जय माँ नंदा देवी: नंदा देवी राजजात यात्रा का संपूर्ण विवरण
नंदा देवी राजजात यात्रा का महत्व
नंदा देवी राजजात यात्रा को विश्व की सबसे लंबी और कठिन पैदल धार्मिक यात्रा माना जाता है। यह यात्रा माँ नंदा को उनके ससुराल भेजने की परंपरा है। लोक-इतिहास के अनुसार, माँ नंदा देवी गढ़वाल के राजाओं और कुमाऊं के कत्युरी राजवंश की ईष्टदेवी थीं। माँ नंदा को 'राजराजेश्वरी', 'शुभानंदा', 'शिवा' और 'नंदिनी' जैसे नामों से पुकारा जाता है।
नंदा देवी की यात्रा के प्रकार
- वार्षिक यात्रा (छोटी जात): हर वर्ष अगस्त-सितंबर में होती है। यह कुरुड़ गाँव से शुरू होकर वेदनी कुंड तक जाती है।
- राजजात (बड़ी जात): हर 12 वर्ष या उससे अधिक समय के अंतराल पर आयोजित की जाती है। राजजात यात्रा लगभग 280 किलोमीटर की पैदल यात्रा है, जो चमोली जिले के नौटी गाँव से शुरू होकर होमकुंड तक जाती है।
लोक मान्यता और यात्रा का इतिहास
माँ नंदा देवी को भगवान शिव की पत्नी पार्वती का रूप माना जाता है। लोककथा के अनुसार, माँ नंदा अपने मायके (चमोली) में कुछ समय के लिए रुकीं, लेकिन 12 वर्षों तक ससुराल नहीं लौट सकीं। इसलिए, यह यात्रा उन्हें आदरपूर्वक कैलाश पर्वत (भगवान शिव के निवास स्थान) भेजने के लिए की जाती है।
7वीं शताब्दी में गढ़वाल के राजा शालिपाल ने इस यात्रा की परंपरा शुरू की और राजा कनकपाल ने इसे भव्य स्वरूप दिया।
यात्रा का शुभारंभ और प्रमुख परंपराएँ
यात्रा की अगुवाई चौसिंग्या खाड़ू (चार सींग वाला भेड़) करता है। मान्यता है कि यह खाड़ू हिमालय में लुप्त होकर माँ नंदा देवी तक संदेश पहुँचाता है।
यात्रा का नेतृत्व नौटी गाँव के राजगुरु और राजवंश के प्रतिनिधि करते हैं।
20 पड़ावों का विवरण: माँ नंदा देवी की पवित्र यात्रा
1. ईड़ाबधाणी:
यात्रा नौटी गाँव से शुरू होती है और श्रद्धालुओं का पहला पड़ाव ईड़ाबधाणी होता है। यहाँ माँ नंदा का भव्य स्वागत ढोल-दमाऊं और वाद्य यंत्रों के साथ किया जाता है।
2. नौटी:
ईड़ाबधाणी से यात्रा नौटी लौटती है, जहाँ रात्रि विश्राम के दौरान माँ नंदा जागरण होता है।
3. कांसुवा:
कांसुवा में राजवंश के कुंवर माँ नंदा का स्वागत करते हैं। यहाँ भराड़ी देवी और कैलापीर देवता के मंदिर विशेष आकर्षण का केंद्र हैं।
4. सेम:
यात्रा सेम गाँव पहुँचती है। यहाँ महादेव घाट का महत्व है। गैरोली और चमोला गाँव की छंतोलियाँ (देवी मूर्तियाँ) यहाँ शामिल होती हैं।
5. कोटी:
यहाँ पर देवी की विशेष कोटिश प्रार्थना होती है।
6. भगोती:
भगोती माँ नंदा के मायके का अंतिम पड़ाव है।
7. कुलसारी:
यह पहला पड़ाव है जहाँ माँ नंदा देवी अपनी ससुराल की यात्रा की शुरुआत करती हैं।
8. चेपड्यूं:
थराली में बधाण की राजराजेश्वरी की पूजा होती है।
9. नंदकेशरी:
यहाँ से कुमाऊं और कुरुड़ की डोलियाँ राजजात में शामिल होती हैं।
10. फल्दियागाँव:
यहाँ विशेष पूजा के बाद मुंदोली की ओर यात्रा आगे बढ़ती है।
11. मुंदोली:
मुंदोली में भक्तजन झौड़ा गीत गाकर माँ नंदा की आराधना करते हैं।
12. वाण:
यह अंतिम बस्ती वाला पड़ाव है।
13. गैरोली पातल:
यह पहला निर्जन पड़ाव है।
14. वेदनी कुंड:
वेदनी कुंड माँ नंदा के पवित्र स्नान का स्थान है।
15. पातर नचौनियाँ:
यहाँ माँ नंदा की विराट नृत्य की परंपरा है।
16. रूपकुंड:
यहाँ पौराणिक नरकंकालों का रहस्य देखने को मिलता है।
17. शिला समुद्र:
