भारत हिमाचल प्रदेश "जिला हमीरपुर " (सब कुछ) India Himachal Pradesh "District Hamirpur" (Everything) bharat himachal pradesh "jila hamirpur " (sab kuchh)
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भारत हिमाचल प्रदेश "जिला हमीरपुर " (सब कुछ) India Himachal Pradesh "District Hamirpur" (Everything) |
जिले के बारे में
वाल योगी सिद्ध “श्री बाबा बालाक नाथ दियोट सिध्द” के लिए प्रसिद्ध, जिला हमीरपुर हिमाचल प्रदेश के केंद्र में स्थित है। मुख्य रूप से पहाड़ी भू-भाग शिवालिक पहाड़ियों में 76º 18′ से 76º 44′ पूर्वी अक्षांश और 31º 25′ ‘से 31º 52’ उत्तर अक्षांश के बीच स्थित है। हमीरपुर जिला 400 मीटर से 1100 मीटर तक की ऊंचाई में फैला हुआ है | जिला हमीरपुर का इतिहास कटोच राजवंश से जुड़ा हुआ है, जो कि रावि और सतलुज के बीच के क्षेत्र “त्रिगर्त” के नाम से जाना जाता था। हमीरपुर का नाम राजा हमीर चंद के नाम पर पड़ा जिन्होंने 1700 ईस्वी से 1740 ईस्वी तक इस क्षेत्र पर शासन किया था।
हमीरपुर, हिमाचल प्रदेश राज्य का सबसे साक्षर जिला है और सभी तरफ से सड़कों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। जिला की भौगोलिक सीमाएं बिलासपुर, मंडी, कांगड़ा और ऊना जिलों के साथ लगती है। अधिकांश लोग रक्षा सेवाओं में कार्यरत हैं, जिस कारण हमीरपुर को “वीर भूमि” भी कहा जाता है।
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भारत हिमाचल प्रदेश "जिला हमीरपुर " (सब कुछ) India Himachal Pradesh "District Hamirpur" (Everything) |
भाषाएँ
हमीरपुर जिले के लोग पश्चिमी पहाड़ी बोलियां बोलते हैं। ये बोलियां मंडी, बिलासपुर और कांगड़ा जिलों के आस-पास के इलाकों में बोली जाने वाली अन्य बोलियों के समान हैं। भारतीय भाषाविद् सर्वेक्षण द्वारा किए गए भाषाओं के वर्गीकरण के अनुसार, पहाड़ी इंडो-यूरोपियन भाषाओं के परिवार के अंतर्गत आती है। यह आगे आर्यन उप-शाखा, इंडो-आर्यन शाखा, पहाड़ी समूह और पश्चिमी पहाड़ी उप-समूह (भारत की जनगणना 1 9 61, वॉल्यूम इंडिया, भाग II-सी (ii) से संबंधित भाषा के रूप में वर्गीकृत किया गया है। पश्चिमी पहाड़ी के अंतर्गत जिला में कई बोलियां शामिल हैं। पश्चिमी पहाड़ी के अलावा, हमीरपुर जिले की अधिकांश जनसंख्या हिंदी बोल सकती है। जिले के कुछ हिस्सों में पंजाबी भी बोली जाती है।
रहन-सहन एवं खानपान
हमीरपुर जिला में आम तौर पर
पक्के एवं दोमंजिला घर होते हैं । इसका मुख्य कारण यहाँ पर बहुतायत में उपलब्ध
पत्थर है | इसके अतिरिक्त छत्तों के लिए स्लेट भी पास के
जिलों की खदानों में उपलब्ध हैं। विगत कुछ वर्षों में लोगों का रुझान आधुनिक घरों
के निर्माण की तरफ बढ़ा है | अधिकतर स्थानों पर पारंपरिक
पत्थरों के स्थान पर ईंटों एवं नालीदार चादरों का प्रयोग किया जा रहा है। इस जिले
की लगभग 92% जनसंख्या ग्रामीण इलाकों में रहती है जिनका मुख्य पेशा कृषि है । रबी
के मौसम में गेहूं, जौ, ग्राम, मसर आदि की बिजाई की जाती हैं और खरीफ के मौसम
में मक्का, धान, माश, कुल्थ आदि बीजे जाते हैं । कई लोगों ने पारम्परिक फसलों की
बजाये नकदी फसलों को प्राथमिकता देना शुरू कर दिया है | कृषि और बागवानी विभागों के सक्रिय सहयोग से कई पौली हाउस की स्थापना की गई है
। गेहूं, चावल, दाल और सरसों का साग
के साथ मक्का रोटियां आदि लोग शौक के साथ खाते हैं । कढ़ी भी बहुतायत मैं पसंद की
जाती हैं। कुछ लोग मांस आदि का प्रयोग भी करते हैं। नदियों, खड्डों और नालों में मछली भी आसानी से उपलब्ध हो जाती है । शहरी क्षेत्रों में
मछली की भारी मांग को पूरा करने के लिए, मत्स्य विभाग पड़ोसी
जिलों बिलासपुर और उना से भी मछली आयात करता है | ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोग भेड़-बकरियां, गाय एवं भैंस आदि भी पलते हैं | ग्रामीण और शहरी
इलाकों में भी कुछ लोग मुर्गी-पालन करते हैं जो आसानी से जिले की मांग को पूरा
करते हैं।
नदियाँ
हमीरपुर जिला मैं कई
