श्री राधा चालीसा / Shri Radha Chalisa

श्री राधा चालीसा

श्री राधा चालीसा का पाठ करने की सामान्य विधि निम्नलिखित हो सकती है:
विधि:
  1. शुभ मुहूर्त का चयन: शुभ मुहूर्त का चयन करें, जैसे कि व्रत, पूजा, या विशेष पर्व।
  2. पूजा स्थान का चयन: एक शुद्ध और साफ स्थान का चयन करें जहां आप पूजा कर सकते हैं।
  3. श्री राधा माता की मूर्ति या चित्र के सामने बैठें: श्री राधा माता की मूर्ति, चित्र, या यंत्र के सामने बैठें।
  4. शुद्धि और स्नान: स्नान करें और शुद्धि धारण करें।
  5. पूजा का आरंभ: श्री राधा माता की पूजा का आरंभ करें, जैसे कि कलश पूजा, चौघड़िया पूजा, और देवी पूजा।
  6. मंत्र उच्चारण: फिर, "श्री राधा चालीसा" का पाठ करें, मन्त्र को ध्यानपूर्वक और भक्तिभाव से उच्चारित करें।
  7. आरती और प्रशाद: पूजा के बाद, देवी माता की आरती करें और प्रशाद बाँटें।
  8. भक्ति भाव: पूरे पाठ के दौरान और उसके बाद, आपको भक्ति भाव से भगवान की अनुपस्थिति में समर्पित रहना चाहिए।
इस प्रकार, आप श्री राधा माता का पाठ करने के लिए उपयुक्त विधि का पालन कर सकते हैं।

॥ दोहा ॥

श्री राधे वृषभानुजाभक्तनि प्राणाधार । 
वृन्दावनविपिन विहारिणिप्रणवों बारंबार ॥
जैसौ तैसौ रावरौकृष्ण प्रिया सुखधाम । 
रण शरण निज दीजियेसुन्दर सुखद ललाम ॥

 ॥ चौपाई ॥

जय वृषभान कुँवर श्री श्यामा कीरति नंदिनि शोभा धामा ।
नित्य बिहारिनि श्याम अधाराअमित मोद मंगल दातारा ।
रास विलासिनि रस विस्तारिनीसहचरि सुभग यूथ मन भावनि ।
नित्य किशोरी राधा गोरीश्याम प्राणधन अति जिय भोरी ।
करुणा सागर हिय उमंगिनिललितादिक सखियन की संगिनी ।
दिन कर कन्या कूल बिहारिनिकृष्ण प्राण प्रिय हिय हुलसावनि ।
नित्य श्याम तुमरौ गुण गावेंराधा राधा कहि हरषावें ।
मुरली में नित नाम उचारेतुव कारण प्रिया वृषभानु दुलारी ।
नवल किशोरी अति छवि धामाद्युति लघु लगै कोटि रति कामा ।
गौरांगी शशि निंदक बढ़नासुभग चपल अनियारे नयना ।
जावक युग युग पंकज चरनानूपुर धुनि प्रीतम मन हरना ।
संतत सहचरि सेवा करहींमहा मोद मंगल मन भरहीं ।
रसिकन जीवन प्राण अधाराराधा नाम सकल सुख सारा ।
अगम अगोचर नित्य स्वरूपाध्यान धरत निशदिन ब्रज भूपा ।
उपजेउ जासु अंश गुण खानीकोटिन उमा रमा ब्रह्यानी ।
नित्यधाम गोलोक विहारिनीजन रक्षक दुख दोष नसावनि ।
शिव अज मुनि सनकादिक नारदपार न पायें शेष अरु शारद ।
राधा शुभ गुण रूप उजारीनिरखि प्रसन्न होत बनवारी ।
ब्रज जीवन धन राधा रानीमहिमा अमित न जाय बखानी ।
प्रीतम संग देई गलबाँहीबिहरत नित्य वृन्दाबन माँही ।
राधा कृष्ण कृष्ण कहैं राधाएक रूप दोउ प्रीति अगाधा ।
श्री राधा मोहन मन हरनीजन सुख दायक प्रफुलित बदनी ।
कोटिक रूप धरें नंद नन्दादर्श करन हित गोकुल चन्दा ।
रास केलि करि तुम्हें रिझावेंमान करौ जब अति दुख पावें ।
प्रफुलित होत दर्श जब पावेंविविध भाँति नित विनय सुनावें ।
वृन्दारण्य बिहारिनि श्यामा नाम लेत पूरण सब कामा ।
कोटिन यज्ञ तपस्या करहूविविध नेम व्रत हिय में धरहू ।
तऊ न श्याम भक्तहिं अपनावेंजब लगि राधा नाम न गावे ।
वृन्दाविपिन स्वामिनी राधालीला बपु तब अमित अगाधा ।
स्वयं कृष्ण पावैं नहिं पाराऔर तुम्हें को जानन हारा 
श्री राधा रस प्रीति अभेदासारद गान करत नित वेदा ।
राधा त्यागि कृष्ण को भेजिहैंते सपनेहु जग जलधि न तरिहैं ।
कीरति कुँवरि लाड़िली राधासुमिरत सकल मिटहिं भव बाधा ।
नाम अमंगल मूल नसावनत्रिविध ताप हर हरि मन भावन ।
राधा नाम लेइ जो कोईसहजहि दामोदर बस होई ।
राधा नाम परम सुखदाईभजतहिं कृपा करहिं यदुराई ।
यशुमति नन्दन पीछे फिरिहैंजो कोउ राधा नाम सुमिरिहैं ।
रास विहारिन श्यामा प्यारीकरहु कृपा बरसाने वारी ।
वृन्दावन है शरण तिहारौजय जय जय वृषभानु दुलारी ।

॥ दोहा ॥

श्रीराधासर्वेश्वरीरसिकेश्वर घनश्याम । 
करहुँ निरंतर बास मैंश्रीवृन्दावन धाम ॥

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