यह स्थान अपने विशाल पत्थरों और प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है।
18. होमकुंड:
यह यात्रा का मुख्य और अंतिम पड़ाव है। यहाँ माँ नंदा देवी की पूजा-अर्चना होती है।
19. सुतोल:
होमकुंड से लौटते समय सुतोल में विश्राम होता है।
20. नंदप्रयाग:
यह यात्रा का अंतिम पड़ाव है, जहाँ माँ नंदा को ससुराल पहुँचाने का प्रतीक रूप में कार्य पूरा होता है।
संस्कृति और विरासत का प्रतीक
नंदा देवी राजजात यात्रा उत्तराखंड की सांस्कृतिक और धार्मिक एकता का अद्भुत उदाहरण है। गढ़वाल और कुमाऊं दोनों क्षेत्रों के श्रद्धालु इसमें सम्मिलित होते हैं।
यह यात्रा न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है बल्कि प्रकृति प्रेमियों, ट्रैकिंग के शौकीनों और इतिहासकारों के लिए भी विशेष अनुभव है।
नंदा देवी राजजात यात्रा का सार
माँ नंदा देवी राजजात यात्रा हमें धार्मिक आस्था, सांस्कृतिक एकता, और प्राकृतिक सौंदर्य का संगम दिखाती है। यह यात्रा माँ नंदा के साथ-साथ उत्तराखंड की अद्भुत परंपरा का परिचायक है।
"जय माँ नंदा देवी!"
आपका अनुभव कैसा रहा?
यदि आपने नंदा देवी राजजात यात्रा की है, तो अपने अनुभव हमारे साथ साझा करें। उत्तराखंड की इस महान परंपरा को संजोने और फैलाने में आपका योगदान अनमोल है।
माँ नंदा देवी राजजात यात्रा के लिए FAQs (Frequently Asked Questions)
1. माँ नंदा देवी राजजात यात्रा क्या है?
उत्तर:
माँ नंदा देवी राजजात यात्रा उत्तराखंड की एक भव्य धार्मिक और सांस्कृतिक यात्रा है। यह यात्रा माँ नंदा देवी को उनके ससुराल कैलाश भेजने के लिए आयोजित की जाती है और इसे विश्व की सबसे लंबी पैदल यात्रा माना जाता है।
2. माँ नंदा देवी को कौन माना जाता है?
उत्तर:
माँ नंदा देवी को भगवान शिव की पत्नी पार्वती का स्वरूप या बहन माना जाता है। उन्हें गढ़वाल और कुमाऊं के राजवंशों की कुलदेवी के रूप में पूजा जाता है।
3. नंदा देवी राजजात यात्रा कब और कितने समय बाद होती है?
उत्तर:
नंदा देवी राजजात यात्रा हर 12 साल में एक बार आयोजित की जाती है। हालांकि, किसी विशेष परिस्थिति में इसमें समयांतराल बढ़ सकता है। पिछली यात्रा 2014 में हुई थी।
4. यात्रा की शुरुआत कहां से होती है?
उत्तर:
माँ नंदा देवी राजजात यात्रा की शुरुआत चमोली जिले के नौटी गांव से होती है। इसके अलावा अन्य क्षेत्रों जैसे कुरुड़ मंदिर और बधाण की डोलियाँ भी यात्रा में शामिल होती हैं।
5. नंदा देवी राजजात यात्रा की कुल दूरी कितनी है?
उत्तर:
यह यात्रा लगभग 280 किलोमीटर लंबी होती है। यह यात्रा घने जंगलों, दुर्गम चोटियों, पथरीले रास्तों और बर्फीले पहाड़ों से होकर गुजरती है।
6. चौसिंगा खाडू (चार सींगों वाला भेड़) का क्या महत्व है?
उत्तर:
चौसिंगा खाडू (चार सींग वाला भेड़) माँ नंदा देवी की यात्रा की अगुवाई करता है। श्रद्धालु उसकी पीठ पर भेंट, गहने और श्रृंगार सामग्री रखते हैं। होमकुंड में पूजा के बाद वह हिमालय की ओर प्रस्थान कर जाता है।
7. माँ नंदा देवी की यात्रा कितने पड़ावों से होकर गुजरती है?
उत्तर:
नंदा देवी राजजात यात्रा कुल 20 प्रमुख पड़ावों से होकर गुजरती है। इनमें से कुछ प्रसिद्ध पड़ाव हैं - ईड़ाबधाणी, कांसुवा, सेम, भगोती, कुलसारी, चेपड्यूं, नंदकेशरी, वाण और रूपकुंड।
8. नंदा देवी राजजात यात्रा का सांस्कृतिक महत्व क्या है?
