गोलू देवता: उत्तराखंड के न्यायप्रिय लोकदेवता
उत्तराखंड की धार्मिक और सांस्कृतिक धारा में गोलू देवता का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह देवता न केवल कुमाऊं क्षेत्र के प्रत्येक घर में पूजा जाते हैं, बल्कि उनके प्रति श्रद्धा और भक्ति पूरे प्रदेश में महसूस की जाती है। गोलू देवता के मुख्य मंदिर उत्तराखंड के चार प्रमुख स्थानों—चंपावत, चितई, घोड़ाखाल, और कडोलिया—में स्थित हैं, जहाँ श्रद्धालु हर वर्ष दर्शन करने आते हैं।
गोलू देवता की पूजा के पीछे एक दिलचस्प इतिहास और लोककथाएँ भी जुड़ी हुई हैं। गोलू देवता को न्यायप्रियता के प्रतीक के रूप में जाना जाता है। कहा जाता है कि गोलू देवता स्वयं न्याय देने में विश्वास रखते थे और उनके दरबार में लोग अपनी समस्याओं के समाधान के लिए जाते थे। इनकी न्यायप्रियता के कारण ही लोग उन्हें "गोलू राजा" के रूप में पूजते हैं।
गोलू देवता की कथा
गोलू देवता की प्रसिद्धि एक ऐतिहासिक कथा से जुड़ी है, जो उनके न्यायप्रियता के कारण प्रचलित हुई। कुमाऊं क्षेत्र के चंपावत में एक राजा थे—राजा झालुराई। उनका राज खूब फला-फूला था, लेकिन उनके जीवन में एक बड़ा दुख था। वे संतानहीन थे, और यही बात उन्हें हमेशा कचोटती रहती थी। राजा ने एक दिन अपने दरबारी ज्योतिषी से सलाह ली। ज्योतिषी ने उन्हें भैरव पूजा करने की सलाह दी और कहा कि इसके बाद उन्हें संतान सुख प्राप्त होगा।
राजा ने भैरव पूजा की और भगवान भैरव ने उन्हें दर्शन दिए। भैरव ने राजा को बताया कि उनके भाग्य में संतान सुख नहीं है, लेकिन वे खुद राजा के घर जन्म लेंगे, बशर्ते राजा आठवीं शादी करें। राजा ने भैरव की बात मानी और आठवीं रानी को प्राप्त किया। यह रानी कलिंगा थी, जो न केवल अत्यंत रूपवती थी, बल्कि धार्मिक भी थी।
सात सौतों की साजिश और बालक का चमत्कार
राजा झालुराई और रानी कलिंगा की शादी के बाद उनकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था, जब रानी गर्भवती हुईं। लेकिन सात सौतों ने इसे सहन नहीं किया और उन्होंने रानी कलिंगा के गर्भ को नष्ट करने की साजिश रची। वे उसे तरह-तरह से परेशान करने लगे और अंत में, एक दिन उस बालक को लोहे के संदूक में बंद करके काली नदी में बहा दिया।
हालांकि, यह बालक किसी सामान्य बच्चे की तरह नहीं था। संदूक पानी में तैरते हुए गोरीहाट तक पहुंचा, जहाँ एक मछुआरे ने उसे ढूंढ़ा। मछुआरा और उसकी पत्नी बालक को अपना मानकर उसे लालन-पालन करने लगे। समय के साथ, बालक ने अपने जन्म की कथा जानने की कोशिश की और आखिरकार, वह राजा के महल तक पहुंचा।
वहां उसने सात रानियों को उनकी कुकृत्यों का अहसास दिलाया और उनके मुंह से उनकी कुकृतियों का स्वीकार भी करवाया। यह घटना गोलू देवता की न्यायप्रियता और उनके अद्वितीय कार्यों की ओर इशारा करती है।
गोलू देवता के प्रमुख मंदिर
- चंपावत का गोलू देवता मंदिरचंपावत में स्थित गोलू देवता का मंदिर बहुत प्रसिद्ध है। यहाँ पर श्रद्धालु अपने दुख-दर्द और समस्याओं के समाधान के लिए गोलू महाराज से आशीर्वाद प्राप्त करने आते हैं।
- चितई का गोलू देवता मंदिरचितई, जो अल्मोड़ा जिले में स्थित है, गोलू देवता का एक और प्रमुख मंदिर है। यह मंदिर भी श्रद्धालुओं के लिए एक प्रमुख आस्था का केंद्र है, जहाँ वे न्याय की प्राप्ति के लिए पूजा अर्चना करते हैं।
- घोड़ाखाल का गोलू देवता मंदिरनैनीताल जिले के घोड़ाखाल में स्थित यह मंदिर भी गोलू देवता के प्रति आस्था का प्रतीक है। यहाँ भी लोग अपनी समस्याओं के समाधान के लिए आते हैं।
- कडोलिया मंदिरपौड़ी गढ़वाल में स्थित कडोलिया मंदिर भी गोलू देवता का एक प्रमुख स्थान है।
न्याय के देवता गोलू महाराज की जीवन कथा
गोलू देवता का इतिहास उनकी न्यायप्रियता और लोक सेवा की ओर इशारा करता है। वे जल्द न्याय देने में विश्वास रखते थे और उनका यह गुण उन्हें जनमानस में एक आदर्श देवता बना देता है। हर गांव में गोलू देवता के मंदिर स्थापित होते हैं, जो उनके प्रति श्रद्धा और सम्मान का प्रतीक हैं।
गोलू देवता के मंदिरों में श्रद्धालु न केवल पूजा करते हैं, बल्कि अपनी समस्याओं के समाधान के लिए गोलू महाराज से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। उनके दरबार में आए लोग अपने दुखों का निवारण पाकर संतुष्ट होते हैं और गोलू देवता की जय-जयकार करते हुए लौटते हैं।
गोलू देवता के बारे में सामान्य प्रश्न
1. गोलू देवता कौन हैं?
