गढ़वाली शायरी पहाड़ की शायरी भाग 2 (Garhwali Shayari Pahar Shayari Part -2)

गढ़वाली शायरी पहाड़ की शायरी  भाग 2 (Garhwali Shayari Pahar Shayari Part -2) 

रूप की चर्चा हुन्दी वेमा ही हारी जांदा
स्वभाव नि देखदा जु पेली बटी बाद मा
बड़ा पछतांदा।
रुप तो उम्र भर निरेंदू स्वभोव तो मन
बगत तक साथ देंदू

(#गढ़वाली) 

(#हिंदी_मैं) 

रुप की अक्सर चर्चा होती है उसमें ही लोग हार जाते हैं
अक्सर जो स्वभाव पहले नहीं देखते बाद में पछताते हैं रुप जीवन भर नहीं रहता और स्वभाव मरने तक रहता हैं

तेरे ही खयालों में अब कटती है मेरी दिन रात तुझ पर ही शुरु तुझ पर ही खत्म होती मेरी हर बात


तुझसे मुलाक़ात को मेरी आंखें तरस चुकी है मुझे भी नही आती थी नींद पहले रातों मे आने लगी है जबसे सिरहाने तेरी तस्वीर रखी है


चरस भी जो छानकर पिए
भूत भी बीड़ी मांगकर पिए.....
जो बोलने में भी बल लगाए
कामचोर बैलों से भी हल लगाए...

(#गढ़वाली) 

जिसके सीने में उबाल हो 
जिसकी बनाई कच्ची भी बवाल हो... 
जो फोजी भाई के घर के चक्कर लगाए 
कैंटीन की पूरी बॉटल पीकर झूम जाए...
( #गढ़वाली) 

मुर्गा कटिंग करके शादी में जाए
हर शादी से स्याली का नंबर ले आए...
जाते होंगे बाकी डेट पर "nirbhgiii"
जो अपनी वाली को कौथिग घुमाए ..
(#गढ़वाली) 

फ्योंली की फूल

डांडियों-कांठियों म खिली गे फ्योंली।
गौं - गुठियार म मिली गे फ्योंली।
रीता पाखियों म भी खिली गे फ्योंली।
चौक - डिंडयाली म मिली गे फ्योंली।
गहरा गदनों म फ्योंली ही फ्योंली।
घास का बूटों म फ्योंली ही फ्योंली।
तिलवाड़ा डांडा खिलेगी फ्योंली।
गेहूं की सारियों म मिलिगे फ्योंली।
चैत-बैसाख फ्योंली ही फ्योंली।
फुल्यारी ऐगिन अर लीघिन फ्योंली।।

नि ओंदु चांद, भूखी रेगी वा बांद।
#करवाचौथ #गढ़वाली

बुग्याल मा मिथे देखी के सु नोनी मुल हंसी गै, 
अर वे की मुखड़ी त मयार जीकुड़ी मा बसी गै।
#गढ़वाली

छल बली होण लगीं सुबेर बीं सारा गी मां 
यख वख जख देखा ग्ला पिंग्ला रंग छा ।।
#गढ़वाली

हैर्यु लाल पीलु निलु बाणियां भूत भीतल 
पकड़ा पकड़ी खूब होर्थी जन जंग छा ।।
#गढ़वाली

फागुणै की रंगत मां रंगीं सैरी डंडी पाखी होली 
का हुल्यारु कु त अपणु ही ढंग छा ।।
#गढ़वाली

रौनक पुराणी आईं नीतर गी सुन होंदू गी 
गल्लों मा दगड्या आज सब्भी संग छा ।।
#गढ़वाली

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