बारहमासी छोटी नदियां बहती है जो मुख्यतः ब्यास या सतलुज नदियों की सहायक है। बकर
खड्ड, कुणाह खड्ड और मान खड्ड ब्यास नदी में मिलती हैं,
जबकि सुक्कर खड्ड और मुंडखर खड्ड सीर खड्ड में मिलने के बाद
अंततः सतलुज नदी में मिलती है।
जीव
और वनस्पति
आम तौर पर जिले में किकर, चीड़, खैर, बिल, सिरिश, आंबला, नीम, कच्नार, टौर, कासमल आदि की विभिन्न प्रजातियों के पेड़, पौधों पाए जाते हैं । जिले में तेंदुए, खरगोश, जंगली सूअर , सियार, कक्कड़, सांभर और बंदर आदि जंगली जानवरों की प्रजातियां पाई जाति हैं | पक्षियों में सामान्यतः चकोर, कौआ, जंगली मुर्गा, काला तीतर, सफ़ेद तीतर और मैना आदि पाए जाते हैं ।
जलवायु
जिला नम उप-उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में पड़ता है। जिले की जलवायु में चार व्यापक मौसम हैं | आम तौर पर सर्दी का मौसम दिसंबर से फरवरी तक एवं गर्मियों का मौसम मार्च से जून की अवधि में रहता है | बरसात का मौसम जुलाई से सितंबर तक होता है। शरद ऋतु अक्टूबर और नवंबर के महीनों में होती है । सर्दियों के महीनों के दौरान तापमान बहुत ठंडा रहता है। मानसून अवधि के दौरान जिला को भरपूर वर्षा प्राप्त होती है | गर्मियों के दौरान दिन बहुत गर्म होते हैं
जिला मैं अधिकतम वरिश जुलाई से अगस्त माह मैं होती है | अप्रैल और अक्टूबर के महीनों में न्यूनतम बारिश होती है । अधिकतर समय मई सबसे गर्म महीना और जनवरी सबसे ठंडा महीना होता है। जिले में दिन का अधिकतम और न्यूनतम तापमान 20 डिग्री से 40 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है।
इतिहास
कटोचगढ़
हमीरपुर का इतिहास कटोच वंश के साथ जुड़ा हुआ है जिनका प्राचीन काल में रावी और सतलुज नदियों के बीच के क्षेत्र पर शासन था | “पुराणों” और पाणिनी की “अष्टाध्यई” के अनुसार महाभारत काल के दौरान, हमीरपुर पुराने जालंधर-त्रिगर्त साम्राज्य का एक हिस्सा था। पाणिनी ने इस राज्य के लोगों को महान योद्धाओं और सेनानियों के रूप में संदर्भित किया। जैसा कि भारतीय रक्षा बलों में इस क्षेत्र के लोगों की बड़ी संख्या से ऐसा प्रतीत होता है कि उन लोगों की परंपरा आज भी जारी है, । यह माना जाता है कि प्राचीन काल में, गुप्त वंश के शासक ने देश के इस हिस्से के ऊपर अपनी संप्रभुता स्थापित की थी। मध्य युग के दौरान, संभवतः यह क्षेत्र मोहम्मद गज़नी, तिमुरलंग और सुल्तानों के नियंत्रण में रहा । लेकिन समय बीतने के साथ, सभी उपरोक्त शासकों के चले जाने के बाद कटोच शासक हमीर चंद के समय में यह क्षेत्र ‘राणाओं’ (पहाड़ी सामंत प्रमुखों) के नियंत्रण में रहा, जिनमें मेवा, मेहलता और धतवाल के राणाओं का नाम उल्लेखनीय रहा है । प्राय यह सामंती प्रमुख एक-दूसरे के खिलाफ झगड़ते रहते थे। यह केवल कटोच राजवंश था जिसने इन राणाओं को अपने नियंत्रण में रखा, ताकि एक व्यवस्थित समाज को सुनिश्चित किया जा सके। राजा हमीर चंद जिन्होंने 1700 ई०पू० से 1740 ई०पू० की अवधि के दौरान इस क्षेत्र पर शासन किया, के समय में कटोच राजवंश का अधिपत्य रहा ।
राजा हमीर चंद ने हमीरपुर
में किले का निर्माण किया और उन्हीं के नाम पर वर्तमान शहर का नाम हमीरपुर पड़ा ।
राजा संसार चंद – द्वितीय का समय हमीरपुर के
लिए स्वर्णिम काल रहा | उन्होंने ‘सुजानपुर टिहरा’ को अपनी राजधानी
बनाया और इस जगह पर महलों और मंदिरों का निर्माण करवाया। राजा संसार चन्द ने 1775
ई०पू० से 1823 ई०पू० तक यहाँ पर शासन किया। उन्होंने जालंधर-त्रिगर्त के पुराने
साम्राज्य की स्थापना का सपना देखा, जो उनके पूर्वजों के
समय में उनके अधीन था। कुछ इतिहासकारों के अनुसार, उन्होंने दो बार इस हेतु असफल प्रयास भी किए । राजा रणजीत सिंह का उदय उनकी इस
महत्वाकांक्षा में एक बड़ी बाधा साबित हुआ। इसलिए, उन्होंने इसे छोड़ कर अपना ध्यान स्थानीय पहाड़ी राजाओं की तरफ केन्द्रित किया |
उन्होंने मंडी राज्य को अपने अधीन किया और राजा ईश्वरी सेन
को 12 साल तक नादौन में कैद कर रखा । उन्होंने सतलुज के दाहिने किनारे पर स्थित
बिलासपुर राज्य के भाग पर अपना अधिपत्य स्थापित कर लिया और सुकेत के शासकों को भी
