श्री विश्वकर्मा चालीसा / Shri Vishwakarma Chalisa

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 श्री विश्वकर्मा चालीसा

श्री विश्वकर्मा चालीसा को पूजन विधि

विधि:

  1. शुभ मुहूर्त का चयन: श्री विश्वकर्मा चालीसा का पाठ करने के लिए एक शुभ मुहूर्त का चयन करें, जैसे कि सुबह या संध्या के समय।
  2. पूजा स्थान का चयन: एक शुद्ध और साफ पूजा स्थान का चयन करें जहां आप पूजा कर सकते हैं।
  3. मूर्ति स्थापना: श्री विश्वकर्मा की मूर्ति या उनके प्रति का स्थापना करें।
  4. पंज अग्रपूजा: पंज अग्रपूजा करें जिसमें फूल, दीप, धूप, अक्षत, और नैवेद्य शामिल होते हैं।
  5. विश्वकर्मा चालीसा का पाठ: श्री विश्वकर्मा चालीसा का पाठ भक्तिभाव से करें।
  6. आरती और भजन: विश्वकर्मा आरती और भजनों का आनंद लें।
  7. मन्त्रों का जप: श्री विश्वकर्मा के मंत्रों का जप करें, जैसे कि "ॐ विश्वकर्मणे नमः"।
  8. आरती और प्रशाद: विश्वकर्मा आरती करें और प्रशाद बाँटें।
  9. भक्ति भाव: पूजा के दौरान और उसके बाद, आपको भक्ति भाव से विश्वकर्मा की आराधना करनी चाहिए।

इस विधि को अपनी आदतों और परंपराओं के अनुसार समायोजित करें, क्योंकि यह स्थानीय सांस्कृतिक अनुसार भिन्न हो सकती है।


॥ दोहा ॥

विनय करौं कर जोड़कर मन वचन कर्म संभारि । 
मोर मनोरथ पूर्ण कर विश्वकर्मा दुष्टारि ॥

॥ चौपाई ॥

विश्वकर्मा तव नाम अनूपापावन सुखद मनन अनरूपा ।
सुन्दर सुयश भुवन दशचारीनित प्रति गावत गुण नरनारी ।
शारद शेष महेश भवानीकवि कोविद गुण ग्राहक ज्ञानी ।
आगम निगम पुराण महानागुणातीत गुणवन्त सयाना ।
जग महँ जे परमारथ वादीधर्म धुरन्धर शुभ सनकादि ।
नित नित गुण यश गावत तेरेधन्य-धन्य विश्वकर्मा मेरे ।
आदि सृष्टि महँ तू अविनाशीमोक्ष धाम तजि आयो सुपासी ।
जग महँ प्रथम लीक शुभ जाकीभुवन चारि दश कीर्ति कला की ।
ब्रह्मचारी आदित्य भयो जबवेद पारंगत ऋषि भयो तब ।
दर्शन शास्त्र अरु विज्ञ पुरानाकीर्ति कला इतिहास सुजाना ।
तुम आदि विश्वकर्मा कहलायोचौदह विद्या भू पर फैलायो ।
लोह काष्ठ अरु ताम्र सुवर्णाशिला शिल्प जो पंचक वर्णा ।
दे शिक्षा दुख दारिद्र नाश्योसुख समृद्धि जगमहँ परकाश्यो ।
सनकादिक ऋषि शिष्य तुम्हारेब्रह्मादिक जै मुनीश पुकारे ।
जगत गुरु इस हेतु भये तुमतम-अज्ञान समूह हने तुम ।
दिव्य अलौकिक गुण जाके वरविघ्न विनाशन भय टारन कर ।
सृष्टि करन हित नाम तुम्हाराब्रह्मा विश्वकर्मा भय धारा ।
विष्णु अलौकिक जगरक्षक समशिवकल्याणदायक अति अनुपम ।
नमो नमो विश्वकर्मा देवासेवत सुलभ मनोरथ देवा ।
देव दनुज किन्नर गन्धर्वाप्रणवत युगल चरण पर सर्वा ।
अविचल भक्ति हृदय बस जाकेचार पदारथ करतल जाके ।
सेवत तोहि भुवन दश चारीपावन चरण भवोभव कारी ।
विश्वकर्मा देवन कर देवासेवत सुलभ अलौकिक मेवा ।
लौकिक कीर्ति कला भण्डारादाता त्रिभुवन यश विस्तारा ।
भुवन पुत्र विश्वकर्मा तनुधरिवेद अथर्वण तत्व मनन करि ।
अथर्ववेद अरु शिल्प शास्त्र काधनुर्वेद सब कृत्य आपका 
जब जब विपति बड़ी देवन परकष्ट हन्यो प्रभु कला सेवन कर ।
विष्णु चक्र अरु ब्रह्म कमण्डलरुद्र शूल सब रच्यो भूमण्डल ।
इन्द्र धनुष अरु धनुष पिनाकापुष्पक यान अलौकिक चाका ।
वायुयान मय उड़न खटोलेविद्युत कला तंत्र सब खोले ।
सूर्य चन्द्र नवग्रह दिग्पालालोक लोकान्तर व्योम पताला ।
अग्नि वायु क्षिति जल अकाशाआविष्कार सकल परकाशा ।
मनु मय त्वष्टा शिल्पी महानादेवागम मुनि पंथ सुजाना ।
लोक काष्ठशिल ताम्र सुकर्मास्वर्णकार मय पंचक धर्मा ।
शिव दधीचि हरिश्चन्द्र भुआराकृत युग शिक्षा पालेऊ सारा ।
परशुरामनलनीलसुचेतारावणराम शिष्य सब त्रेता ।
द्वापर द्रोणाचार्य हुलासाविश्वकर्मा कुल कीन्ह प्रकाशा ।
मयकृत शिल्प युधिष्ठिर पायेऊविश्वकर्मा चरणन चित ध्यायेऊ ।
नाना विधि तिलस्मी करि लेखाविक्रम पुतली दृश्य अलेखा ।
वर्णातीत अकथ गुण सारानमो नमो भय टारन हारा 

॥ दोहा ॥

दिव्य ज्योति दिव्यांश प्रभुदिव्य ज्ञान प्रकाश । 
दिव्य दृष्टि तिहुँ कालमहँ विश्वकर्मा प्रभास ॥
विनय करो करि जोरियुग पावन सुयश तुम्हार । 
धारि हिय भावत रहे होय कृपा उद्गार ॥

॥ छन्द ॥

जो नर सप्रेम विराग श्रद्धा सहित पढ़िहहि सुनि है । 
विश्वास करि चालीसा चौपाई मनन करि गुनि है ॥
भव फंद विघ्नों से उसे प्रभु विश्वकर्मा दूर कर । 
मोक्ष सुख देंगे अवश्य ही कष्ट विपदा चूर कर ॥

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