11 वीं शताब्दी में अल्मोड़ा में मां नंदा की स्थापना हुई थी। चंद्र वंशीय राजाओं ने माँ नंदो दवी की यहाँ स्थापना की थी

माँ नंदा देवी मंदिर 

संपूर्णचे कुमाऊं में अल्मोड़ा को सांस्कृतिक नगरी के रूप में जाना जाता है। यह सांस्कृतिक नगरी में मंदिरों की सुंदर श्रृंखलाएँ देखने को मिलती है। शारदीय व चैत्र नवरात्रि में लोग दूर-दूर से यहां मंदिरों में दर्शन के लिए पहुंचते हैं। यहां पहुंचने पर पूजा-अर्चना कर मनचाहे वरदान की कामना करते हैं। नगर का मां नंद देवी मंदिर आस्था व भक्ति का केंद्र माना जाता है। 



बताया जाता है कि 11 वीं शताब्दी में अल्मोड़ा में मां नंदा की स्थापना हुई थी। चंद्र वंशीय राजाओं ने माँ नंदो दवी की यहाँ स्थापना की थी। मां नंदा की सती कुंड में कूदने के दौरान उनकी छाया यहां पड़ गई थी। इस आधार पर शक्ति स्वरूप में माँ यहाँ विराजमान हुईं। पार्वती का स्वरूप होने के कारण उन्हें राजराजेश्वरी रूप में जाना गया। मां नंदा देवी मंदिर में प्रतिवर्ष भाद्रपद मास में पंचमी के दिन मां नंद देवी मंदिर में मेले का आयोजन हो जाता है। महिलाएं मां नंदा को इस दिन सजाती हैं। मंदिर को सजाने के लिए ऐपण भी दिए जाते हैं। भाद्रपद में ही षष्ठी के दिन कदली वृक्षों को निमंत्रण दिया जाता है। सप्तमी को कदली वृक्षों को नगर भ्रमण के बाद मां नंद देवी मंदिर में मां नंद व सुनंदा की मूर्ति बनाई जाती हैं। अष्टमी को मंदिर में महापूजन का आयोजन किया जाता है। शुभ वार जैसे बुधवार, शुक्रवार, रविवार को मां नंदा सुनंदा की भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है। इसमें मां नंद-सुनंदा को विदाई दी जाती है। प्रत्येक 12 वर्ष में मां नंदा-सुनंदा की भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है। कुमाऊं व गढ़वाल में 180 किमी लंबी यात्रा निकाली जाती है। इस यात्रा का मार्ग काफी जटिल होता है। माँ से आशीर्वाद लेने के लिए देश-विदेश से लोग यात्रा में शामिल होने आते हैं। सच्ची श्रद्धा के बारे में आने वाले भक्तों की मां सभी मनोकामना पूरी करती है।

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