पहाड़ी कविता pahadipeople कि यहा कविता ग्रीष्म बसंत या मौसम जाड़ों मे
तुम जाना उन हुस्न पहाड़ों मे I
ग्रीष्म बसंत या मौसम जाड़ों मे II
जब पेड़ ढूठ सब हिलते है,
पर्वत अम्बर से मिलते है I
ब्रह्मकमल जहां खिलते है,
सब अपनेपन से मिलते है II
तुम जाना उन हुस्न पहाड़ों मे I
ग्रीष्म बसंत या मौसम जाड़ों मे II
क्या रखा शहर-ए-चार दीवारी मे,
जब दुनिया हिल गई महामारी मे I
शाक सब्जियां घर की हर क्यारी मे,
जंहा भोलापन हर बेटी-"ब्वारी"मे II
तुम जाना उन हुस्न पहाड़ों मे I
ग्रीष्म बसंत या मौसम जाड़ों मे II
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