पहाड़ के प्रति यहां कविता तेरौ कयौ मिलै सुंयौ,

 पहाड़ के प्रति यहां कविता "तेरौ कयौ मिलै सुंयौ, मेरौ कयौ तुयुलै जिंदगी हसीन करि, मिली ऐसै हामूळै"

तेरौ कयौ  मिलै सुंयौ, मेरौ  कयौ  तुयुलै

जिंदगी हसीन  करि, मिली  ऐसै हामूळै।

पहाड़ के प्रति यहां कविता "तेरौ कयौ  मिलै सुंयौ, मेरौ  कयौ  तुयुलै  जिंदगी हसीन  करि, मिली  ऐसै हामूळै"

कैले कयौ ज्यौ गुलाम, कैले कयौ डरंछि

मि  त्वै पे  मऱछु  सांची, तू मि  पै  मरंछि।


तेरा खुटा कांडो बुड्यो,  मेरा हिया पीड़

तू मेरी सांसें की हवा, मि तेरी कमरे रीड़।


मि त्वै देखिबै खुश, सब पीड़ जांछु भूलि

तेरौ मेरौ मिलणौ  ऐसौ, भागा  द्वार खूलि।

पहाड़ के प्रति यहां कविता "तेरौ कयौ  मिलै सुंयौ, मेरौ  कयौ  तुयुलै  जिंदगी हसीन  करि, मिली  ऐसै हामूळै"

तू मि रसयौ का भाड़ा, खटपट त लागिरै

तेरा मेरा प्यारे लै, "राजू" घर कुडी थामिरै।

#शब्दार्थ :

कयौ - कहा। मिलै - मैंने। सुंयौ - सुना। तुयुलै - तूने।

कैले - किसी ने। ज्यौ - घरवाली। सांची - सच में।

कांडो - कांटा। बुड्यो - चुभा। भाड़ा - बर्तन

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