बसंती बिष्ट से पहले उत्तराखंड में जागर (Jagar in Uttarakhand before Basanti Bisht)

बसंती बिष्ट: उत्तराखंड की पहली जागर गायिका और लोक संस्कृति की ध्वजवाहक

बसंती बिष्ट का परिचय

उत्तराखंड की लोक संस्कृति को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने वाली बसंती बिष्ट न केवल एक जागर गायिका हैं, बल्कि पारंपरिक गीतों की संरक्षक भी हैं। चमोली जिले के ल्वाणी गांव की निवासी बसंती बिष्ट ने वह कर दिखाया जो पहले केवल पुरुषों का क्षेत्र माना जाता था। उनके प्रयासों ने उत्तराखंड के पारंपरिक संगीत, विशेषकर जागर, मांगल, पांडवाणी, और न्यौली जैसे गीतों को एक नई ऊंचाई दी है।

Famous Women of Uttarakhand Smt. Basanti Bisht

जागर की परंपरा और उसमें बसंती बिष्ट का योगदान

जागर उत्तराखंड की एक पुरानी परंपरा है, जिसमें ग्राम देवताओं और नंदा देवी जैसे देवी-देवताओं का आह्वान गीतों के माध्यम से किया जाता है। यह आमतौर पर डौंर, थाली, और हुड़का जैसे वाद्ययंत्रों के साथ गाया जाता है। जागर पहले पुरुष प्रधान परंपरा मानी जाती थी। लेकिन बसंती बिष्ट ने इस धारणा को तोड़ते हुए महिलाओं को भी जागर गाने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने जागर को एक पुस्तक 'नंदा के जागर- सुफल ह्वे जाया तुम्हारी जात्रा' में संजोया और इसे अपनी आवाज में रिकॉर्ड कर लोगों तक पहुंचाया।

बसंती बिष्ट की जीवन यात्रा

बसंती बिष्ट का जन्म चमोली जिले के उस क्षेत्र में हुआ जिसे नंदा देवी का ससुराल माना जाता है। उनकी मां बिरमा देवी ने उन्हें जागर और स्तुति गीतों की प्रारंभिक शिक्षा दी। शादी के बाद, उनके पति ने उन्हें गायन के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने चंडीगढ़ के प्राचीन कला केंद्र से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली और अपने हुनर को निखारा।

उत्तराखंड आंदोलन में योगदान

1990 के दशक में उत्तराखंड आंदोलन के दौरान, बसंती बिष्ट ने अपने गीतों के माध्यम से आंदोलनकारियों का हौसला बढ़ाया। उन्होंने मंचों पर गीत गाकर राज्य आंदोलन को सशक्त बनाने का आह्वान किया। उनके गीत आज भी उत्तराखंड के इतिहास में गर्व के साथ गाए जाते हैं।

महिलाओं के लिए प्रेरणा

चालीस वर्ष की आयु में जब अधिकांश महिलाएं अपने घरेलू दायरे तक सीमित रहती हैं, बसंती बिष्ट ने जागर गायन की शुरुआत की। उन्होंने परंपरागत 'पाखुला' पहनकर जागर गाने की परंपरा को पुनर्जीवित किया और इसे सम्मानजनक स्थान दिलाया।

सम्मान और उपलब्धियां

बसंती बिष्ट को लोक संस्कृति के प्रचार-प्रसार के लिए भारत सरकार ने 2017 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया। यह सम्मान उत्तराखंड की संस्कृति को नई पहचान दिलाने में उनके योगदान का प्रमाण है।

बसंती बिष्ट और मां नंदा देवी का विशेष संबंध

हर 12 साल में आयोजित होने वाली नंदा देवी की धार्मिक यात्रा का अंतिम पड़ाव चमोली जिले के ल्वाणी गांव में होता है। बसंती बिष्ट ने नंदा देवी की स्तुति में कई जागर गाए और इन्हें अपनी पुस्तक और सीडी के माध्यम से संरक्षित किया।

निष्कर्ष

बसंती बिष्ट ने अपने साहस, दृढ़ता, और मेहनत से उत्तराखंड की लोक संस्कृति को जीवंत रखने का काम किया। उन्होंने न केवल जागर गायन में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित की, बल्कि इसे राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंचों तक पहुंचाया। उनकी कहानी प्रेरणा देती है कि परंपराओं को सहेजते हुए भी नई ऊंचाइयों को छुआ जा सकता है।

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1. बसंती बिष्ट कौन हैं?

