नरेंद्र सिंह नेगी "चुलू जगोंदी बगत आई" को जितनी बार सुनो उतनी बार कम लगता है

 प्रेम की पीड़ा को शब्दों के मोती से बया करके फिर उसे अपनी आवाज़ की मधुरता से पूर्ण करने की कला यदि किसी को आती हे तो वो श्री नेगी जी ही हे । उनके गीत  "चुलू जगोंदी बगत आई"  को जितनी बार सुनो उतनी बार कम लगता है । न जाने कितने लोग अपना परिवार अपना पहाड़ छोडके शेहरो में अकेले जिन्दगी काट रहे हे ।ऐसे में ये गीत उनकी भावनाओं को कुछ ऐसे छूता हे जेसे मानो ये उनकी ही कहानी हो । यही तो ख़ास बात हे नेगीजी की उनके गीत होते ही पहाड़ के लोगो के लिए है । इसीलिए उन्हें गढ़रत्न कहते है । 


चुलू जगोंदी बगत आई

कभी चुलू मुझोंदी बगत आई

नि घुटेदु हेर गफा

तुम्हारी याद खांदी बगत आई ..!!!!

द्यु जगोंदी बगत आई ..

कभी द्यु मूझोंदी बगत आई ..

कभी द्यु जगोंदी बगत आई ..

कभी द्यु मूझोंदी बगत आई ..

नि घुटेदु हेर गफा

तुम्हारी याद खांदी बगत आई ..!!!!

चुलू जगोंदी बगत आई

कभी चुलू मुझोंदी बगत आई

मिलदी गुडदी बेर कभी ..

कभी लौन्दी बांदी दा सार्यो मा..

कभी यखुली यखुली ..छ्जा मुड़ी..

ग्यु छच्यांदी बगत आई ..



नि घुटेदु हेर गफा

तुम्हारी याद खांदी बगत आई ..!!!!

कभी द्यु जगोंदी बगत आई ..

कभी द्यु मूझोंदी बगत आई ...

रुड़ी भमांण दिन मा कभी ...

कभी लम्भी हुन्दी रातयो मा..

चोमास आंदी ..बेर कभी

मोल्यार जांदी बगत आई ..

नि घुटेदु हेर गफा

तुम्हारी याद खांदी बगत आई ..!!!!

कभी चुलू जगोंदी बगत आई

कभी चुलू बुझोंदी बगत आई

होल जान्दा ..हल्यु देखि ..

कभी ..घर बाड़ा सिपायु देखि ...

होल जान्दा ..हल्यु देखि ..

कभी ..घर बाड़ा सिपायु देखि ...

कभी बाटा बिरद्या..के बटवे..

बाटू बतान्दी बगत आई ..

नि घुटेदु हेर गफा

तुम्हारी याद खांदी बगत आई ..!!!!

कभी द्यु जगोंदी बगत आई ..

कभी द्यु मूझोंदी बगत आई ..

दूर यख परदेश मा ..

लगनी च खुद बखि बात की ..

दूर यख परदेश मा ..

लगनी च खुद बखि बात की ..

कभी बडुली थमदी..बेर कभी ..

आंसू लुकांदी बगत आई ...

नि घुटेदु हेर गफा

तुम्हारी याद खांदी बगत आई ..!!!!

कभी चुलू जगोंदी बगत आई

कभी चुलू बुझोंदी बगत आई

चुलू जगोंदी बगत आई

कभी चुलू बुझोंदी बगत आई

नि घुटेदु हेर गफा

तुम्हारी याद खांदी बगत आई ..!!!!

चुलू जगोंदी बगत आई

कभी चुलू बुझोंदी बगत आई||


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