गोलू देवता उत्तराखंड के प्रमुख लोकदेवता हैं, जिन्हें न्यायप्रिय और कृष्णावतारी के रूप में पूजा जाता है। इनकी पूजा कुमाऊं मंडल और पौड़ी गढ़वाल में विशेष रूप से की जाती है।
2. गोलू देवता की प्रमुख पूजा स्थल कहां हैं?
गोलू देवता के प्रमुख मंदिर उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में चम्पावत, चितई, घोड़ाखाल, और पौड़ी गढ़वाल में कंडोलिया में स्थित हैं।
3. गोलू देवता को क्यों पूजा जाता है?
गोलू देवता को उनके न्यायप्रिय स्वभाव के लिए पूजा जाता है। इतिहास में माना जाता है कि गोलू देवता ने अपनी दरबार में सभी की समस्याओं का समाधान किया और उन्हें न्याय दिलाया, इसलिए लोग उन्हें न्याय प्राप्त करने के लिए पूजते हैं।
4. गोलू देवता की पूजा कैसे की जाती है?
गोलू देवता की पूजा में मुख्य रूप से उनकी तस्वीर या प्रतिमा को घरों में स्थापित किया जाता है। श्रद्धालु उनके सामने दीपक जलाते हैं और अपनी इच्छाओं और समस्याओं के समाधान के लिए प्रार्थना करते हैं।
5. गोलू देवता की कथा क्या है?
गोलू देवता की कथा के अनुसार, राजा झालुराई ने संतान प्राप्ति के लिए भैरव पूजा की थी, और भैरव ने राजा से कहा था कि वह आठवीं शादी करेंगे और उनके घर ही जन्म लेंगे। गोलू देवता का जन्म कलिंगा नामक रानी से हुआ था और उनके जीवन में कई चमत्कारी घटनाएं घटीं।
6. गोलू देवता की पूजा से क्या लाभ होता है?
गोलू देवता की पूजा से श्रद्धालु को न्याय मिलता है, और जिनकी समस्याएं हल नहीं हो रही होती, उनके लिए समाधान मिलता है। इसके अलावा, यह पूजा घर में सुख-शांति और समृद्धि लाने का भी एक साधन मानी जाती है।
7. गोलू देवता की प्रसिद्धि क्यों बढ़ी?
गोलू देवता की प्रसिद्धि उनके न्यायप्रिय स्वभाव और चमत्कारी शक्तियों के कारण बढ़ी। उनके दर्शन से लोग मनोकामनाएं पूरी होने की उम्मीद रखते हैं, इसलिए हर साल हजारों श्रद्धालु इन मंदिरों में पूजा करने आते हैं।
8. गोलू देवता की पूजा का समय क्या है?
गोलू देवता की पूजा विशेष रूप से शनिवार, मंगलवार और दशहरे के आसपास होती है, लेकिन भक्त उन्हें सालभर पूजा करते हैं।
9. गोलू देवता का अन्य नाम क्या है?
गोलू देवता को ग्वेल देवता, बाला गोरिया, गौर भैरव और ग्वेल ज्यू के नाम से भी जाना जाता है।
10. गोलू देवता के दर्शन के लिए कौन से प्रमुख मंदिर प्रसिद्ध हैं?
गोलू देवता के प्रमुख मंदिर चम्पावत, चितई (अल्मोड़ा), घोड़ाखाल (नैनीताल), और कंडोलिया (पौड़ी गढ़वाल) में स्थित हैं।
11. क्या गोलू देवता के मंदिर में श्रद्धालु व्रत रखते हैं?
हां, गोलू देवता के मंदिर में श्रद्धालु व्रत रखते हैं और उनके सामने अपने मन की इच्छा व्यक्त करते हैं।
12. गोलू देवता के दर्शन कैसे करें?
गोलू देवता के दर्शन के लिए भक्त उनके मंदिरों में जाते हैं, जहां उन्हें पूजा करने के साथ-साथ मनोकामनाओं की प्राप्ति के लिए प्रार्थना की जाती है।
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