वार्षिक भेंटराशि देने के लिए बाध्य कर दिया । संसार चंद की उन्नति से चिंतित होकर,
सभी पहाड़ी शासकों ने आपस में संधि कर ली और गोरखाओं को कटोच
शासक की अनियंत्रित शक्ति को रोकने के लिए आमंत्रित किया । संयुक्त सेनाओं ने
हमीरपुर के महल मोरियां में संसार चंद की सेना के खिलाफ लड़ाई लड़ीं । राजा संसार
चंद की सेना ने संयुक्त सेना को बुरी तरह हराया और उन्हें सतलुज नदी के बाएं
किनारे तक पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया । राजा संसार चंद द्वारा अपने जनरल
गुलाम मुहम्मद की सलाह पर सेना को रोहिल्ला के साथ बदलने के कारण उनकी
अर्थव्यवस्था बुरी तरह लड़खड़ा गई । सेना को बदलने का यह प्रयास बहुत ही कमज़ोर कड़ी
साबित हुआ। कटोच सेना की कमजोरी के बारे में सुनकर, 1806 ई०पू० में संयुक्त सेना ने दूसरी लड़ाई में कांगड़ा की सेना को महल मोरियां
में बुरी तरह परास्त किया । राजा संसार चंद की इस हार के कारण उनके परिवार ने
कांगड़ा किले में शरण ली । गोरखाओं ने कांगड़ा किले को पूरी तरह घेर लिया और
कांगड़ा और महल मोरियां के किले और जंगलों के बीच के क्षेत्र के गांवों को नष्ट कर
दिया और लोगों को बेरहमी से लूटा । फलस्वरूप गोरखाओं द्वारा नादौन जेल में कैद
इश्वरी सेन को मुक्त करवा लिया गया | किले की घेराबंदी
तीन साल तक जारी रही। राजा संसार चंद के अनुरोध पर राजा रंजीत सिंह ने गोरखाओं के
खिलाफ युद्ध छेड़ दिया और उन्हें 1809 ई०पू० में हरा दिया । लेकिन राजा संसार चंद
को इसके लिए भारी कीमत चुकानी पड़ी जिससे उन्हें कांगड़ा किला और 66 गांवों को
सिखों को खोना पड़ा । ब्रिटिश सेना द्वारा 1846 ई०पू० में पहले एंग्लो-सिख युद्ध
की हार तक सिखों ने कांगड़ा और हमीरपुर तक अपनी संप्रभुता को बनाए रखा । तब से
लेकर ब्रिटिश साम्राज्य के अंत तक इस क्षेत्र पर अंग्रेजों का वर्चस्व जारी रहा ।
संसार चंद एक निधन बहुत ही गुमनामी में हुआ । अंग्रेजों को हटाने की असफल कोशिश
में उनके उत्तराधिकारी (पौत्र) राजा प्रमोद चंद ने सिखों और अन्य शासकों के साथ
गठबंधन की कोशिश की ।
अंग्रेज शासकों ने कांगड़ा जिला का गठन किया जिसमें हमीरपुर, कुल्लू और लाहौल-स्पिति के क्षेत्रों को भी सम्मिलित कर दिया गया। 1846 ई०पू० में, कांगड़ा के कब्जे के बाद, नादौन को तहसील मुख्यालय बनाया गया था । इस समझौता को 1868 ई०पू० में संशोधित किया गया, और परिणामस्वरूप तहसील मुख्यालय नादौन से हमीरपुर में स्थानांत्रित कर दिया गया । 1888 ई०पू० में, हमीरपुर और कांगड़ा के कुछ क्षेत्रों का विलय करके पालमपुर तहसील का गठन किया गया | 1 नवंबर 1966 को पंजाब के पुनर्गठन तक, हमीरपुर पंजाब प्रांत का एक हिस्सा बना रहा जिसे पंजाब के पुनर्गठन के परिणामस्वरूप हिमाचल प्रदेश में मिला दिया गया। 1 सितंबर 1972 को सम्मिलित किए गए क्षेत्रों और जिलों के पुनर्निर्माण के परिणामस्वरूप, हमीरपुर और बरसर दो तहसीलों के साथ हमीरपुर का एक अलग जिले के रूप में गठन गया | 1980 में सुजानपुर टीहरा, नादौन और भोरंज उप तहसीलों का गठन किया गया । 1991 की जनगणना में नादौन और भोरंज तहसील बना दी गई । वर्तमान में, जिले में हमीरपुर, बड़सर, नादौन, भोरंज, सुजानपुर टीहरा, बमसन (स्थित टौणी देवी), ढटवाल (स्थित बिझड़ी) एवं गलोड़ नामक 8 तहसीलें और कांगू एवं भोटा नामक 2 उप-तहसीलें हैं। यह हमीरपुर, बड़सर, नादौन, भोरंज और सुजानपुर नाम के 5 उप-मण्डलों के अंतर्गत आती हैं। हमीरपुर उप-मण्डल में तहसील हमीरपुर और बमसन (स्थित टौणी देवी) शामिल है; बड़सर उप-मण्डल में तहसील बड़सर, ढटवाल (स्थित बिझड़ी) और उप-तहसील भोटा शामिल हैं; नादौन उप-मण्डल में तहसील नादौन, गलोड़ और उप-तहसील कांगू शामिल हैं । भोरंज उप-मण्डल में तहसील भोरंज का समावेश है जबकि सुजानपुर उप-मण्डल में तहसील सुजानपुर टीहरा शामिल है। जिला को हमीरपुर, बिझड़ी, भोरंज, नादौन, सुजानपुर और बमसन (स्थित टौणी) 6 विकास खंडों में बांटा गया है ।
रुचि के स्थान
सुजानपुर टिहरा
