तीलू रौतेली : चौन्दकोट, गढ़वाल में जन्मी अपूर्व शौर्य, संकल्प और साहस की धनी इस वीरांगना को गढ़वाल के इतिहास में ‘झांसी की रानी’ के नाम से जाना जाता है।
उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाएं तीलू रौतेली
Famous Women of Uttarakhand Teelu Rauteli
सात वर्ष तक युद्ध कर जीत लिए 13 किले
पिता भाई और मंगेतर की शहादत के बाद 15 वर्षीय वीरबाला तीलू रौतेली ने कमान संभाली। तीलू ने अपने मामा रामू भण्डारी, सलाहकार शिवदत्त पोखरियाल व सहेलियों देवकी और बेलू आदि के संग मिलकर एक सेना का गठन किया । इस सेना के सेनापति महाराष्ट्र से छत्रपति शिवाजी के सेनानायक श्री गुरु गौरीनाथ थे। उनके मार्गदर्शन से हजारों युवकों ने प्रशिक्षण लेकर छापामार युद्ध कौशल सीखा। तीलू अपनी सहेलियों देवकी व वेलू के साथ मिलकर दुश्मनों को पराजित करने हेतु निकल पडी। उन्होंने सात वर्ष तक लड़ते हुए खैरागढ, टकौलीगढ़, इंडियाकोट भौनखाल, उमरागढी, सल्टमहादेव, मासीगढ़, सराईखेत, उफराईखाल, कलिंकाखाल, डुमैलागढ, भलंगभौण व चौखुटिया सहित 13किलों पर विजय पाई। 15 मई 1683 को विजयोल्लास में तीलू अपने अस्त्र शस्त्र को तट (नयार नदी) पर रखकर नदी में नहाने उतरी, तभी दुश्मन के एक सैनिक ने उसे धोखे से मार दिया। हालांकि तीलू रौतेली पर कई पुस्तकें प्रकाशित की जा चुकी हैं तथा कई नाट्य मंचित भी हो चुके हैं, परन्तु इस महान नायिका का परिचय पहाड की कंदराओं से बाहर नहीं निकल पा रहा है।
तीलू रौतेली (जन्म तिलोत्तमा देवी), गढ़वाल, उत्तराखण्ड की एक ऐसी वीरांगना जो केवल 15 वर्ष की उम्र में रणभूमि में कूद पड़ी थी और सात साल तक जिसने अपने दुश्मन राजाओं को कड़ी चुनौती दी थी। 22 वर्ष की आयु में सात युद्ध लड़ने वाली तीलू रौतेली एक वीरांगना है। तीलू रौतेली उर्फ तिलोत्तमा देवी भारत की रानी लक्ष्मीबाई, चांद बीबी, झलकारी बाई, बेगम हजरत महल के समान ही देश विदेश में ख्याति प्राप्त हैं।
इसी बात को ध्यान में रखते हुए उत्तराखंड सरकार ने तीलू देवी के नाम पर एक योजना शुरू की है, जिसका नाम तीलू रौतेली पेंशन योजना है। यह योजना उन महिलाओं को समर्पित है, जो कृषि कार्य करते हुए विकलांग हो चुकी हैं। इस योजना का लाभ उत्तराखंड राज्य की बहुत सी महिलायें उठा रहीं हैं।
वीरबाला तीलू रौतेली के नाम पर वर्ष 2006 से प्रारंभ किए गए 'तीलू रौतेली राज्य स्त्री शक्ति' पुरस्कार में २०२१ में कोरोना योद्धा के तौर पर कार्य करने वाली महिलाओं को भी शामिल किया गया था। 8 अगस्त २०२१ को दिए गए इन पुरस्कारों के लिए प्रदेश के सभी जिलों से 120 महिलाओं व किशोरियों के आवेदन प्रस्तुत किये गए थे। प्रदेश के सभी जिलों से चयनित 22 आंगनबाड़ी कार्यकर्त्ताओं को भी इस मौके पर पुरस्कृत किया गया।
