मानुष जीवन सत्य सबेरा
दूर कहीं पर खिला सबेरा,
ढूँढ रहा था देख-देख कर।
थककर बन्द हुई जब आंखें,
दिखे सबेरे एक-एक कर।
बाहर के पट बन्द हुए जब,
अन्तः चक्षु हुआ उजाला।
करोड़ों सूरज चमक रहे हों,
"घट" अन्दर प्रकाश है फैला,
शब्द, लोक हैं "घट" के अन्दर।
"घट" मे ही सब रत्न छुपे हैं,
बसते "घट" में सात समुन्दर।
ब्रह्मा, विष्णु, महेश हैं घट में,
घट में बसती दुर्गा देवी।
सहस्र अठासी खेड़े घट में,
देव, लोक, हनुमत से सेवी।
बुरा-भला सब घट मे ब्यापे,
घट मे बिष अमृत की धारा।
नवग्रह वास करें सब घट में,
घट में सूरज, चन्दा, तारा।
घट मे ही है घोर अंधेरा,
घट मे ही है सकल सबेरा।
नारद, सारद, इंद्र, कुबेरा,
घट में ही सब करें बसेरा।
सब घट अन्दर बाहर नाहीं,
नर "घट" भेद अनन्तं।
कहे "विनोद" विहंग चाल चल,
शंखों कोश शुभन्तं।
पाँच यज्ञ हैं ज्ञान, ध्यान और,
धर्म, हवन, प्रणामम।
ॐ, तत, सत भक्ति चरण में,
सर्व कमल घट ठामम।।
😊...✍ विनोद डोभाल विन्न
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