उत्तराखण्ड बनने का संघर्ष एवं उससे जुड़े तथ्य | (The struggle to become Uttarakhand and the facts related to it.)

उत्तराखण्ड बनने का संघर्ष एवं उससे जुड़े तथ्य |The struggle to become Uttarakhand and the facts related to it.

  1. उत्तराखण्ड का उदय किसी एक व्यक्ति या संगठन की शहादत और सोच का परिणाम नहीं है. यह सुखद बेला आजादी से पहले गठित होती रही. अनेक संगठनों व छः वर्ष पहले शुरू हुए जनान्दोलनों के दौरान शहीद हुए दर्जनों से अधिक राज्यप्रेमियों के बलिदान का प्रतिफल है.  
  2.   क्षेत्रीय समस्याओं पर विचार के लिए 1926 में कुमाऊँ परिषद् का गठन, जिसके कर्ताधर्ता, गोविन्द बल्लभ पन्त, तारादत्त गेरोला तथा बद्रीदत्त पाण्डे थे.
  3. 1938 में श्रीदेव सुमन ने दिल्ली में 'गढ़देश सेवा संघ' की स्थापना की जिसे बाद में 'हिमालय सेवा संघ' नाम दिया गया.
  4. आजादी के बाद 1950 में वृहद हिमालयी राज्य (हिमाचल और उत्तराखण्ड मिलाकर) के लिए 'पर्वतीय 

जन विकास समिति' का गठन.

  1. जून 1967 में 'पर्वतीय राज्य परिषद्' का गठन जिसके अध्यक्ष दयाकृष्ण पाण्डे, उपाध्यक्ष गोविन्द सिंह मेहरा और महासचिव नारायणदत्त सुन्द्रियाल थे.
  2. 1970 में पी. सी. जोशी ने 'कुमाऊँ राष्ट्रीय मोर्चा'" गठित किया.
  3. 1972 में नैनीताल में 'उत्तरांचल परिषद्' का गठन.
  4. 1979 में मसूरी में पर्वतीय जन विकास सम्मेलन के अवसर पर 'उत्तराखण्ड क्रान्ति दल' का गठन, जिसके अध्यक्ष कुमाऊँ विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति डी. डी. पन्त चुने गए.
  5. 1988 में भारतीय जनता पार्टी के शोवन सिंह जीमा की अध्यक्षता में 'उत्तरांचल उत्थान परिषद्' का गठन.
  6. 1988 सितम्बर में 'उत्तरांचल प्रदेश संघर्ष समिति' का गठन.
  7. फरवरी 1989 में तमाम संगठनों ने संयुक्त आन्दोलन चलाने के लिए 'उत्तरांचल संयुक्त संघर्ष समिति' गठित की.
  8. 1994 के जनआन्दोलन के दौरान उत्तराखण्ड के विभिन्न क्षेत्रों समेत देश की राजधानी दिल्ली में भी तमाम संगठनों ने राज्य प्राप्ति आन्दोलन में सक्रिय भूमिका निभायी. इनमें उत्तराखण्ड क्षेत्र में उत्तराखण्ड संयुक्त छात्र संघर्ष समिति, उत्तराखण्ड छात्र युवा संघर्ष समिति, प्रगतिशील महिला मंच, नारी संघर्ष समिति, उत्तराखण्ड महिला मोर्चा, उत्तराखण्ड संयुक्त संघर्ष समिति, पर्वतीय कर्मचारी शिक्षक संगठन, उत्तराखण्ड भूतपूर्व सैनिक संगठन के अलावा दिल्ली में उत्तराखण्ड जनता संघर्ष मोर्चा, उत्तराखण्ड महासभा, उत्तराखण्ड राज्य लोक मंच और उत्तराखण्ड संयुक्त संघर्ष समिति के नाम प्रमुख हैं.
  9. आजादी से पूर्व कुमाऊँ केसरी बद्रीदत्त पाण्डेय व गढ़केसरी अनुसूया प्रसाद बहुगुणा ने कुमाऊँ गढ़वाल को अलग इकाई के रूप में बनाने की बातें समय -समय पर उठाई थीं.
  10. सन् 1955 में फजल अली कमीशन ने उत्तर प्रदेश के पुनर्गठन की वात इस क्षेत्र को अलग राज्य बनाने के दृष्टिकोण से की.
  11. 1957 में योजना आयोग के उपाध्यक्ष टी. टी. कृष्णामाचारी ने पहाड़ी क्षेत्रों की समस्याओं पर विशेष ध्यान देने का सुझाव दिया जिस पर गम्भीरतापूर्वक विचार नहीं किया गया.
  12. 12 मई, 1970 को तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने स्पष्ट कहा था कि "उत्तर प्रदेश के पहाड़ी जिलों के पिछड़ेपन और गरीबी का दायित्व केन्द्र व राज्य सरकार दोनों का है."
  13. 1987 में भारतीय जनता पार्टी ने लालकृष्ण आडवाणी की अध्यक्षता में अल्मोड़ा में आयोजित वैठक में अलग उत्तराखण्ड राज्य की बात को स्वीकारा.
  14. भाजपा की सरकार ने 1991 में विधान सभा में उत्तरांचल (अब उत्तराखण्ड) राज्य का प्रस्ताव पास कर केन्द्र की स्वीकृति के लिए भेज दिया था. 
  15. 1994 में मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने उत्तराखण्ड के लिए कौशिक समिति गठित की. समिति ने 21 जून, 1994 को अपनी रिपोर्ट शासन को सौंप दी. समिति ने उत्तराखण्ड राज्य की वकालत की.
  16. 1996 में प्रधानमंत्री देवगौड़ा ने 15 अगस्त को लाल किले से उत्तराखण्ड राज्य निर्माण की घोषणा की व उत्तर प्रदेश विधान सभा की राय जानने के लिए विधेयक भेजा.
  17. 1998 में पहली बार भाजपा सरकार ने राष्ट्रपति के माध्यम से उत्तरांचल राज्य सम्बन्धी विधेयक उत्तर प्रदेश की विधान सभा को भेजा.
  18. 2000 में वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार ने पुनः उत्तर प्रदेश को उत्तरांचल राज्य का विधेयक भेजा. केंद्र  सरकार ने 27 जुलाई को लोक सभा में पेश किया. 1अगस्त को यह विधेयक लोक सभा में व 10 अगस्त को राज्य सभा में पारित कर दिया गया. 28 अगस्त को उत्तरांचल को राष्ट्रपति की मंजूरी भी मिल गई.
  19. 9 नवम्बर, 2000 को केन्द्र ने तिथि तय की. इस तरह 9 नवम्बर, 2000 उत्तरांचल के लिए ऐतिहासिक तिथि बन गई, 