सुजानपुर टिहरा की स्थापना कांगड़ा रियासत के कटोच वंशज राजा अभय चंद द्वारा सन 1748 (ई०पू०) में की गई थी | यहाँ पर रामपुर के नवाब गुलाम मोहम्मद की एक कब्र भी है। टिहरा और सुजानपुर में पांच प्राचीन मंदिर और सुजानपुर में राजा संसार चंद की बारा-दरी (कोर्ट रूम) स्थापित हैं | राजा संसार चंद द्वारा अपनी मां की पवित्र स्मृति में 1793 ई०पू० में बनाया गया गौरी शंकर का मंदिर भी देखने योग्य है | राजा संसार चंद की सुकेत रानी प्रसन्नी देवी द्वारा 1790 और 1823 ई०पू० में बहुत ही सुन्दर मुरली मनोहर और नर्वदेश्वर मंदिरों का निर्माण करवाया गया था। महादेव मंदिर, देवी मंदिर और ऋषि व्यास को समर्पित व्यासेश्वर मंदिर भी यहाँ पर सुसज्जित हैं | यह क्षेत्र में पहली बार ‘ट्रैवेक’ नामक एक जर्मन, और उसके बाद मूरक्राफ्ट नामक एक ब्रिटिश यात्री द्वारा दौरा किया गया था। सुजानपुर पैराग्लिडिंग, एंगलिंग, राफ्टिंग आदि साहसी खेलों के लिए उपयुक्त है | इसके आसपास अच्छे ट्रेकिंग रूट भी हैं ।
इन के अतिरिक्त, यह स्थान हिमाचल प्रदेश के सबसे बड़े चौगान (मैदान) के लिए भी प्रसिद्ध है । होली के उपलक्ष पर लगने वाला 4 दिवसीय राज्य स्तरीय मेला इस एतिहासिक चौगन में ही मनाया जाता है | प्रतिष्ठित सैनिक स्कूल सुजानपुर टिहरा भी इस जगह पर स्थित है। इस संसथान से प्रतिवर्ष भारतीय रक्षा सेवाओं में बहुत से विद्यार्थियों का चयन होता है ।
नादौन
प्राचीनकाल में, इसका प्रयोग नादौन जागीर के मुख्यालय के रूप में किया जाता था | कांगड़ा के महाराजा संसार चंद ने यहाँ पर अपने शासनकाल के दौरान कई वर्षों तक गर्मी के दौरान अपने न्यायालय का आयोजन किया था। नादौन को बिलकेलेश्वर महादेव मंदिर के लिए भी जाना जाता है जिस का निर्माण पांडवों द्वारा किया गया था । नादौन अपने खूबसूरत लोगों के लिए प्रसिद्ध है | यहाँ पर सन 1929 में एक गुरुद्वारा भी स्थापित किया गया था। राजा संसार चँद द्वितीय के शासनकाल के दौरान, नादौन एक बहुत महत्वपूर्ण स्थान हुआ करता था । कांगड़ा पहाड़ी क्षेत्र में एक बात प्रचलित थी की “जो आए नादौन तो जाये कौन” । इस तथ्य से समझा जाता है कि नादौन में दो सौ गायक एवं नर्तकियां थीं और जो भी यहाँ पर आता था इनके जादू के वशीभूत होकर कभी भी जा नहीं पाता था । इस बात का उल्लेख गुलाम मोहिउद्दीन ने तारीख-ए-पंजाब में भी किया है । यह एक शांतिपूर्ण शहर है और यहाँ पर अच्छा विश्राम गृह, एक पुराना महल और प्राचीन शिव मंदिर भी दर्शनीय हैं । अमतर के पुराने महल में अब भी उस समय के कुछ दुर्लभ चित्रों को संजो कर रखा गया है । 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित प्रसिद्ध शक्तिपीठ जवालाजी मंदिर भी यहाँ से आसानी से यहां जा सकता है। यह स्थान शहर के साथ बहती व्यास नदी में महाशीर मछली पकड़ने के लिए भी उत्कृष्ट सुविधाएं प्रदान करता है । व्यास नदी पर नादौन से देहरा के बीच राफ्टिंग की सुविधा भी इस स्थान को एक और आकर्षण प्रदान करता है । एंगलरों के लिए भी यहाँ पर सुंदर कैम्पिंग स्थान हैं |
व्यास नदी के तट पर स्थित एच०पी०सी०ए० (हिमाचल प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन) द्वारा स्थापित अटल बिहारी वाजपेयी क्रिकेट स्टेडियम भी एक सुंदर दर्शनीय स्थल है।
सिद्ध-बाबा-बालक-नाथ
यह बिलासपुर (70 किलोमीटर)
और हमीरपुर (45 किलोमीटर) जिला की सीमा पर स्थित सिद्ध बाबा बालक नाथ मंदिर
दियोटसिद्ध में स्थित है और सभी तरफ से सड़कों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।
नवरात्रों के दौरान, बाबाजी का आशीर्वाद प्राप्त
करने के लिए भारी संख्या में श्रद्धालु दियोटसिद्ध आते हैं । चैत्र मेला का
त्योहार श्री सिद्ध बाबा बालाक नाथ मंदिर दियोटसिद्ध में हर साल 14 मार्च से 13
अप्रैल तक मनाया जाता है। मंदिर न्यास रहने एवं पानी, शौचालयों और अन्य आवश्यक सेवाएं प्रदान करती है। शाह-तलाई से दियोटसिद्ध मंदिर
के लिए लिए प्रस्तावित रोप-वे की स्थापना और अतिरिक्त आवास आदि व्यवथाएं पूर्ण