उत्तर:
यह यात्रा गढ़वाल और कुमाऊं क्षेत्रों की सांस्कृतिक एकता का प्रतीक है। यह यात्रा लोक संस्कृति, परंपरा, भक्ति और जनमानस के बीच सामूहिक भावना का प्रदर्शन करती है।
9. नंदा देवी राजजात यात्रा के दौरान कौन-कौन से प्रमुख स्थल आते हैं?
उत्तर:
यात्रा के प्रमुख स्थल इस प्रकार हैं:
- ईड़ाबधाणी
- कांसुवा
- सेम
- भगोती
- कुलसारी
- नंदकेशरी
- वाण
- रूपकुंड
- होमकुंड
10. नंदा देवी राजजात यात्रा की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि क्या है?
उत्तर:
7वीं शताब्दी में गढ़वाल के राजा शालिपाल ने माँ नंदा देवी को मायके से कैलाश भेजने की परंपरा शुरू की। बाद में राजा कनकपाल ने इस यात्रा को भव्य रूप दिया। तब से इस यात्रा का आयोजन 12 वर्षों के अंतराल पर किया जाता है।
11. इस यात्रा में कौन-कौन लोग शामिल होते हैं?
उत्तर:
इस यात्रा में गढ़वाल और कुमाऊं क्षेत्रों से हजारों श्रद्धालु, स्थानीय लोग, देवी की डोलियाँ, छंतोलियाँ और भक्तजन शामिल होते हैं।
12. यात्रा के दौरान किस प्रकार के विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं?
उत्तर:
यात्रा के दौरान प्रत्येक पड़ाव पर माँ नंदा देवी की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। ढोल-दमाऊं, पौराणिक वाद्य यंत्रों और भजन-कीर्तन से माहौल भक्तिमय हो जाता है।
13. माँ नंदा देवी की वार्षिक जात और राजजात में क्या अंतर है?
उत्तर:
- वार्षिक जात: यह प्रतिवर्ष अगस्त-सितंबर माह में होती है और वेदनी कुंड तक जाती है।
- राजजात: यह 12 वर्ष या उससे अधिक समयांतराल में आयोजित की जाती है और होमकुंड तक जाती है।
14. नंदा देवी राजजात यात्रा का अंतिम पड़ाव कौन-सा है?
उत्तर:
माँ नंदा देवी राजजात यात्रा का अंतिम पड़ाव होमकुंड है। यहाँ विशेष पूजा के बाद चौसिंगा खाडू को विदा किया जाता है।
15. नंदा देवी राजजात यात्रा के दौरान कौन-से प्रमुख प्राकृतिक और ऐतिहासिक स्थल देखे जा सकते हैं?
उत्तर:
यात्रा के दौरान श्रद्धालु इन प्रमुख स्थलों का दर्शन कर सकते हैं:
- रूपकुंड: प्राचीन नरकंकालों के लिए प्रसिद्ध।
- वेदनी कुंड: सुंदर और पवित्र झील।
- शिला समुद्र: दुर्गम और खूबसूरत स्थल।
- होमकुंड: माँ नंदा का अंतिम पूजा स्थल।
16. यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं को क्या सावधानियां बरतनी चाहिए?
उत्तर:
- कठिन ट्रैकिंग के लिए खुद को मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार करें।
- मौसम के अनुकूल कपड़े और जूते साथ रखें।
- रास्ते में पानी और जरूरी सामान साथ ले जाएं।
- समूह में यात्रा करें और स्थानीय गाइड की मदद लें।
17. क्या नंदा देवी राजजात यात्रा में केवल उत्तराखंड के लोग शामिल होते हैं?
उत्तर:
नहीं, इस यात्रा में देश-विदेश से श्रद्धालु आते हैं। यह यात्रा न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक और पर्यटक आकर्षण का केंद्र भी है।
18. यात्रा के आयोजन में कौन-कौन सी संस्थाएँ शामिल होती हैं?
उत्तर:
यात्रा का आयोजन स्थानीय प्रशासन, गढ़वाल मंडल विकास निगम (GMVN), और स्थानीय ग्रामीणों के सहयोग से किया जाता है।
19. क्या यात्रा में महिलाओं और बच्चों के शामिल होने की अनुमति है?
उत्तर:
हाँ, महिलाएं और बच्चे भी इस यात्रा में शामिल हो सकते हैं, लेकिन यात्रा की कठिनाइयों को ध्यान में रखते हुए सावधानी बरतनी चाहिए।
20. माँ नंदा देवी राजजात यात्रा के दौरान किस प्रकार के धार्मिक गीत और गाथाएं गाई जाती हैं?
उत्तर:
यात्रा के दौरान नंदा जागरी (माँ नंदा की गाथा गाने वाले गायक) विशेष गीत गाते हैं। इसके अलावा झौड़ा और छपेली जैसे पारंपरिक गीत गाए जाते हैं।
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