उत्तराखंड आन्दोलन की फोटो 

  1. 1 जनवरी, 2007 से उत्तरांचल का नामकरण उत्तराखण्ड किया गया.
  2. उत्तराखण्ड विधान सभा द्वारा उत्तराखण्ड लोकायुक्त विधेयक 2014 को 21 जनवरी, 2014 को पारित किया गया. यह विधेयक लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम 2013 के अनुपालन में पारित किया गया.
  3. तारीख 2 अक्टूबर, साल 1994, रामपुर तिराह कांड: उत्तराखंड की मांग और एक खूनी दास्तान आज उत्तराखंड दिवस है. जो हर उत्तराखंडवासी के लिए खास है, लेकिन उन आंदोलनकारियों के लिए एक दर्द और पीड़ा जिन्होंने इसकी मांग में आंदोलन चलाया था.
  4. 9 नवंबर उत्तराखंड के लिए बहुत खास दिन है. इसी दिन राज्य की स्थापना हुई थी. हालांकि उत्तरप्रदेश से एक अलग राज्य उत्तराखंड बनने का रास्ता कई लोगों की जिंदगी और महिलाओं की इज्जत से होकर गुजरा था, जिसे लोग रामपुर तिराहा कांड के नाम से जानते हैं.
  5. इस कांड की जब भी बात होती है तो वो परिवार उसे सोचकर भी कांप उठते होंगे जिन्होंने अपने परिवार के किसी सदस्य को खोया है. साथ ही उन महिलाओं के मन में भी सवाल खड़ा होता होगा कि क्या वाकई पुलिस हमारी रक्षा के लिए है. 
  6. रामपुर तिराहा कांड में कई महिलाओं ने अपनी आबरु खो दी थी तो वहीं 7 लोगों ने पुलिस की गोलीबारी का शिकार होकर अपनी जान गवां दी थी. तो चलिए आज उत्तराखंड दिवस पर ये एक अलग राज्य कैसे बना और क्या है रामपुर तिराहा कांड इसके पीछे की कहानी जानते हैं.
  7. 'बाड़ी-मडुआ खाएंगे उत्तराखंड बनाएंगे' इसी नारे के साथ उत्तरप्रदेश से एक अलग राज्य उत्तराखंड बनाने की मांग उठी थी. ये नारा हर आंदोलनकारी की जुबान पर था. कई नेताओं को पहाड़ी लोगों ने वोट नहीं दिया था. वो उनसे खफा थे, हालांकि खफा वो लोग भी थे जिन्हें अलग राज्य नहीं मिल रहा था. लिहाजा देखते ही देखते इस मांग ने जोर पकड़ लिया. 
  8. 1 अक्टूबर 1994 का दिन था, ठंड दस्तक दे चुकी थी और उसके बीच आंदोलन की आग भी बढ़ गई थी. आंदोलनकारियों का जत्था अलग उत्तराखंड की मांग लिए नारेबाजी करते हुए आगे बढ़ गया. पहाड़ी इलाकों से 24 बसों में सवार होकर कुछ आंदोलनकारी दिल्ली की तरफ रवाना हो गए. जिन्हें पहले रुड़की और फिर नारसन बॉर्डर पर रोका गया. 
  9. हालांकि आंदोलनकारी नहीं रुके और फिर आगे बढ़ गए. उन्हें रोकने के पुलिस और प्रशासन के कई प्रयास विफल हो रहे थे. जिसके बाद उन्हें फिर रामपुर तिराहे पर रोकने का फैसला किया गया.
  10. रामपुर तिराहे पर जो होने वाला था प्रदर्शनकारियों को उसका बिल्कुल अंदाजा नहीं था ना ही उन्होंने इसकी कल्पना की होगी. दरअसल तिराहे पर प्रदर्शनकारी जैसे ही पहुंचे तो वहां पुलिस से उनकी कहासुनी हो गई. देखते ही देखते ये कहासुनी तेज नारेबाजी और पथराव में तब्दील हो गई. बताया गया कि पत्थर प्रदर्शनकारियों की ओर से फेंके जा रहे थे. जिसमें जीएम अनंत कुमार भी घायल हो गए थे.
  11. इसके बाद पुलिस ने कार्रवाई करते हुए क्रूरता से लाठीचार्ज किया और लगभग ढाई सौ प्रदर्शनकारियों को हिरासत में ले लिया गया. झड़प बहुत तेज हुई थी जिसमें कई महिलाओं की आबरू को भी निशाना बनाया गया.
  12. कई महिलाओं के साथ क्षेड़खानी और दुष्कर्म हुआ. जिसका आरोप पुलिसवालों पर लगा. लूटपाट की घटनाएं भी घटीं, जिनमें भी पुलिस को आरोपी बनाया गया.
  13. फिर जब मामले की खबर सभी दूर फैली तो 40 बसों से प्रदर्शनकारी रामपुर तिराहे पर पहुंच गए. इसके बाद फिर झड़प तेज हो गई. दूसरा दिन यानी 2 अक्टूबर को मामला ज्यादा संघर्षपूर्ण स्थिति में पहुंच चुका था. लोगों को नियंत्रित करने के लिए पुलिस ने 24 राउंड फायरिंग की. 
  14. इस फायरिंग में 7 लोगों की जान चली गई और लगभग डेढ़ दर्जन लोग घायल हो गए. मामला बहुत आगे बढ़ चुका था.

