निज का कारण कविता

 निज का कारण

सुर हैं केवल सात
फिर भी किन्हीं एक दो स्वर को त्यागने उपरांत भी
बन सकता है अदभुद राग
ये कोई गलती नहीं‌
बल्कि कयी दफा सत्यापित तथ्य है

ये मानाना किसी के बिना कुछ अपूर्ण रह जायेगा
ये एक हट है
अवमानना है

और पूर्ण का हिस्सा 
कैसा किसी को चाह कर भी अपूर्ण कर सकता है
उसे तो बुलबुले सा 
जल में उठना है और फिर होना है जल में विलय
बिना कोई दाग छोड़े
साफ 
स्वच्छंद
फिर भी जब तक हो
तब तक एक तरंग एक लय एक नाद
अथाह सागर में जगा ही सकते हो
तरंग उठने बाद कयी मीलों मीलों तक जाती है
हां हो सकता है कम्पन नजरों से 
कुछ समय बाद ओझल हो जाए

जल में एक समय अनेक कंपन सम्भव हैं
वो भी परस्स्पर बिना किसी द्वेष के
अगर समभाव होगा तो वो एक दूजे में सहज ही विलय होंगी
और ऐसे ही अनेक कंम्पन एक दूजे में समाहित हो
कारण होंगी लहरों का

तुम भी 
जब भी जहां हो
कंपन करो
किसी नाद को जन्म दो
अपना समर्पण दो
लहरें निकट सम्भावी हैं
उनका आना निश्चित है।

बस देखना है तुम किस का कारण होगे
और किस परिवर्तन में आहुति दोगे।

टिप्पणियाँ

upcoming to download post