श्री बटुक भैरव चालीसा / Shri Batuk Bhairav Chalisa

 श्री बटुक भैरव चालीसा

श्री बटुक भैरव चालीसा को पढ़ने की विधि

  • शुभ मुहूर्त का चयन: श्री बटुक भैरव चालीसा का पाठ करने के लिए एक शुभ मुहूर्त का चयन करें, जैसे कि सुबह या संध्या के समय।
  • पूजा स्थान का चयन: एक शुद्ध और साफ पूजा स्थान का चयन करें जहां आप पूजा कर सकते हैं।
  • बटुक भैरव की मूर्ति या छवि का स्थापना: बटुक भैरव की मूर्ति या छवि को एक स्थान पर स्थापित करें।
  • पंज अग्रपूजा: पंज अग्रपूजा करें जिसमें फूल, दीप, धूप, अक्षत, और नैवेद्य शामिल होते हैं।
  • बटुक भैरव चालीसा का पाठ: बटुक भैरव चालीसा का पाठ भक्तिभाव से करें।
  • आरती और भजन: बटुक भैरव की आरती और उनके भजनों का आनंद लें।
  • मन्त्रों का जप: बटुक भैरव के मंत्रों का जप करें, जैसे "ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं।"
  • आरती और प्रशाद: बटुक भैरव की आरती करें और प्रसाद बाँटें।
  • भक्ति भाव: पूजा के दौरान और उसके बाद, आपको भक्ति भाव से बटुक भैरव की आराधना करनी चाहिए।
इस विधि को अपनी आदतों और परंपराओं के अनुसार समायोजित करें, क्योंकि यह स्थानीय संस्कृति और आचार्यों के अनुसार भिन्न हो सकती है।

॥ दोहा ॥

विश्वनाथ को सुमिर मनधर गणेश का ध्यान । 
भैरव चालीसा रचूंकृपा करहु भगवान ॥
बटुकनाथ भैरव भजंश्री काली के लाल । 
छीतरमल पर कर कृपाकाशी के कुतवाल ॥

॥ चौपाई ॥

जय जय श्रीकाली के लालारहो दास पर सदा दयाला ।
भैरव भीषण भीम कपालीक्रोधवन्त लोचन में लाली ।
कर त्रिशूल है कठिन करालागल में प्रभु मुण्डन की माला ।
कृष्ण रूप तन वर्ण विशालापीकर मद रहता मतवाला ।
रुद्र बटुक भक्तन के संगीप्रेत नाथ भूतेश भुजंगी ।
त्रैल तेश है नाम तुम्हाराचक्र तुण्ड अमरेश पियारा ।
शेखरचंद्र कपाल बिराजेस्वान सवारी पै प्रभु गाजे ।
शिव नकुलेश चण्ड हो स्वामीबैजनाथ प्रभु नमो नमामी |
 अश्वनाथ क्रोधेश बखानेभैरों काल जगत ने जाने 
कहैं निमिष दिगम्बरजगन्नाथ गायत्री कहैं उन्नत आडम्बर |
क्षेत्रपाल दसपाण कहायेमंजुल उमानन्द कहलाये ।
चक्रनाथ भक्तन हितकारीकहैं त्र्यम्बक सब नर नारी ।
संहारक सुनन्द तव नामाकरहु भक्त के पूरण कामा ।
नाथ पिशाचन के हो प्यारेसंकट मेटहु सकल हमारे ।
कृत्यायू सुन्दर आनन्दाभक्त जनन के काटहु फन्दा ।
कारण लम्ब आप भय भंजननमोनाथ जय जनमन रंजन ।
हो तुम देव त्रिलोचन नाथाभक्त चरण में नावत माथा ।
त्वं अशतांग रुद्र के लालामहाकाल कालों के काला ।
ताप विमोचन अरि दल नासाभाल चन्द्रमा करहि प्रकाशा ।
श्वेत काल अरु लाल शरीरामस्तक मुकुट शीश पर चीरा ।
काली के लाला बलधारीकहाँ तक शोभा कहूँ तुम्हारी ।
शंकर के अवतार कृपालारहो चकाचक पी मद प्याला ।
काशी के कुतवाल कहाओबटुक नाथ चेटक दिखलाओ 
रवि के दिन जन भोग लगावेंधूप दीप नैवेद्य चढ़ावें ।
दरशन करके भक्त सिहावेंदारुड़ा की धार पिलावें ।
मठ में सुन्दर लटकत झावासिद्ध कार्य कर भैरों बाबा ।
नाथ आपका यश नहीं थोड़ाकरमें सुभग सुशोभित कोड़ा 
कटि घूँघरा सुरीले बाजतकंचनमय सिंहासन राजत ।
नर नारी सब तुमको ध्यावहिंमनवांछित इच्छाफल पावहिं ।
भोपा हैं आपके पुजारीकरें आरती सेवा भारी ।
भैरव भात आपका गाऊँबार बार पद शीश नवाऊँ ।
आपहि वारे छीजन धायेऐलादी ने रूदन मचाये । 
बहन त्यागि भाई कहाँ जावेतो बिन को मोहि भात पिन्हावे ।
रोये बटुक नाथ करुणा करगये हिवारे मैं तुम जाकर ।
दुखित भई ऐलादी बालातब हर का सिंहासन हाला ।
समय ब्याह का जिस दिन आयाप्रभु ने तुमको तुरत पठाया ।
विष्णु कही मत विलम्ब लगाओतीन दिवस को भैरव जाओ ।
दल पठान संग लेकर धायाऐलादी को भात पिन्हाया ।
पूरन आस बहन की कीनीसुर्ख चुन्दरी सिर धर दीनी ।
भात लौटे भरा गुण ग्रामीनमो नमामी अन्तर्यामी ।

॥ दोहा ॥

जय जय जय भैरव बटुकस्वामी संकट टार । 
कृपा  दास पर कीजिएशंकर के अवतार ॥
जो यह  चालीसा पढ़ेप्रेम सहित सत बार । 
उस घर सर्वानन्द होंवैभव बढ़ें अपार ॥

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