तेज हुआ आंदोलन

  1. इस घटना ने सभी को अंदर तक झकझोर दिया था. मुज्फ्फरपुर में लगी इस आग की चिंगारी पूरे देश में फैल चुकी थी. हर कोई इस घटना को जानकर हैरान था. वहीं जिनके परिवार के इस घटना से प्रभावित हुए थे उनका हाल ही बुरा था. हालांकि इस घटना ने एक अलग राज्य की मांग की चिंगारी में आग लगाने का भी काम किया.
  2. 6 सालों तक उत्तराखंड बनाने की मांग लिए आंदोलन चला और आखिरकार 9 नवंबर साल 2000 को उत्तरप्रदेश से एक अलग राज्य का उदय हुआ, जिसे अब उत्तराखंड के नाम से जाना जाता है. आज उत्तराखंड को बने 23 साल का वक्त बीत चुका है, लेकिन रामपुर तिराहे पर हुई वो घटना लोगों के दिलों को अब भी झकझोर देती है.

सीबीआई के पास पहुंचा केस

  1. इस रामपुर तिराहा कांड की चिंगारी लोगों के दिलों से अब भी मिटी नहीं थी. मामले में कई पुलिसकर्मियों और प्रशासनिक अधिकारियों पर एफआईआर दर्ज हुई. जिसके दो साल बाद यानी 1995 में इलाहबाद हाई कोर्ट ने इस मामले में सीबीआई जांच के आदेश दिए. 
  2. इस कांड में 2 दर्जन से अधिक पुलिसवालों पर दुष्कर्म, डकैती, महिलाओं के साथ छेड़छाड़ जैसे गंभीर मामले दर्ज हुए थे. वहीं पुलिस पर भीड़ पर फायरिंग करने के भी आरोप था. इसके अलावा सीबीआई के पास भी सैकड़ों शिकायतें दर्ज करवाई गईं.
  3. साल 2003 में इस मामले में तत्कालीन डीएम को भी नामजद किया गया. केस लंबा चला लेकिन पीड़ित हारने वालों में से नहीं थे. मामले में उत्तराखंड हाईकोर्ट ने एक पुलिसकर्मी को सात साल जबकि दो अन्य पुलिसकर्मियों को 2-2 साल की जेल की सजा सुनाई. वहीं 2007 में तत्कालीन एसपी को भी सीबीआई कोर्ट ने बरी कर दिया.
  4. अब भी न्यायालय में चल रहे हैं कई मामले
  5. हालांकि रामपुर तिराहा कांड के कई मामले अब भी न्यायालय में चल रहे हैं. जिनमें पीड़ितों को अब भी इंसाफ का इंतजार है. 

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