होने पर और अधिक पर्यटकों के आने की सम्भावना है । यह मंदिर हिमाचल राज्य की सबसे
बड़े आय संस्थानों में से एक है | हर साल देश भर से 45 लाख के
लगभग श्रद्धालू यहाँ आते हैं । रविवार को बाबाजी का शुभ दिन माना जाता है और
फलस्वरूप इस दिन भक्तों का विशाल जनसमूह दर्शन करने हेतु दियोटसिद्ध मंदिर आता है
।
अधिक जानकारी हेतु कृपया मंदिर अधिकारी: +91+1972-286354 अथवा सिद्ध बाबा बालक नाथ मंदिर दियोटसिद्ध से संपर्क करें |
मारकंडा
मारकंडेय ऋषि के स्थल के रूप में प्रसिद्ध यह स्थान हमीरपुर जिला में डेरा परोल से 6 किलोमीटर की दूरी पर कुनाह खड्ड के किनारे पर स्थित है | पुराणों के अनुसार यहाँ पर मारकंडेय ऋषि की प्रतिमा स्थापित की गई थी | यहाँ पर एक प्राकृतिक जल स्रोत भी है | यहाँ पर लगने वाला मारकंडा मेला भी काफी प्रसिद्ध है |
भोटा
यह स्थान धर्मशाला से शिमला मार्ग पर हमीरपुर शहर से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है | यह स्थान राधा स्वामी सत्संग डेरा व्यास द्वारा संचालित एक धर्मार्थ अस्पताल के लिए प्रसिद्ध है |
गसोता
यह स्थान हमीरपुर-जाहू रोड पर हमीरपुर से 9 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां पर 400 साल से अधिक पुराना भगवान शिव का प्राचीन मंदिर स्थित है। विभिन्न स्थानों के लोग भगवान शिव का आशीर्वाद लेने के लिए इस पवित्र स्थान पर जाते हैं। एक प्रसिद्ध पशु मेला हर साल ज्येष्ठ महीने (आमतौर पर मई माह के मध्य में) के पहले सोमवार को गसोता में आयोजित किया जाता है | इस दौरान आसपास के इलाकों और पड़ोसी राज्यों के लोग प्राचीन शिवलिंग के दर्शन और पशु व्यापार के लिए आते हैं। यह बहुत सुंदर जगह है | मंदिरों के समीप बहता प्राकृतिक जल इसकी सुंदरता को चार चाँद लगा देता है | आगंतुकों की सुविधा के लिए मंदिर के परिसर में गौशाला और पांडु सरोवर का भी निर्माण किया गया है ।
लम्बलू
शनि देव मंदिर के लिए प्रसिद्ध गांव सरलीं (लम्बल) हमीरपुर से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। विभिन्न स्थानों के लोग शनि मंदिर के दर्शन एवं तुला दान के लिए यहाँ आते हैं। सप्ताहांत पर और विशेष रूप से ज्येष्ठ शनिवार को यहाँ पर भारी भीड़ होती है । मंदिर का प्रबंधन हिमाचल प्रदेश हिंदू सार्वजनिक धार्मिक संस्थानों और चैरिटेबल एंडॉमेंट अधिनियम के तहत स्थापित मंदिर ट्रस्ट द्वारा किया जाता है।
हमीरपुर
समुद्र तल से लगभग 786 मीटर की ऊँचाई पर स्थित हमीरपुर शहर एक शांत एंड सुरम्य स्थान है | राजा हमीर चंद के नाम पर स्थापित इस शहर का एक गौरवमयी इतिहास रहा है | इस क्षेत्र के बहुत से लोगों ने शिक्षा, रक्षा सेवाओं, खेलों, प्रशासनिक सेवाओं एवं प्रोद्योगिकी जैसे क्षेत्रों मैं सेवा करके एक अलग पहचान बनाई है | विगत कुच्छ वर्षों में यह शहर प्रदेश में शिक्षा के अग्रणी स्थानों में शामिल हुआ है | यहाँ पर हिमाचल प्रदेश तकनीकी विश्विद्यालय, डा० राधा कृष्णन राजकीय चिकित्सा महाविद्यालय, राष्ट्रिय प्रोद्योगिकी संस्थान, होटल प्रबंधन संस्थान, औद्यानिकी एवं वानिकी महाविद्यालय, राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बहु तकनीकी संस्थान एवं स्कूल स्तर के उत्कृष्ट शिक्षण संस्थान हैं | इसके अतिरिक्त यहाँ पर कुछ निजी शिक्षण संस्थान भी शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी संस्थानों में शामिल हैं | यह सभी संस्थान हमीरपुर शहर से 5 से 8 किलोमीटर के बीच स्थित हैं | इस क्षेत्र से अधिकांश लोग रक्षा सेवाओं में कार्यरत हैं, जिस कारण प्रदेश सैनिक कल्याण विभाग के निदेशक और हिमाचल प्रदेश पूर्व सैनिक निगम के प्रबंध निदेशक के कार्यालय भी हमीरपुर शहर में स्थित हैं
कैसे पहुंचें
जिला हमीरपुर का मुख्यालय हिमाचल प्रदेश के एक बहुत ही सुंदर शहर हमीरपुर में स्थित है | हमीरपुर शहर जिला के लगभग मध्य में स्थित है और | यह शहर हिमाचल प्रदेश एवं अन्य समीपवर्ती प्रदेशों के मुख्य शहरों से सड़क मार्गों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है | यातायात का मुख्य साधन सड़क मार्ग हैं और यह व्यवस्था पूरा साल भर सुचारू रूप से बनी रहती है | इसके अतिरिक्त हमीरपुर में निकटवर्ती रेल एवं हवाई साधनों द्वारा भी पहुंचा जा सकता है |