तीलू रौतेली गाँव
तीलू रौतेली का ऐतिहासिक गांव पौड़ी जिले के चौंदकोट परगना के अंतर्गत आता है। गांव में आज भी उनका पैतृक मकान मौजूद है। यह मकान 17वीं शताब्दी में बना बताया जाता है। भवन का सामने का हिस्सा ठीक हाल में है, जबकि पिछला हिस्सा खंडहर बन गया है। प्रदेश सरकार ने गांव में वीरांगना तीलू रौतेली की प्रतिमा तो स्थापित की है, लेकिन उनके पैतृक भवन की आज तक किसी ने सुध नहीं ली है। गुराड़ के प्रधान किरण सिंह रावत ने बताया कि तीलू रौतेली के वंशज कुछ वर्षों पूर्व तक यहां रहा करते थे, लेकिन अब यह भवन वीरान होने से खंडहर बन रहा है। मकान के पीछे का हिस्सा जर्जर होकर खंडहर में तब्दील हो गया है। महिला कांग्रेस की प्रदेश महामंत्री रंजना रावत ने राज्य सरकार से तीलू रौतेली के जन्म स्थान और शहीद स्थल को विरासत घोषित कर संरक्षण और विकसित करने की मांग की है।
तीलू रौतेली की जयंती
तीलू रौतेली की जयंती हर साल 8 अगस्त को मनाई जाती है। इस दिन उत्तराखंड के लोग पेड लगाते है और साथ ही सांस्कृतिक उत्सव भी आयोजित किये जाते है। 8 अगस्त 1661 को तीलू रौतेली का जन्म हुआ था इसी उपलक्ष्य में राज्य सरकार इस दिन की याद में तीलू रौतेली की जयंती मानती है।
तीलू रौतेली परिचय
उत्तराखंड में सत्रहवीं शताब्दी में तीलू रौतेली नामक वीरांगना ने 15 वर्ष की आयु में दुश्मनों के साथ 7 वर्ष तक युद्धकर 13 गढ़ों पर विजय पाई थी और वह अंत में अपने प्राणों की आहुति देकर वीरगति को प्राप्त हो गई थी। मुझे यह अवगत कराते हुए अत्यंत प्रसन्नता हो रही है तीलू रौतेली के पिता का नाम गोरला रावत भूपसिंह था, जो गढ़वाल नरेश राज्य के प्रमुख सभासदों में से थे। गोरला रावत गढ़वाल के परमार राजपुतों की एक शाखा है जो संवत्ती 817( सन् 760) मे गुजर देश (वर्तमान गुजरात राज्य) से गढ़वाल के पौडी जिले के चांदकोट क्षेत्र के गुरार गांव(वर्तमान गुराड गांव) मे गढ़वाल के परमार शासकों की शरण मे आयी।इसी गांव के नाम से ये कालांतर मे यह परमारो की शाखा गुरला अथवा गोरला नाम से प्रवंचित हुई। रावत केवल इनकी उपाधी है। इन परमारो को गढ राज्य की पूर्वी व दक्षिण सीमा के किलो की जिम्मेदारी दी गयी।चांदकोट गढ ,गुजडूगढी आदि की किले इनके अधीनस्थ थे। तीलू के दोनो भाईयो को कत्युरी सेना के सरदार को हराकर सिर काटकर गढ़ नरेश को प्रस्तुत करने पर 42-42 गांव की जागीर दी गयी । युद्ध मे इन दोनो भाईयों(भगतु एवं पत्वा ) के 42-42 घाव आये थे। पत्वा(फतह सिंह ) ने अपना मुख्यालय गांव परसोली/पडसोली(पट्टी गुजडू ) मे स्थापित किया जहां वर्तमान मे उसके वंशज रह रहे है। भगतु(भगत सिंह )के वंशज गांव सिसई(पट्टी खाटली )मे वर्तमान मे रह रहे है। तीलू रौतेली ने अपने बचपन का अधिकांश समय बीरोंखाल के कांडा मल्ला, गांव में बिताया। आज भी हर वर्ष उनके नाम का कौथिग ओर बॉलीबाल मैच का आयोजन कांडा मल्ला में किया जाता है। इस प्रतियोगीता में सभ क्षेत्रवासी भाग लेते है।
