता है:
"जी रये, जागि रये, धरती जस आगव, आकाश जस चाकव है जये।"
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