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श्री संतोषी माँ चालीसा
"श्री संतोषी माँ चालीसा" का पाठ करने की सामान्य विधि निम्नलिखित हो सकती है:
विधि:
- शुभ मुहूर्त का चयन: शुभ मुहूर्त का चयन करें, जैसे कि सुबह या संध्या के समय।
- पूजा स्थान का चयन: एक शुद्ध और साफ स्थान का चयन करें जहां आप पूजा कर सकते हैं।
- संतोषी माँ की मूर्ति या चित्र के सामने बैठें: संतोषी माँ की मूर्ति, चित्र, या यंत्र के सामने बैठें।
- शुद्धि और स्नान: स्नान करें और शुद्धि धारण करें।
- पूजा का आरंभ: संतोषी माँ की पूजा का आरंभ करें, जैसे कि कलश पूजा, चौघड़िया पूजा, और देवी पूजा।
- मंत्र उच्चारण: फिर, "श्री संतोषी माँ चालीसा" का पाठ करें, मन्त्र को ध्यानपूर्वक और भक्तिभाव से उच्चारित करें।
- आरती और प्रशाद: पूजा के बाद, संतोषी माँ की आरती करें और प्रशाद बाँटें।
- भक्ति भाव: पूरे पाठ के दौरान और उसके बाद, आपको भक्ति भाव से भगवान की अनुपस्थिति में समर्पित रहना चाहिए।
इस प्रकार, आप श्री संतोषी माँ चालीसा का पाठ करने के लिए उपयुक्त विधि का पालन कर सकते हैं।
श्री संतोषी माँ चालीसा |
॥ दोहा ॥
श्री गणपति पद नाय सिर, धरि हिय शारदा ध्यान ।
सन्तोषी मां की करूँ, कीरति सकल बखान ।
॥ चौपाई ॥
जय संतोषी मां जग जननी, खल मति दुष्ट दैत्य दल हननी ।
गणपति देव तुम्हारे ताता, रिद्धि सिद्धि कहलावहं माता ।
माता-पिता की रहौ दुलारी, कीरति केहि विधि कहूं तुम्हारी ।
क्रीट मुकुट सिर अनुपम भारी, कानन कुण्डल को छवि न्यारी ।
सोहत अंग छटा छवि प्यारी, सुन्दर चीर सुनहरी धारी ।
आप चतुर्भुज सुघड़ विशाला, धारण करहु गले वन माला ।
निकट है गौ अमित दुलारी, करहु मयूर आप असवारी ।
जानत सबही आप प्रभुताई, सुर नर मुनि सब करहिं बड़ाई ।
तुम्हरे दरश करत क्षण माई, दुख दरिद्र सब जाय नसाई ।
वेद पुराण रहे यश गाई, करहु भक्त की आप सहाई ।
ब्रह्मा ढिंग सरस्वती कहाई, लक्ष्मी रूप विष्णु ढिंग आई ।
शिव ढिंग गिरजा रूप बिराजी, महिमा तीनों लोक में गाजी ।
शक्ति रूप प्रगटी जन जानी, रुद्र रूप भई मात भवानी |
दुष्टदलन हित प्रगटी काली, जगमग ज्योति प्रचंड निराली ।
चण्ड मुण्ड महिषासुर मारे, शुम्भ निशुम्भ असुर हनि डारे ।
महिमा वेद पुरानन बरनी, निज भक्तन के संकट हरनी ।
रूप शारदा हंस मोहिनी, निरंकार साकार दाहिनी ।
प्रगटाई चहुंदिश निज माया, कण कण में है तेज समाया ।
पृथ्वी सूर्य चन्द्र अरू तारे, तव इंगित क्रम बद्ध हैं सारे ।
पालन पोषण तुमहीं करता क्षण भंगुर में प्राण हरता ।
ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावैं, शेष महेश सदा मन लावे ।
मनोकामना पूरण करनी, पाप काटनी भव भय तरनी ।
चित्त लगाय तुम्हें जो ध्याता, सो नर सुख सम्पत्ति है पाता ।
बन्ध्या नारि तुमहिं जो ध्यावैं, पुत्र पुष्प लता सम वह पावें ।
पति वियोगी अति व्याकुलनारी, तुम वियोग अति व्याकुलयारी ।
कन्या जो कोई तुमको ध्यावै, अपना मन वांछित वर पावै ।
शीलवान गुणवान हो मैया, अपने जन की नाव खिवैया ।
विधि पूर्वक व्रत जो कोई करहीं, ताहि अमित सुख सम्पति भरहीं ।
गुड़ और चना भोग तोहि भावै, सेवा करै सो आनन्द पावै ।
श्रद्धा युक्त ध्यान जो धरहीं, सो नर निश्चय भव सों तरहीं ।
उद्यापन जो करहि तुम्हारा, ताको सहज करहु निस्तारा ।
नारि सुहागिन व्रत जो करती, सुख सम्पत्ति सों गोदी भरती |
जो सुमिरत जैसी मन भावा, सो नर वैसा ही फल पावा ।
सात शुक्र जो व्रत मन धारे, ताके पूर्ण मनोरथ सारे ।
सेवा करहि भक्ति युत जोई, ताको दूर दरिद्र दुख होई ।
जो जन शरण माता तेरी आवै, ताके क्षण में काज बनावै ।
जय जय जय अम्बे कल्यानी, कृपा करौ मोरी महारानी ।
जो कोई पढ़े मात चालीसा, तापे करहिं कृपा जगदीशा ।
नित प्रति पाठ करै इक बारा, सो नर रहै तुम्हारा प्यारा ।
नाम लेत ब्याधा सब भागे, रोग दोष कबहूँ नहीं लागे ।
॥ दोहा ॥
सन्तोषी माँ के सदा बन्दहुँ पग निश वास ।
पूर्ण मनोरथ हों सकल मात हरौ भव त्रास ॥
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