तीलू रौतेली गोरला रावत भूप सिंह(गढ़वाल के इतिहास मे ये गंगू गोरला रावत नाम से जाने जाते है। ) की पुत्री थी, 15 वर्ष की आयु में तीलू रौतेली की सगाई इडा गाँव (पट्टी मोंदाडस्यु) के सिपाही नेगी भुप्पा सिंह के पुत्र भवानी नेगी के साथ हुई। गढ़वाल मे सिपाही नेगी जाति हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा रियासत के कटोच राजपूतों की ही शाखा है, वहां इन्हें सिप्पै भी कहा जाता है। ये हिमाचल प्रदेश से आकर गढ़वाल मे बसे है। इन्ही दिनों गढ़वाल में कन्त्यूरों के लगातार हमले हो रहे थे, और इन हमलों में कन्त्यूरों के खिलाफ लड़ते-लड़ते तीलू के पिता ने युद्ध भूमि प्राण न्यौछावर कर दिये। इनके प्रतिशोध में तीलू के मंगेतर और दोनों भाइयों (भगतू और पत्वा ) ने भी युद्धभूमि में अप्रतिम बलिदान दिया।
तीलू रौतेली कौथीग जाने की जिद
कुछ ही दिनों में कांडा गाँव में कौथीग (मेला) लगा और बालिका तीलू इन सभी घटनाओं से अंजान कौथीग में जाने की जिद करने लगी तो माँ ने रोते हुये ताना मारा.
"तीलू तू कैसी है, रे! तुझे अपने भाइयों की याद नहीं आती। तेरे पिता का प्रतिशोध कौन लेगा रे! जा रणभूमि में जा और अपने भाइयों की मौत का बदला ले। ले सकती है क्या? फिर खेलना कौथीग!"
तीलू के बाल्य मन को ये बातें चुभ गई और उसने कौथीग जाने का ध्यान तो छोड़ ही दिया बल्कि प्रतिशोध की धुन पकड़ ली। उसने अपनी सहेलियों के साथ मिलकर एक सेना बनानी आरंभ कर दी और पुरानी बिखरी हुई सेना को एकत्र करना भी शुरू कर दिया। प्रतिशोध की ज्वाला ने तीलू को घायल सिंहनी बना दिया था, शास्त्रों से लैस सैनिकों तथा "बिंदुली" नाम की घोड़ी और अपनी दो प्रमुख सहेलियों बेल्लु और देवली को साथ लेकर युद्धभूमि के लिए प्रस्थान किया।
तीलू रौतेली युद्ध भूमि में पराक्रम
सबसे पहले तीलू रौतेली ने खैरागढ़ (वर्तमान कालागढ़ के समीप) को कन्त्यूरों से मुक्त करवाया, उसके बाद उमटागढ़ी पर धावा बोला, फिर वह अपने सैन्य दल के साथ "सल्ड महादेव" पंहुची और उसे भी शत्रु सेना के चंगुल से मुक्त कराया। चौखुटिया तक गढ़ राज्य की सीमा निर्धारित कर देने के बाद तीलू अपने सैन्य दल के साथ देघाट वापस आयी. कालिंका खाल में तीलू का शत्रु से घमासान संग्राम हुआ, सराईखेत में कन्त्यूरों को परास्त करके तीलू ने अपने पिता के बलिदान का बदला लिया; इसी जगह पर तीलू की घोड़ी "बिंदुली" भी शत्रु दल के वारों से घायल होकर तीलू का साथ छोड़ गई।