सड़क
मार्ग द्वारा
कुच्छ मुख्य स्थान एवं मार्ग जहाँ से हमीरपुर के लिए नियमित बस सेवा उपलब्ध है:
दिल्ली, पानीपत, कुरुक्षेत्र , अम्बाला, चंडीगढ़, रूपनगर, ऊना
अमृतसर, जालंधर, लुधियाना, होशियारपुर, ऊना
जम्मू, पठानकोट, काँगड़ा, जवाला जी, नादौन
देहरादून, हरिद्वार, अम्बाला, चंडीगढ़, रूपनगर, ऊना
केलांग, मनाली, मंडी, सुंदरनगर
कल्पा, रामपुर, शिमला, बिलासपुर
चम्बा, नूरपुर, काँगड़ा, जवाला जी, नादौन
राज्य परिवहन (एचआरटीसी – हिमाचल पथ परिवहन निगम) सभी प्रमुख स्थलों के लिए सुपर लक्जरी, लक्ज़री, सुपर फास्ट और सामान्य बसों का अपना सुव्यवस्थित बेड़े संचालित करता है। राज्य में निजी रूप से संचालित बस सेवा भी उपलब्ध है। अधिकतर स्थानों पर किराए पर टैक्सी सेवा भी उपलब्ध है।
अधिक जानकारी हेतु कृपया हिमाचल पथ परिवहन निगम से संपर्क करें |
रेल
मार्ग द्वारा
हमीरपुर शहर के लिया कोई भी सीधी ट्रेन सेवा नहीं है। हमीरपुर से निकटतम रेलवे स्टेशन ऊना (ब्रॉड गेज रेलवे लाइन), अंब (ब्रॉड गेज रेलवे लाइन) और जवालामुखी रोड (नैरो गेज रेलवे लाइन) हैं। ऊना रेलवे स्टेशन हमीरपुर से लगभग 80 किमी दूर है । अंब रेलवे स्टेशन हमीरपुर शहर से लगभग 70 किलोमीटर दूर है |
सर्पीले पहाड़ी रेल मार्ग की सुंदरता का आनंद लेने के लिए, पठानकोट से जवालामुखी रोड के माध्यम से हमीरपुर का पहुंचा जा सकता है | जवालामुखी रोड स्टेशन हमीरपुर शहर से लगभग 58 किलोमीटर दूरी पर हमीरपुर – कागड़ा मार्ग पर एक नैरो गेज लिंक है। सभी रेलवे स्टेशनों से नियमित बस और टैक्सी सेवा उपलब्ध है |
अधिक जानकारी हेतु कृपया इंडियन रेलवे कैटरिंग एंड टूरिज्म कोरपोरेशन लिमिटेड को अथवा भारतीय रेल से संपर्क करें |
हवाई मार्ग द्वारा
हमीरपुर जिले में कोई भी हवाई अड्डा नहीं है, अतः इस शहर में कोई सीधी वायु सेवा / उड़ान उपलब्ध नहीं है। हमीरपुर से सबसे निकटतम हवाई अड्डा धर्मशाला के पास गग्गल (कांगड़ा) है जो हमीरपुर से लगभग 83 किलोमीटर दूर है | गग्गल (कांगड़ा) से हमीरपुर के लिए नियमित बस और टैक्सी सेवा उपलब्ध है | वर्तमान में एयर इंडिया और स्पाइस जेट गग्गल (धर्मशाला डी०एच०एम०) के लिए सेवाएँ उपलब्ध करवा रहे हैं |
अधिक जानकारी हेतु कृपया भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण, गग्गल (कांगड़ा) हवाई अड्डा: +91-1892-232374, एयर इंडिया अथवा स्पाइस जेट से संपर्क करें |
नादौन
नादौन शहर का गौरवमयी
इतिहास रहा है | व्यास नदी के बाएँ किनारे
पर स्थित इस एतिहासिक एवं दर्शनीय शहर का कांगड़ा के कटोच राजवंश से गहरा रिश्ता
रहा है | प्राचीन काल में पंजाब से हिमाचल प्रदेश के
दुर्गम स्थानों के लिए सामान भेजने के रस्ते में एक मुख्य व्यावसायिक स्थान रहा है
|
स्थान: नादौन व्यास नदी के
बाएँ किनारे पर स्थित एक एतिहासिक एवं दर्शनीय शहर है | इस शहर का कांगड़ा के कटोच राज घराने के साथ भी गहरा सम्बन्ध रहा है | नादौन, हमीरपुर से 28 किलोमीटर की
दूरी पर हमीरपुर – काँगड़ा मार्ग पर बसा हुआ है
| यहाँ पर उप मंडल अधिकारी (नागरिक), तहसील एवं विकास खण्ड मुख्यालय हैं |
उपयुक्त समय: यहाँ पर वर्ष भर कभी भी आसानी से जाया जा सकता है | यह गर्म क्षेत्र है लेकिन बरसात का समय यहाँ बहुत ही सुहावना होता है |
दर्शनीय:
शहर से 2 किलोमीटर की दूरी
पर स्थित एतिहासिक महल |
शहर से 2 किलोमीटर की दूरी
पर स्थित हिमाचल प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन द्वारा संचालित प्रसिद्ध अमतर क्रिकेट
मैदान |
नादौन से सुजानपुर मार्ग पर
लगभग 7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित पांडवों द्वारा निर्मित बिल्कालेश्वर महादेव का
मंदिर |
शहर में स्थित धयानु भगत की
समाधी |
शहर के बीच में स्थित प्रसिद्ध गुरुद्वारा |
क्रिकेट स्टेडियम अमतर,
नादौनध्यानू भक्त की समाधी नादौनगुरुद्वारा दसवीं पातशाही
