✍ *गढवली मा कविता* परदेस और पहाड़ी गांव का फर्क दिखाया है इस कविता द्वारा
परदेस और पहाड़ी गांव का फर्क दिखाया है इस कविता द्वारा |
ये दिल्ली का बाजार मा
पैसों का बुखार मा
कुड़ी पुंगड़ी छोड़ के
बैठयां छो उडियार मा
किराया कु कमरा
न जिंगला न गुठियार च
गैरों की भीड़ मा
न गाँव वालों की बहार च
न दगड्यों की भीड़ च
न मच्छों कु ठुंगार च
न टिचरी कु पव्वा च
न देशी की बहार च
मतलबी छिन लोग इख
यकुली छो परिवार मा
न ब्वेई बाबा कु दुलार च
न भे बन्दों कु प्यार च
सगोडा पतोडा छुडणा की
सजा मिलणी आज
खेती बड़ी छोड़ी की
रकरयादूँ छो बाजार मा
रूखी सुखी खान्दु छो
आम का आचार मा ये दिल्ली का बाजार मा......
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