उत्तराखंड की पर्वतीय नारी की दिनचर्या का वर्णन, एक कविता के रूप में (भाषा - कुमाऊँनी)🌲🌲
बैसाखा को म्हैना लायो,
ग्यों जौऊ की बारा लो !
सर - सरी बयौ बगैंनी,
काम धाणीं की मारा लो !!
रत्तब्यांणें की बेला मजी,
झट् खुलिंनी आँखि लो!
चा कितैली चुलूं मां धरी,
भबरांणी छौ आग लो !!
ठंडू माठू छू हाव् चलैणी,
पंछी बिजी घोल लो !
खुली गैनीं कपाट गोठ,
गोरु भैंसी रम्मांण लो !!
धारा पन्यारों भीड़ जुटी,
दीदी भुल्यों की सैर लो !
ताम् गगैरी कांख दबै,
बाटों मां चैल- पैल लो !!
रात ब्याई अर सूर्ज चढ़ी,
भुर - भूरु उज्याउ लो !
लाई की भुजी,मडुवै रव्टी,
बांधी कल्यो अर पांणी लो,
पैटी गैनी स्यारों मजी,
बौ - ब्वारियों की टोली लो !!
मीठी मीठी बथ लगौनीं,
छुंण्कयोंनी दथुली लो !
कमर बांधी ज्योड़ी भुल्यों,
छटकोंनी धमेली लो !
पौंछी गिन ग्योंवाड़ मजी,
ग्यों स्यारा पैंनाणां लो !!
क्वे दीदी छन ग्यों काटैणी,
क्वे पूवा बांधैणी लो !
क्वे भुली छन भारी लगौणी,
क्वे दाथी पल्यौंणी लो !!
नई ब्वारी छन घात सारैंणी,
सासु जी की मौज लो !
घर मां बैठी बैठी फूकैंणी,
ह्वका तमांखू आग लो !!
ब्याल पड़ीगे स्यारों मां,
अब सूर्ज चढ़ी धार लो !
सर सरी बयाउ बगैणी,
काम धाणी की मार लो !!
"हिट दीदी आब भोल काटूलों,
ताल स्यारों का धाण लो !
घर जै औंला, पटै बिसौंला,
गोरु होला रम्मांण लो !!"
बैसाखा को म्हैना लायो,
ग्यों जौऊ की बारा लो !
सर - सरी बयौ बगैंनी,
काम धाणीं की मारा लो !!
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