तीलू रौतेली अंतिम बलिदान
शत्रु को पराजय का स्वाद चखाने के बाद जब तीलू रौतेली लौट रही थी तो जल स्रोत को देखकर उसका मन कुछ विश्राम करने को हुआ, कांडा गाँव के ठीक नीचे पूर्वी नयार नदी में पानी पीते समय उसने अपनी तलवार नीचे रख दी और जैसे ही वह पानी पीने के लिए झुकी, उधर ही छुपे हुये पराजय से अपमानित रामू रजवार नामक एक कन्त्यूरी सैनिक ने तीलू की तलवार उठाकर उस पर हमला कर दिया।
निहत्थी तीलू पर पीछे से छुपकर किया गया यह वार प्राणान्तक साबित हुआ।कहा जाता है कि तीलू ने मरने से पहले अपनी कटार के वार से उस शत्रु सैनिक को यमलोक भेज दिया।
तीलू रौतेली विरासत
उनकी याद में आज भी कांडा ग्राम व बीरोंखाल क्षेत्र के निवासी हर वर्ष कौथीग (मेला) आयोजित करते हैं और ढ़ोल-दमाऊ तथा निशाण के साथ तीलू रौतेली की प्रतिमा का पूजन किया जाता है। तीलू रौतेली की स्मृति में गढ़वाल मंडल के कई गाँव में थड्या गीत गाये जाते हैं।
ओ कांडा का कौथिग उर्यो
ओ तिलू कौथिग बोला
धकीं धे धे तिलू रौतेली धकीं धे धे
द्वी वीर मेरा रणशूर ह्वेन
भगतु पत्ता को बदला लेक कौथीग खेलला
धकीं धे धे तिलू रौतेली धकीं धे धे
(तीलू रौतेली )Tilu Rauteli "Garhwal Queen of Jhansi" biography
जिस उम्र में बच्चे खेलना कूदना और पढ़ना जानते हैं उसी उम्र में गढ़वाल की एक वीरांगना जिसने 15 वर्ष की उम्र में ही युद्ध भूमि में दुश्मनों को धूल चटा दी थी गढ़वाल की इस महान वीरांगना का नाम था "तीलू रौतेली" | गढ़वाल की महान वीरांगना तीलू रौतेली (Tilu Rauteli) के बारे में जानने के लिए इस पोस्ट को पहले से अंत तक पढ़िए|
Teelu Rauteli the Garhwali warrior and folk heroine :
तीलू रौतेली का जन्म 8 अगस्त 1661 में गुराड गांव में हुआ जो की पौड़ी गढ़वाल में स्थित है इस समय गढ़वाल के राजा पृथ्वीशाह थे इनके पिता का नाम भूप सिंह जो कि गढ़वाल नरेश थे| तीलू रौतेली ने अपने बचपन का अधिकांश समय बीरोंखाल के कांडा मल्ला गांव में बिताया, तीलू रौतेली के बचपन का नाम तिलोत्तमा था 15 वर्ष की उम्र में ही tilu rauteli की सगाई इडा गांव के भूपा सिंह नेगी के पुत्र के साथ हो गई इन्हीं दिनों गढ़वाल पर कन्त्यूरों के हमले हो रहे थे और इन्हीं हमलों में कन्त्यूरों के खिलाफ लड़ते लड़ते तीलू रौतेली के पिता जी ने युद्ध भूमि में अपने प्राण न्योछावर कर लिए| अपने पिता के प्रतिशोध में तीलू रौतेली के दोनों भाइयों और मंगेतर ने भी युद्ध भूमि में अपने प्राणों का बलिदान दे दिया|
