खतड़ुआ पर कविता:
खतड़ुआ आया, खुशियाँ लाया,
पर्व पशुधन का पर्व निराला।
गौशाला में सजावट होती,
हर जीव की मंगल कामना होती।
जलती मशालें, गूंजे गीत,
बुढ़ी जलाकर करते प्रीत।
गौ माता की हो जय-जयकार,
खतड़ुआ से रोगों की हार।
हरी घास का लगा है ढेर,
पशु खाते हैं प्रेम से घेर।
शीत ऋतु का स्वागत प्यारा,
खतड़ुआ में त्योहार हमारा।
भैल्लो-भैल्लो की ध्वनि सुनाई,
खुशियों की हो रही बधाई।
पर्व प्रकृति का, पर्व पशुओं का,
संस्कृति का जयदेवभूमि का उजाला!
2 - खतड़ुआ पर कविता:
खतड़ुआ आया, आनंद लाया,
पर्व पशुओं का अनमोल साया।
गौशाला में रौनक छाई,
हर घर में खुशियाँ आईं।
जलती मशालें, बुढ़ी जलाए,
पशुओं के लिए मंगल गाए।
गौ माता की जय-जयकार,
रोग मिटे, हो सुख अपार।
हरी घास से भरे हैं गोठ,
पशु करें हर्ष में ओठ।
शीत ऋतु का स्वागत न्यारा,
खतड़ुआ में पर्व हमारा।
"भैल्लो-भैल्लो" की गूंज सुनाई,
हर ओर बधाई ही बधाई।
संस्कृति की ये अमर निशानी,
खतड़ुआ की यही कहानी!
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