श्री सूर्य चालीसा / Shri Surya Chalisa

 श्री सूर्य चालीसा

श्री सूर्य चालीसा को पढ़ने की विधि निम्नलिखित हो सकती है

  • शुभ मुहूर्त का चयन: श्री सूर्य चालीसा का पाठ करने के लिए एक शुभ मुहूर्त का चयन करें, जैसे कि सुबह या संध्या के समय।
  • पूजा स्थान का चयन: एक शुद्ध और साफ पूजा स्थान का चयन करें जहां आप पूजा कर सकते हैं।
  • सूर्य देव की मूर्ति या छवि का स्थापना: सूर्य देव की मूर्ति या छवि को एक स्थान पर स्थापित करें।
  • पंज अग्रपूजा: पंज अग्रपूजा करें जिसमें फूल, दीप, धूप, अक्षत, और नैवेद्य शामिल होते हैं।
  • सूर्य चालीसा का पाठ: सूर्य चालीसा का पाठ भक्तिभाव से करें।
  • आरती और भजन: सूर्य देव की आरती और उनके भजनों का आनंद लें।
  • मन्त्रों का जप: सूर्य देव के मंत्रों का जप करें, जैसे "ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः"।
  • आरती और प्रशाद: सूर्य देव की आरती करें और प्रसाद बाँटें।
  • भक्ति भाव: पूजा के दौरान और उसके बाद, आपको भक्ति भाव से सूर्य देव की आराधना करनी चाहिए।

यह स्थानीय संस्कृति और आचार्यों के अनुसार भिन्न हो सकती है। इसलिए, अपनी पूजा और आराधना को अपनी आदतों और परंपराओं के अनुसार समायोजित करें।

॥ दोहा ॥

कनक बदन कुण्डल मकरमुक्ता माला अङ्ग । 
पद्मासन स्थित ध्याइयेशंख चक्र के सङ्ग ॥

॥ चौपाई ॥

जय सविता जय जयति दिवाकरसहस्त्रांशु ! सप्ताश्व तिमिरहर ।
भानु ! पतंग ! मरीची! भास्कर! सविता! हंस सुनूर विभाकर ।
विवस्वान ! आदित्य! विकर्तनविकर्तनमार्तण्ड हरिरूप विरोचन ।
अम्बरमणि! खग ! रवि कहलातेवेद हिरण्यगर्भ कह गाते ।
सहस्त्रांशुप्रद्योतनकहि कहिमुनिगन होत प्रसन्न मोदलहि ।
अरुण सदृश सारथी मनोहरहाँकत हय साता चढ़ि रथ पर ।
मंडल की महिमा अति न्यारीतेज रूप केरी बलिहारी ।
उच्चैःश्रवा सदृश हय जोते! देखि पुरंदर लज्जित होते ।
मित्र १. मरीचि २. भानु ३. अरुण भास्कर ४. सविता ।
५. सूर्य ६. अर्क ७. खग ८. कलिकर पूषा ९. रवि ।
१०. आदित्य ११. नाम लैहिरण्यगर्भाय नमः १२. कहिकै ।
द्वादस नाम प्रेम सों गावैंमस्तक बारह बार नवावै ।
चार पदारथ सो जन पावैदुःख दारिद्र अघ पुञ्ज नसावै ।
नमस्कार को चमत्कार यहविधि हरिहर कौ कृपासार यह ।
सेवै भानु तुमहिं मन लाईअष्टसिद्धि नवनिधि तेहिं पाई 
बारह नाम उच्चारन करतेसहस जनम के पातक ठरते ।
उपाख्यान जो करते तवजनरिपु सों जमलहते सोतेहि छन ।
छन सुत जुत परिवार बढतु हैप्रबलमोह को फँद कटतु है ।  
अर्क शीश को रक्षा करतेरवि ललाट पर नित्य बिहरते ।

 
 

सूर्य नेत्र पर नित्य विराजतकर्ण देस पर दिनकर छाजत ।
भानु नासिका वास करहु नितभास्कर करत सदा मुख कौ हित ।
ओंठ रहैं पर्जन्य हमारेरसना बीच तीक्ष्ण बस प्यारे ।
कंठ सुवर्ण रेत की शोभातिग्मतेजसः कांधे लोभा 
पूषां बाहू मित्र पीठहिं परत्वष्टा-वरुण रहम सुउष्णकर ।
युगल हाथ पर रक्षा कारनभानुमान उरसर्म सुउदरचन ।
बसत नाभि आदित्य मनोहरकटि मंह हँस रहत मन मुदभर ।
जंघा गोपतिसविता बासागुप्त दिवाकर करत हुलासा ।
विवस्वान पद की रखवारीबाहर बसते नित तम हारी ।
सहस्त्रांशु सर्वांग सम्हारैरक्षा कवच विचित्र विचारे ।
अस जोजन अपने मन माहींभय जग बीज करहुँ तेहि नाहीं ।
दरिद्र कुष्ट तेहिं कबहुँ न व्यापैजोजन याको मनमहं जापै ।
अंधकार जग का जो हरतानव प्रकाश से आनन्द भरता ।
ग्रह गन ग्रसि न मिटावत जाहीकोटि बार मैं प्रनवौं ताही ।
मन्द सदृश सुतजग में जाकेधर्मराज सम अद्भुत बाँके ।
धन्य - २ तुम दिनमनि देवाकिया करत सुरमुनि नर सेवा |
भक्ति भावयुत पूर्ण नियमसों दूर हटतसो भवके भ्रमसों ।
परम धन्य सो नर तनधारीहैं प्रसन्न जेहि पर तम हारी ।
अरुण माघ महं सूर्य फाल्गुनमध वेदांगनाम रवि उदयन ।
भानु उदय वैसाख गिनावैज्येष्ठ इन्द्र आषाढ़ रवि गावै ।
यम भादों आश्विन हिमरेताकातिक होत दिवाकर नेता ।
अगहन भिन्न विष्णु हैं पूसहिंपुरुष नाम रवि हैं मलमासहिं ।

॥ दोहा ॥

भानु चालीसा प्रेम युतगावहि जे नर नित्य । 
सुख सम्पत्ति लहै विविधहोंहि सदा कृतकृत्य ॥

टिप्पणियाँ