(Tilu Rauteli) की कौथीग जाने की जिद
सर्दियों में कांडा में मेले का आयोजन होता था जिसमें भूप सिंह का परिवार भी हिस्सा लेता था जब तीलू ने अपनी मां से मेले में जाने को कहा तो उसकी मां ने कहा कि मेले में जाने के बजाय तुम्हें अपने पिता भाई और मंगेतर की मौत का बदला लेना चाहिए |तो अपनी मां की बातों में आकर तीलू रौतेली में बदला लेने की भावना जाग उठी और उसने फिर तीलू रौतेली ने अपने गांव से युवाओं को जोड़कर एक अपनी सैना तैयार कर ली जिसमें तीलू रौतेली ने अपनी दोनों सहेलियों बेल्लू और रक्की को भी अपनी सेना में रख लिया जिन पर सफेद रंग की पोशाक और एक एक तलवार दे दी और खुद भी सैनिक की पोशाक पहनकर अपनी घोड़ी (बिंदुली) पर सवार हो गई और युद्ध के लिए निकल पड़े|
सबसे पहले तीलू रौतेली ने खेरागढ़ को कन्त्यूरों से मुक्त कराया फिर उमटागढ़ी पर अपना धावा बोला फिर वह अपनी सेना के साथ सल्ड महादेव पहुंची और उसने वहां भी शत्रुओं से मुक्ति दिलाई फिर तीलू देघाट पहुंचे फिर कालिंगा खाल में तीलू रौतेली का छात्रों के साथ बहुत भयंकर युद्ध हुआ सराई खेत में कन्त्यूरों को हराकर तीलू रौतेली ने अपने पिता भाइयों और मंगेतर का बदला पूरा किया| इसी स्थान पर तीलू रौतेली की घोड़ी बिंदुली घायल होकर तीलू का साथ छोड़ गई|
तीलू रौतेली का अंतिम बलिदान :
जब तीलू रौतेली शत्रु को पराजित करके घर वापस लौट रही थी तो उसे जल का स्रोत दिखाई दिया तो जब तीलू रौतेली जल पीने के लिए नीचे झुकी तो पीछे से राजू रजवार नामक कन्त्यूरी सैनिक तीलू रौतेली के पीछे सर में तलवार से हमला कर दिया जिससे गढ़वाल की इस वीरांगना ने अपनेेेे प्राण त्याग दिए| तीलू रौतेली उस समय केवल 22 साल की थी लेकिन उन्होंनेे अपना नाम इतिहास में अमर कर लिया |
तीलू रौतेली रण भूत जागर
गढ़वाल की महान वीरांगना तीलू रौतेली से सम्बंधित लोकगीत/लोकनाट्य (जागर) बहुत प्रसिद्ध है। तीलू रौतेली के काल को लेकर सांस्कृतिक इतिहासकारों में भ्रम है। कुछ सांस्कृतिक इतिहासकार उसका समय 1380 ई. के आसपास बताते हैं। कुछ सांस्कृतिक इतिहासकार उसका समय अठारहवीं शताब्दी के आसपास होने की वकालत करते हैं।
( लोक गाथा वीर-वीरंगनाएं गाथा : भदौ , कटकू , भडवळी या उदाहरण , जागर )
शिवानंद नौटियाल के अनुसार , " वीरांगना तिलू रौतेली गढ़वाल की रानी कहलायी जाती है। तीलू की याद में रान भूत नाचाया . जब तीलू रौतेली नाचती है तो अन्य बीरों के रण भूत / पश्वा जैसे शि बोस पोखरियाल , घिमंडू हुडक्या , बेलु -पट्टू सखियां , नेगी सरदार आदि के पश्वाओं को भी नचाया जाता है। हर एक पश्वा मंडन युद्ध में नृत्य के साथ नाचते हैं"
ओ कांडा का कौथिग उरियो
