पहाड़ों वाली शायरी 2 line | देवभूमि उत्तराखंड पर शायरी | पहाड़ों वाली शायरी love Garhwal - kumauni

पहाड़ों वाली शायरी 2 line | देवभूमि उत्तराखंड पर शायरी | पहाड़ों वाली शायरी love

चहचहाना पंछियों का, सादगी भरे लोगों के चेहरे
देवभूमि यूँ ही नहीं कहते इन्हें, भगवान भी यहाँ आकर हैं ठहरे।
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पहाड़ों में छाए हुए घनघोर बादल, परिंदों की मधुर-मधुर सी चहचहाहट
नदियों की लहरें आवाज़ें करती हैं कलकल, खुशियाँ ही खुशियाँ बसती हैं यहाँ हर पल।
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गिरना, उठना, संभल कर चलना
टेड़े-मेड़े से रास्ते पहाड़ों के, सिखाते हैं आगे बढ़ते रहना।
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पहाड़ी लोग रोज़गार की तलाश में, शहर जाते हैं।
और शहरी लोग शुद्ध साँसें लेने पहाड़ आते हैं।
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पहाड़ों वाली शायरी 2 line

पहाड़ों के निवासियों का जीवन है तपस्या,
पहाड़ों पर रहना है एक विकट समस्या।
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पहाड़ में रहने वालों की, मुश्किलें होती हैं पहाड़ों-सी
फिर भी मुस्कुराहटें हैं, इनकी प्यारी-सी।
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पहाड़ों वाली शायरी 2 line

बर्फीली चोटियों पर सूरज की लाली,
पहाड़ की है हर बात निराली।
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मंगल ध्वनियाँ गूँजतीं, यहाँ सुबह और शाम
पग-पग पर बसे हुए, तीर्थ और स्वर्ग तुल्य चारों धाम।
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पहाड़ की सुहानी हवाएं, करती हैं मदहोश
पाँव जमीं पर न रहें, भर देतीं इतना जोश।
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प्रकृति सिखाती हमें, जीने का सलीका
धूप हो या बरसात, फूलों-सा खिलने का तरीका।
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बादलों के साये में, पर्वतों के आँचल में
राहतें बसती हैं, पहाड़ों की पनाहों में।
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पहाड़ की ओट से निकलता,
पहाड़ की ओट में ही छिपता
ऐसा लगता मानों पहाड़ के साये में ही सूरज,
खुद को महफूज समझता।
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बंजर भूमि में भी, लाती हैं हरियाली
ये पहाड़ की नारी, मेहनत से न डरने वाली।

पहाड़ों वाली शायरी 2 line

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हर तरफ शांति और सुकून,
खूबसूरत पहाड़ों की वादियाँ
हरे-भरे बुग्याल यहाँ,
फूलों की हैं घाटियाँ।
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जो हिम्मत कभी न हारी है,
ये पहाड़ की ही नारी है।
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घमण्ड नहीं संस्कार दिखाए जाते है,
कोई पूछे तो कहना हम पहाड़ से आते है !!
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घर ज़मीं पे है पर हम जन्नत में रहते हैं,
हमे गर्व है कि हम उत्तराखंड में रहते हैं 🥀🥀
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स्वर्ग छोड़कर शहरों में बस गए,
अब मंजर ये है की ग्रीन व्यू के लिए तरस गए !!
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गर्मियों में हो, या जाड़ो में,
बहुत शुकून मिलता है उत्तराखंड की पहाड़ो में !
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देवो का जहाँ वास है, नदियों का जहाँ उपकार है,
वादिया जहाँ की खूबसूरत हैं, मेरा घर “उत्तराखंड” वही है !!
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वक्त की दौड़ से भी तेज दौड़ रहा हूँ मैं
जो मिल चुका था, स्वर्ग सा वही छोड़ रहा हूँ मैं
क्या किस्मत लिखने में कमी कर दी तूने,
न चाहकर भी अपना पहाड़ छोड़ रहा हूँ मैं!
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हम जहां के रहने वाले हैं,
वहाँ मौसम रंग बदलता है, वहाँ के लोग नहीं,
(जय देवभूमि उत्तराखंड ) !!
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पहाड़ों वाली शायरी 2 line

उत्तराखंड सी हो गई जिंदगी,
खूबसूरत तो बहुत है, पर आपदाये भी कम नहीं है !!
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गांव की हवा और शहर की दवा,
बराबर काम करती हैं। ❤️😊
गांव में जन्म नसीब से मिलता है।
शहर तो मजबूरी का नाम है। 🤷‍♂️
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देवभूमि उत्तराखंड पर शायरी | पहाड़ों वाली शायरी

एक जमाना वह था जब हम ,आग मॉँग कर लाते थे ।
उसी आग को फूँक-फूँक कर घर की आग जलाते थे ।।
पढ़ने के लिए लम्पू था सहारा , कभी लालटेन जलाते थे ।
उसकी बत्ती घुमा घुमा कर , मुश्किल से काम चलाते थे ।।
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उम्मीद छोड़ दी हमने कुमाऊ – गढ़वाल से,
बहु लेकर आना पड़ेगा अब नेपाल से !!
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शहर जाकर बस गया हर शख्स पैसों के लिए
ख्वाहिशें ने हमारे पूरे गांव को खाली कर दिया।

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