बसंती बिष्ट उत्तराखंड की पहली महिला जागर गायिका हैं। उन्होंने पारंपरिक जागर गायन में महिलाओं की भागीदारी को स्थापित किया और जागर को राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पहचान दिलाई।


2. बसंती बिष्ट का जन्म और शिक्षा कहां हुई?

बसंती बिष्ट का जन्म उत्तराखंड के चमोली जिले के ल्वाणी गांव में हुआ। उन्होंने केवल 5वीं कक्षा तक शिक्षा प्राप्त की।


3. जागर क्या है, और इसका महत्व क्या है?

जागर एक पारंपरिक गायन शैली है, जो देवताओं और देवी-देवताओं का आह्वान करने के लिए गाई जाती है। इसमें डौंर, हुड़का और थाली जैसे वाद्ययंत्रों का उपयोग होता है। जागर मुख्य रूप से ग्राम देवताओं को समर्पित होता है।


4. बसंती बिष्ट ने जागर गायन में कैसे प्रवेश किया?

बसंती बिष्ट ने अपनी मां बिरमा देवी से जागर और स्तुति गीतों की शुरुआती शिक्षा ली। शादी के बाद उनके पति ने उन्हें संगीत की विधिवत शिक्षा लेने के लिए प्रेरित किया।


5. जागर गायन में बसंती बिष्ट की प्रमुख उपलब्धियां क्या हैं?

  • पद्मश्री सम्मान: बसंती बिष्ट को 2017 में भारत सरकार ने लोक संस्कृति को संरक्षित और प्रचारित करने के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया।
  • पहली महिला जागर गायिका: उन्होंने महिलाओं के मंच पर जागर गाने की परंपरा शुरू की।
  • साहित्यिक योगदान: उन्होंने अपनी पुस्तक "नंदा के जागर - सुफल ह्वे जाया तुम्हारी जात्रा" के माध्यम से जागर को संकलित किया।

6. बसंती बिष्ट का उत्तराखंड आंदोलन में क्या योगदान है?

उत्तराखंड राज्य आंदोलन के दौरान, बसंती बिष्ट ने अपने गीतों के माध्यम से लोगों को आंदोलन में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। उनके गीत आंदोलन के दौरान कई मंचों पर गाए गए।


7. बसंती बिष्ट का जागर और नंदा देवी से क्या संबंध है?

बसंती बिष्ट ने नंदा देवी के स्तुति गीतों और जागर को अपनी आवाज में गाया और इसे संरक्षित करने के लिए किताब और सीडी के रूप में प्रस्तुत किया। नंदा देवी को उत्तराखंड की बेटी और देवी माना जाता है।


8. बसंती बिष्ट के पारंपरिक पोशाक और वाद्ययंत्रों का क्या महत्व है?

  • पारंपरिक पोशाक: वह जागर गायन के दौरान "पाखुला" पहनती हैं, जो काले रंग का कंबल है।
  • वाद्ययंत्र: जागर गाने के दौरान वह खुद डौंर बजाती हैं, जो पारंपरिक वाद्ययंत्र है।

9. बसंती बिष्ट ने जागर गायन के लिए कौन सी औपचारिक शिक्षा प्राप्त की?

उन्होंने चंडीगढ़ के प्राचीन कला केंद्र से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली। यह शिक्षा उनके पति की प्रेरणा से संभव हुई।


10. बसंती बिष्ट के प्रेरणादायक जीवन से क्या सीख मिलती है?

बसंती बिष्ट का जीवन यह सिखाता है कि उम्र या सामाजिक बाधाएं किसी के जुनून को रोक नहीं सकतीं। उन्होंने परंपराओं को जीवित रखने के साथ-साथ नई राहें भी बनाई हैं।

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