नादौन
कैसे पहुंचें:
वायु मार्ग द्वारा
हमीरपुर जिला में कोई भी हवाई अड्डा नहीं है, अतः इस शहर में कोई सीधी वायु सेवा / उड़ान उपलब्ध नहीं है। सबसे निकटतम हवाई अड्डा धर्मशाला के पास गग्गल (कांगड़ा) है जो नादौन से लगभग 55 किलोमीटर दूर है |
ट्रेन द्वारा
नादौन शहर के लिया कोई भी सीधी ट्रेन सेवा नहीं है। नादौन से निकटतम रेलवे स्टेशन अंब (ब्रॉड गेज रेलवे लाइन) और ज्वालामुखी रोड (नैरो गेज रेलवे लाइन) हैं। अंब रेलवे स्टेशन नादौन शहर से लगभग 42 किलोमीटर दूर है | ज्वालामुखी रोड (नैरो गेज रेलवे लाइन) स्टेशन नादौन शहर से लगभग 40 किलोमीटर दूर है ।
सड़क द्वारा
यह जगह हिमाचल प्रदेश और अन्य पड़ोसी राज्यों के सभी प्रमुख शहरों से सड़क से बहुत अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। इस जगह पर नियमित बस सेवा उपलब्ध है। टैक्सी सेवा भी यहाँ पर आसानी से उपलब्ध हैं ।
बाबा बालक नाथ दियोटसिद्ध
सिद्ध बाबा बालक नाथ एक हिन्दू देव स्थान है | यहाँ पर हिमाचल प्रदेश के अतिरिक्त पंजाब, हरयाणा, चंडीगढ़, जम्मू कश्मीर एवं अन्य उतर भारतीय राज्यों से भारी संख्या में श्र्धालू पधारते हैं | इस स्थान को दियोटसिद्ध के नाम से जाना जाता है |
स्थान: यह स्थान हमीरपुर से 45 किलोमीटर की दूरी पर हमीरपुर और बिलासपुर जिला की सीमा पर चकमोह गाँव के दियोटसिद्ध नामक क्षेत्र में स्थित है | धौलगिरी परबत की पहाड़ियों पर एक प्राकृतिक गुफा में बाबा जी पवित्र प्रतिमा स्थापित है |
उपयुक्त समय: इस पवित्र स्थान पर वर्ष के दौरान कभी भी आसानी से जाया जा सकता है। रविवार को बाबा जी के शुभ दिन के रूप में माना जाता है, इसलिए आम तौर पर सप्ताहांत पर और विशेष रूप से रविवार को यहाँ पर बहुत भीड़ होती है। हर साल यहां पर 14 मार्च से 13 अप्रैल तक चैत्र मास के मेले लगते हैं । इस दौरान यहाँ पर भरी संख्या में श्र्धालू पधारते हैं |
व्यबस्था: सिद्ध बाबा बालक नाथ मंदिर दियोटसिद्ध की देखरेख “हिंदू सार्वजनिक धार्मिक संस्था और चैरिटेबल एंडॉमेंट्स एक्ट, 1984” के तहत स्थापित मंदिर प्रशासन द्वारा की जाती है जिसकी अध्यक्षता उपायुक्त-एवं-मंदिर आयुक्त करते हैं |
अधिक जानकारी हेतु कृपया
मंदिर अधिकारी: +91+1972-286354 अथवा सिद्ध बाबा बालक नाथ मंदिर दियोटसिद्ध से
संपर्क करें |
कैसे पहुंचें:
वायु मार्ग द्वारा
हमीरपुर जिले में कोई भी हवाई अड्डा नहीं है, अतः इस स्थान के लिए कोई भी सीधी वायु सेवा / उड़ान उपलब्ध नहीं है। दियोटसिद्ध से सबसे निकटतम हवाई अड्डा धर्मशाला के पास गग्गल (कांगड़ा) है जो यहाँ से लगभग 128 किलोमीटर दूर है |
ट्रेन द्वारा
इस स्थान के लिए कोई भी सीधी ट्रेन सेवा नहीं है। दियोटसिद्ध से निकटतम रेलवे स्टेशन ऊना (ब्रॉड गेज रेलवे लाइन) है। ऊना रेलवे स्टेशन यहाँ से लगभग 55 किमी दूर है ।
सड़क द्वारा
यह जगह हिमाचल प्रदेश और अन्य पड़ोसी राज्यों के सभी प्रमुख शहरों से सड़क से बहुत अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। इस जगह पर नियमित बस सेवा उपलब्ध है। टैक्सी सेवा भी यहाँ पर आसानी से उपलब्ध हैं।
हमीरपुर
हमीरपुर एक बहुत ही सुन्दर, सुरम्य एवं शांत पहाड़ी शहर है | राजा हमीर चंद के नाम पर स्थापित इस शहर का एक गौरवमयी इतिहास रहा है | विगत कुच्छ वर्षों में यह शहर प्रदेश में शिक्षा के अग्रणी स्थानों में शामिल हुआ है | यहाँ पर हिमाचल प्रदेश तकनीकी विश्विद्यालय, डा० राधा कृष्णन राजकीय चिकित्सा महाविद्यालय, राष्ट्रिय प्रोद्योगिकी संस्थान, होटल प्रबंधन संस्थान, औद्यानिकी एवं वानिकी महाविद्यालय, राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बहु तकनीकी संस्थान एवं स्कूल स्तर के उत्कृष्ट शिक्षण संस्थान हैं | इसके अतिरिक्त यहाँ पर कुछ निजी शिक्षण संस्थान भी शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी संस्थानों में शामिल हैं | इस क्षेत्र से अधिकांश लोग रक्षा सेवाओं में कार्यरत हैं, जिस कारण प्रदेश सैनिक कल्याण विभाग के निदेशक और हिमाचल प्रदेश पूर्व सैनिक निगम के प्रबंध निदेशक के कार्यालय भी हमीरपुर शहर में स्थित हैं |
