आपके सामने पेश है फिर एक और कविता "गमले में लगा गुलाब"

आपके सामने पेश है फिर एक और कविता "गमले में लगा गुलाब"

काश मैं भी जंगली होता,

घर होता मेरा जंगल।

मस्त लताएं बिखरी होती,

और मनाता मंगल।।

आपके सामने पेश है फिर एक और कविता "गमले में लगा गुलाब"

गमले में में कैद हुआ हूं,

बगिया किसी की सजाने को।

मेरे पास कोई राग नहीं है,

दुखड़े अपने सुनाने को।।

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कोई राहों पर चढ़ाए,

बनाए कोई हार।

नाजुक मेरी बाहें मरोड़े,

और जताए प्यार।।

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बधाइयां देने में,

कत्ल होता मेरा है।

देवालय भी महके जिससे,

इत्र भी वह मेरा है।।

आपके सामने पेश है फिर एक और कविता "गमले में लगा गुलाब"

खाद पानी माली देता,

जीवन मुझे दिलाने को।

क्रिया मैं कुछ कर नहीं सकता,

इच्छा अपनी बताने को।।

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काटी छांटी रोज जाती,

बढ़ती मेरी कलियां।

बगिया माली दोनों खुश हैं,

चढ़ती मेरी  बलियां।।

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कटती मेरी बाहें देख,

मन मेरा भी रोता है।

करुण वेदना सुने जो मेरी,

कौन यहां पर होता है।।

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गमले में बैठा रहता हूं,

याद जंगल की आती है।

कष्ट में भी खिल खिलाओ,

यही मेरी ख्याति है।।

       *-विजय लक्ष्मी मुरारी*


 

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