श्री सिद्धिदात्री महामन्त्र जप विधि
अस्य श्री सिद्धिदात्री (देवहूति) महामन्त्रस्य
भैरव ऋषिः। अनुष्टुप् छन्दः। श्री सिद्धिदात्री देवता।
क्लीं बीजं। सः शक्तिः। श्रीं कीलकं। श्रीं दिग्बन्धनं।
श्री सिद्धिदात्री प्रसाद सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः।
कर न्यासः
- क्लां अङ्गष्ठाभ्यां नमः।
- क्लीं तर्जनीभ्यां नमः।
- क्लूं मध्यमाभ्यां नमः।
- क्लै अनामिकाभ्यां नमः।
- क्लौं कनिष्ठिभ्यां नमः।
- क्लः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः।
अङ्ग न्यासः
- क्लां हृदयाय नमः।
- क्लीं शिरसे स्वाहा।
- क्लू शिखायै वषट्।
- क्लै कवचाय हूं।
- क्लौं नेत्रत्रयाय वौषट्।
- क्लः अस्त्राय फट्।
ॐ भूर्भुवसुवरों इति दिग्बन्धः।
ध्यानम्
शशाङ्खबिम्बद्युतिमुत्फलाक्षीं
प्रतप्तवामीकरगात्रयष्टिम्।
सितांबरां प्रेतगतांत्रिनेत्रां
श्रीदेवहूर्ति द्विभुजां भजेऽहम्॥
पञ्चपूजा
- लं पृथिव्यात्मिकायै गन्धं कल्पयामि।
- हं आकाशात्मिकायै पुष्पाणि कल्पयामि।
- यं वाय्वात्मिकायै धूपं कल्पयामि।
- रं अग्न्यात्मिकायै दीपं कल्पयामि।
- वं अमृतात्मिकायै अमृतं महानैवेद्यं कल्पयामि।
- सं सर्वात्मिकायै ताम्बूलादि समस्तोपचारान् कल्पयामि।
महामन्त्र
ॐ ऐं क्लीं सौः श्रीं ह्रीं सिद्धिदात्रि (देवहूति) श्रीं फट् ठः ठः ठः स्वाहा।
अङ्ग न्यासः
- नमः क्लां हृदयाय नमः।
- क्लीं शिरसे स्वाहा।
- क्लूं शिखायै वषट्।
- क्लै कवचाय हूं।
- क्लौं नेत्रत्रयाय वौषट्।
- क्लः अस्त्राय फट्।
ॐ भूर्भुवसुवरों इति दिग्बन्धनम्।
ध्यानम्
शशाङ्खबिम्बद्युतिमुत्फलाक्षीं
प्रतप्तवामीकरगात्रयष्टिम्।
सितांबरां प्रेतगतांत्रिनेत्रां
श्रीदेवहूति द्विभुजां भजेऽहम्॥
पञ्चपूजा
- लं पृथिव्यात्मिकायै गन्धं कल्पयामि।
- हं आकाशात्मिकायै पुष्पाणि कल्पयामि।
- यं वाय्वात्मिकायै धूपं कल्पयामि।
- रं अग्न्यात्मिकायै दीपं कल्पयामि।
- वं अमृतात्मिकायै अमृतं महानैवेद्यं कल्पयामि।
- सं सर्वात्मिकायै ताम्बूलादि समस्तोपचारान् कल्पयामि।
नोट: श्री सिद्धिदात्री देवी की पूजा करते समय इस महामन्त्र और विधि का पालन करने से सभी सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं और साधक को सिद्धिदात्री देवी का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है।
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