रामपुर तिराहा गोलीकांड: शहादत की अमर गाथा - कविता के माध्यम से श्रद्धांजलि
2 अक्टूबर 1994 की रात, रामपुर तिराहा पर जो हुआ, वह उत्तराखंड के इतिहास का एक ऐसा अध्याय है जिसे कोई नहीं भूल सकता। उस रात को निहत्थे आंदोलनकारियों पर गोलियां बरसाईं गईं, और कई वीर सपूतों ने अपने प्राणों की आहुति दी। उन शहीदों की शहादत ने उत्तराखंड राज्य के निर्माण की नींव रखी। इस ब्लॉग में, उनकी याद में कुछ कविताएँ प्रस्तुत की गई हैं, जो उनके बलिदान और साहस को सादर नमन करती हैं।
1.
"रामपुर तिराहा की वो रात"
रात थी अंधेरी, चारों ओर था सन्नाटा,
न जाने क्यों दिल में था एक अनजाना डर का डाटा।
चले थे वीर सपूत एक नए स्वप्न की खातिर,
पर मौत ने उन्हें आ घेरा, बना दी उनकी तक़दीर।

चीखें गूंजीं, गोलियों ने भेदा तन को,
पर उनकी हिम्मत ना डगमगाई, जंग लड़ी मन को।
वो वीर जो मिट गए, बन गए राज्य की नींव,
उनकी शहादत को सलाम, आज भी धड़कता है हर उत्तराखंडी का जींव।
2.
"शहीदों की कुर्बानी"
खून से सनी वो धरती, चीखों से गूंजता आसमान,
रामपुर तिराहा की वो रात, जिसने झकझोर दिया हर इंसान।
शहीद हुए जो वीर सपूत, दिए अपने प्राणों की आहुति,
उनकी कुर्बानी की गाथा, आज भी सुनाता है यह माटी।
वो वीर जो गिरे थे, कभी नहीं होंगे भुलाए,
उनके बलिदान से आज उत्तराखंड ने सपने सजाए।
सिर झुका कर करते हैं उन्हें नमन,
जिनकी शहादत से बना उत्तराखंड का ये चमन।

3.
"खून से लिखी गई कहानी"
खून से सींचा जो वीरों ने धरती का आंचल,
रामपुर तिराहा की वो रात थी एक अनोखा संघर्षमय अध्याय।
जिन्होंने बिना हिचक अपने प्राणों की बलि दी,
उनकी कुर्बानी ने बनाई उत्तराखंड की नयी लकीर।
नमन उन वीरों को, जो मिट गए तिरंगे की खातिर,
आज भी उनके सपनों में बसा है हर उत्तराखंडी का दिल,
रामपुर तिराहा की शहादत को सलाम,
उनकी कहानी रहेगी अमर, हर सांस में होगा उनका नाम।
4.
"वीरों को नमन"
वो रात थी कठिन, पर हौसला था बुलंद,
रामपुर तिराहा पर गूंजा वीरों का संग्राम।
हर गोली की आवाज़ में छिपी थी उनकी शहादत,
आज भी जिंदा है वो जज्बा, उनकी शौर्यगाथा।
धरती पर लिखी गई खून की कहानी,
शहादत की वो रात बनी अमर निशानी।
उन वीरों के बलिदान को आज भी करते हैं नमन,
जिनकी वजह से बना उत्तराखंड का यह चमन।
5.
"रामपुर तिराहा की धरती पर"
जब गोलियों ने भेदा निहत्थों के सीने,
तब भी वो रुके नहीं, बढ़ते रहे अपने सपने की ओर।
रामपुर तिराहा की वो भूमि आज भी कहती है,
उनकी कुर्बानी से ही तो बना उत्तराखंड का गौरव।
वो मंजर, वो चीखें आज भी दिल में जिंदा हैं,
उन वीरों का बलिदान बना हर उत्तराखंडी की धड़कन।
रामपुर तिराहा की धरती आज भी गा रही है,
उनकी वीरता की कहानी, अमर रहेगी सदा।
निष्कर्ष:
रामपुर तिराहा की वो काली रात आज भी हर उत्तराखंडी के दिल में जीवंत है। उन वीर शहीदों की कुर्बानी ने उत्तराखंड राज्य की नींव रखी और उनकी शहादत को हम कभी नहीं भूल सकते। इस ब्लॉग में प्रस्तुत कविताओं के माध्यम से, उन शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की गई है, जिनकी शौर्यगाथा अमर रहेगी।
"शहीदों को शत-शत नमन!"
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