ओ तिलु कौथिग बोला
ढाका धे धे तिलु रौतेली ढाका धी धी
द्वि बीर मेरा रनशूर ह्वेन
भगतू पत्ते को बदला लेक कौतिक खेलला
ढाका धे धे तिलु रौतेली ढाका धी धी
अहो रणशूर बाजा बजी गेन रौतेली ढाका धाय धाय
बोइयों का दूध तुम रानखेतु बताओ ढाका धाय धाय
तीलु रौतेली बवड़ा रणसाज सजावा ढाका धाय धाय
इजा मैना युन बिरुन टीका लगावा , साज सजावा , ढाका धाइ धाइ
मैं तिलु बोडू जौंका भाई होला , जोंकी बनी होली
ओ रणखेत जाला ढाका धाय धाय
बल्लू प्रहरी तू मुल्क जाइक ढाई लगै दे ढाका ढाई धाई
बीरों के भृकुटी तन गे ढका धाय
तीलु रौतेली ढाका धाय धाय
ओ अब बूड़ी सालन नाचन लागे ढाका धाई
अब नई जवानी ऐगे ढका ढ़ाई ढ़ाई
बेलू देबकी दो सखी संग चल गे ढका ढाई धाई
ओ खैरा गढ़ मा जुड़ गई गे ढका ढाई धाई
खड़कु रौत ताखी मोरी गे ढका धाय धाय
तीलु रौतेली ढाका धाय धाय
ओ कांड को कौतिक सूर्यो गे धका धै ध
तीलु रौतेली तुम पुराणा हाथ्यार पुजावा ढाका धाय
अपणि ढाल कटार तलवार सजावा ढाका धाय घिमंडू की हुड़की बजान ला ढाका ढाई धाय
ओ रणशूर साज़ साज़िक ऐगे तिलु रौतेली ढाका धाय धाय
दिवा को अष्टांग करि यल ढाका धाय धाय
रण जीति घर ऐक गादुलो छतर रे ढाका धाय
ढाका धे धे तीलू रौतेली ढाका ढ़ाई ढ़ाई
पौंछी गे तीलु रौतेली टकोली भौं ढाका धाय
यख बिदवा कान्त्यूरो मारियाले ढाका धाय धाय
तब तीलू पौंछी गे साल्ड मादेव ढाका ढ़ाई ढ़ाई
ओ सिंगनी शार्दुला ढाका धाय धाय
ढाका धे धे तीलू रौतेली ढाका ढ़ाई येख वख मारी कैकी बौड़ी गे चौखटिया देघाट ढाका धे धे
बिजय मीले पण तीलू दिखागे ढाका धै धै
बेल्लू देबकी रंखेतुं मा इखी काम ऐन
इथगा मा शि बोस पोखरियाल हेल्प लेक इगे ढाका धाय
अब शार्दुला ग्लाड पौंची का लिंकखाळ
सरायखेत आइगे घमासन जुद्ध ह्वे ढाका धाय
शार्दुल की मार से कैंतुरा रण छोड़ि भाजी गेन ढाका ढ़ाई रण भूत पितरं कल तर्पण दिनुला ढाका ढ़ाई ढ़ाई
यख शि ब्लाउज़ पोखरियाल तर्पण देन लग्ये ढाका ढ़ाई ढ़ाई
सरायखेत नाम से पहले से पड़े ढाका ढाई
यख कौतिक तलवारियों को होलो ढाका धाय
ये तेन खेलला मर्दाना मस्ताना रणवांकुर जवान ढाका धाय धाय
सरदार चला तुम रणखेत चला तुम ढाका धाई ढाका धाई तीलू रौतेली ढाका ढाई धाई
ओ रणसिंग्या रणभेरी नागाड़ा बजागे ढाका ढ़ाई ढ़ाई
ओ शि ब्याज बवाड़ा तर्पण करण खैरागढ़ ढाका धाय धाय
अब शरदूला पूँछी गे खैरागढ़ ढाका धाय धाय
यख जीतू कैंतुरा मारी , राजुला जय रौतेली अगणे बड़ी गे ढाका धाय धाय
रण जीति सिंगनी दुबाता मा नान ला ढाका ढ़ाई ढ़ाई
राजुलात रणचंडी छै अपणो काम करि नाम धरे गे ढाका धाय धाय
क्यूटिका जाइक खेलनो चयो सेक्सी याला
याद टोककी जुग जुग रहली ढाका धाई
तुसाकी रैली खाटली के देवी ढाका धाय धाय
