अपनी जन्मभूमि उत्तराखंड के लिए वर्षो पहले लिखी एक कविता .....

 अपनी जन्मभूमि उत्तराखंड के लिए वर्षो पहले लिखी एक कविता .....

अपनी जन्मभूमि उत्तराखंड के लिए वर्षो पहले लिखी एक कविता .....


हे मातृभूमि !  है  तुझे  नमन

है  देव भूमि  तेरा  नित वंदन


कहीं हिमालय की जलधारा

कहीं  अनंत का है सम्मोहन

कही शिखर तन  कर देते हैं

संकल्पों  को  दृढ़   उद्बोधन


कहीं  जूझती मातृ शक्ति भी

जीवन  के गुरुतर  प्रागंण में

यहीं  झुके  हैं शीश  करोड़ों

आदि देव को  महानमन  में


मर्यादाये  इस  देवभूमि  की

हैं   गंगा  यमुना   सा  पावन

हिम  शिखरों  सा  पावनतर

तेरे  जन - जन का  अंतर्मन

अपनी जन्मभूमि उत्तराखंड के लिए वर्षो पहले लिखी एक कविता .....


मूल्यों को परिभाषित करता

ऋषियों सा तेरा  त्यागी मन

भौतिक  अर्थ  न्यून भले  हो

ज्ञान  पूर्ण  तेरे  विद्वत्   जन


नहीं  दरिद्रता   से   हम  हारे 

चट्टानों  से  लड़े  सबल  बन

पुरुषार्थी  बन  जूझे   हरदम

मानस कभी न बने अकिंचन


झंझाये   चाहे    उठती    हो

डोले  चाहे   धरती  का  मन

ऋतुचक्रों में  कभी  न रुकते

देवभूमि  के हम  पर्वत  जन


किंतु आज  विवश  हुये  हम

करते हर  दिन वहाँ  पलायन

जहां   रोटियों  के  घर्षण  में

आहत पल पल है मानवमन


सामर्थ्यहीन  बन कर कब ये

रुक   पायेगा   महा पलायन 

यदि   तन -मन  में बसता  है

शहरी  का  सत्ता   आकर्षण


स्वप्नो  को  अपनी   माटी  में

आकार  नया दें  साधक बन

है नया सूर्य  आवाहन करता 

घर को लौटो अब समर्थ बन

©दिनेश कांडपाल

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