स्थान: हमीरपुर शहर धर्मशाला – शिमला मार्ग मार्ग पर समुद्र तल से लगभग 786 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है | यहाँ पर जिला, उप मंडल अधिकारी (नागरिक), तहसील एवं विकास खण्ड मुख्यालय हैं |
उपयुक्त समय: यहाँ पर वर्ष भर कभी भी आसानी से जाया जा सकता है | यह गर्म क्षेत्र है लेकिन बरसात का समय यहाँ बहुत ही सुहावना होता है |
प्रमुख स्थान:
हिमाचल प्रदेश तकनीकी
विश्विद्यालय
डा० राधा कृष्णन राजकीय
चिकित्सा महाविद्यालय
राष्ट्रिय प्रोद्योगिकी
संस्थान हमीरपुर
होटल प्रबंधन संस्थान
औद्यानिकी एवं वानिकी
महाविद्यालय, नेरी, हमीरपुर
नेता जी सुभाष चंद्र बोस स्मारक राजकीय महाविद्यालय हमीरपुर
कैसे पहुंचें:
वायु मार्ग द्वारा
हमीरपुर जिले में कोई भी हवाई अड्डा नहीं है, अतः इस शहर में कोई सीधी वायु सेवा / उड़ान उपलब्ध नहीं है। हमीरपुर से सबसे निकटतम हवाई अड्डा धर्मशाला के पास गग्गल (कांगड़ा) है जो हमीरपुर से लगभग 83 किलोमीटर दूर है |
ट्रेन द्वारा
हमीरपुर शहर के लिया कोई भी सीधी ट्रेन सेवा नहीं है। हमीरपुर से निकटतम रेलवे स्टेशन ऊना (ब्रॉड गेज रेलवे लाइन), अंब (ब्रॉड गेज रेलवे लाइन) और जवालामुखी रोड (नैरो गेज रेलवे लाइन) हैं। ऊना रेलवे स्टेशन हमीरपुर से लगभग 80 किमी दूर है । अंब रेलवे स्टेशन हमीरपुर शहर से लगभग 70 किलोमीटर दूर है |
सड़क द्वारा
राज्य परिवहन (एचआरटीसी – हिमाचल पथ परिवहन निगम) सभी प्रमुख स्थलों के लिए सुपर लक्जरी, लक्ज़री, सुपर फास्ट और सामान्य बसों का अपना सुव्यवस्थित बेड़े संचालित करता है। राज्य में निजी रूप से संचालित बस सेवा भी उपलब्ध है। अधिकतर स्थानों पर किराए पर टैक्सी सेवा भी उपलब्ध है।
सुजानपुर
सुजानपुर टिहरा की स्थापना कांगड़ा रियासत के कटोच वंशज राजा अभय चंद द्वारा सन 1748 (ई०पू०) में की गई थी | सुजानपुर एक बहुत ही सुंदर एतिहासिक स्थान है |
स्थान: व्यास नदी के बाएँ
किनारे पर स्थित सुजानपुर टिहरा एक एतिहासिक एवं दर्शनीय शहर है | यह शहर कटोच राज घराने के स्वर्णिम काल का गवाह रहा है |
सुजानपुर टिहरा, हमीरपुर से 24
किलोमीटर की दूरी पर हमीरपुर पालमपुर मार्ग पर बसा हुआ है | यहाँ पर उप मंडल अधिकारी (नागरिक), तहसील एवं विकास
खण्ड मुख्यालय हैं |
उपयुक्त समय: यहाँ पर वर्ष भर कभी भी आसानी से जाया जा सकता है | बरसात का समय यहाँ बहुत ही सुहावना होता है |
दर्शनीय:
शहर से 4 किलोमीटर की दूरी
पर स्थित एतिहासिक कटोच वंशज राजाओं की किला |
शहर के बीचों बीच स्थित
एतिहासिक चौगान (मैदान) जो संभवतः पहाड़ी क्षेत्रों में सबसे बड़े आकार का मैदान है |
शहर में स्थित, सन 1823 (ई०पू०) में बनाया गया नर्वदेश्वर महादेव मंदिर |
4 किलोमीटर की दूरी पर
सुजानपुर किले में स्थित सं 1793 (ई०पू०) में बना गौरी-शंकर मंदिर |
सन 1790 (ई०पू०) में बना
हुआ मुरली मनोहर मंदिर शहर के बीचों बीच स्थित है |
सुप्रसिद्ध सैनिक स्कूल सुजानपुर टिहरा भी शहर के बीचों बीच स्थित है |
कैसे पहुंचें:
वायु मार्ग द्वारा
हमीरपुर जिले में कोई भी हवाई अड्डा नहीं है, अतः इस शहर में कोई सीधी वायु सेवा / उड़ान उपलब्ध नहीं है। सबसे निकटतम हवाई अड्डा धर्मशाला के पास गग्गल (कांगड़ा) है जो सुजानपुर से लगभग 108 किलोमीटर दूर है |
ट्रेन द्वारा
सुजानपुर शहर के लिया कोई भी सीधी ट्रेन सेवा नहीं है। सुजानपुर से निकटतम रेलवे स्टेशन ऊना (ब्रॉड गेज रेलवे लाइन), अंब (ब्रॉड गेज रेलवे लाइन) और जवालामुखी रोड (नैरो गेज रेलवे लाइन) हैं। ऊना रेलवे स्टेशन सुजानपुर से लगभग 104 किमी दूर है । अंब रेलवे स्टेशन सुजानपुर शहर से लगभग 94 किलोमीटर दूर है |
सड़क द्वारा
यह जगह हिमाचल प्रदेश और
अन्य पड़ोसी राज्यों के सभी प्रमुख शहरों से सड़क से बहुत अच्छी तरह से जुड़ा हुआ
है। इस जगह पर नियमित बस सेवा उपलब्ध है। टैक्सी सेवा भी यहाँ पर आसानी से उपलब्ध
हैं ।
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