सत्यसाहित्य रैली स्ल्ड का मादेव ढाका धाय धाय
ओ साक्षात्कार रैली पंच पाल देव
कालिका की देवी लंगड़िया भैरों
ताड़ासर देव , अमर टीलू , सिंगानी शार्दूला ढाका धाय धाय
जब तक भूमि , सूर्य आकाश
तीलू रौतेली की तब तक याद रही रैली
ढाका धे धे तीलू रौतेली ढाका ढ़ाई ढ़ाई
तीलू रौतेली चौंदकोट के थोकदार भूप सिंह गोरल की बेटी थीं। तीलू रौतेला के दो जुड़वां भाई भगतू और पटवा थे। उनके पिता ने कम उम्र में ही तीलू रौतेली से सगाई कर दी। हालाँकि, दुश्मनों ने शादी से पहले ही उनके होने वाले पति को मार डाला।
उस समय कत्यूरी राजा धाम शाही ने खैरागढ़ राजा मानशाही पर आक्रमण कर दिया। मानशाही बहादुरी से लड़े लेकिन उन्हें युद्ध से भागना पड़ा। मानशाही ने चौन्दकोट गढ़ी में शरण ली। भूपसिंह और उसके दोनों पुत्रों ने धामशाही की सेना से युद्ध किया। लड़ाई में हमलावरों ने भूप सिंह और उनके बेटों को मार डाला।
शीतकाल के बाद कांडा मेला लगता था। तीलू रौतेली ने मेले में जाने की रुचि अपनी माँ को दिखाई। जब तीलू रौतेली शुरू करने के लिए तैयार हुई तो उसकी माँ को अपने पति और अपने दोनों बेटों की याद आई। उसने बेटी तीलू से कहा, ''अगर मेरे बेटे जीवित होते तो वे धाम शाही से बदला लेते।'' उन्होंने मृत पुत्रों और मेरे पति के तर्पण के लिए रक्त अर्पित किया होगा”
तीलू रौतेली ने अपने वीर पिता और दो जुड़वाँ वीर भाईयों की मौत का बदला लेने की शपथ ली।
तीलू रौतेली ने क्षेत्रीय लोगों को सूचित किया कि वे मेला नहीं मनाएंगे बल्कि कत्यूरी का विनाश करेंगे। क्षेत्र के सभी सेनानी तैयार हो गये।
तीलू ने तलवार के साथ योद्धा की पोशाक पहन ली। वह अपने काले घोड़े पर सवार थी. उनके साथ उनकी बोल्ड महिला मित्र बेलू और रक्की भी गईं थीं. परिवार हुडक्या (एक प्रकार का ढोल वादक) गेम्डू तलवार के साथ उसके साथ था। वह आशीर्वाद के लिए परिवार और गांव के मंदिरों में गईं।
तीलू रौतेली की सेना ने अपना अभियान खैरागढ़ से प्रारम्भ किया। तीलू रौतेली और उनकी सेना ने खैरागढ़ को कत्यूरी सेना से मुक्त कराया।
बाद के चरण में, उन्होंने भौन (इदियाकोट), सल्ट महादेव, भिलाण, भौन, जडाल्यूं, चौखटिया, सरायखेत और कालिकाखाल को शत्रुओं से मुक्त कराया।
तीलू ने बीरोंखाल में कई दिनों तक विश्राम किया।
तीलू रौतेली कांदागढ़ क्षेत्र में अपने कैंपिंग पर थीं. सेना आराम कर रही थी. तीलू नयार नदी में स्नान कर रही थी। एक शत्रु सैनिक रजवार ने धोखे से उसकी हत्या कर दी। जब तीलू रौतेली शहीद हुईं तब उनकी उम्र बाईस साल थी। तीलू रौतेली ने सात वर्षों तक शत्रु सेना से युद्ध किया।
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