माया देवी को हरिद्वार की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है,

 🔱माया देवी शक्तिपीठ🔱


माया देवी शक्तिपीठ' उत्तराखंड का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। माया देवी को हरिद्वार की अधिष्ठात्री देवी कहा जाता है। माना जाता है कि यहाँ सती के मृत शरीर की 'नाभि' गिरी थी।मान्यता है कि माँ की पूजा तब तक पूर्ण नहीं मानी जाती, जब तक भक्त भैरव बाबा का दर्शन पूजन कर उनकी आराधना नहीं कर लेते।प्राचीन काल से माया देवी मंदिर में देवी की पिंडी विराजमान है और 18वीं शताब्दी में मंदिर में देवी की मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा की गई। इस मंदिर में धार्मिक अनुष्ठान के साथ ही तंत्र साधना भी की जाती है।

माया देवी शक्तिपीठ उत्तराखंड के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल हरिद्वार में स्थित है। 'धर्मनगरी' कहे जाने वाले हरिद्वार के मध्य स्थित माया देवी मंदिर, देवी के 51 शक्तिपीठों में सबसे प्रमुख है। हिन्दू धर्म के पुराणों के अनुसार जहाँ-जहाँ सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहाँ-वहाँ शक्तिपीठ अस्तित्व में आये। ये अत्यंत पावन तीर्थ स्थान कहलाये। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं। 'देवीपुराण' में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है।

माया देवी हरिद्वार की अधिष्ठात्री देवी को कहा जाता है। माना जाता है कि यह वही स्थान है, जहाँ माता सती के मृत शरीर की 'नाभि' गिरी थी। इस मंदिर में धार्मिक अनुष्ठान के साथ ही तंत्र साधना भी की जाती है।

प्रचलित कथा के अनुसार, एक बार दक्ष प्रजापति ने हरिद्वार स्थित कनखल में यज्ञ किया। यज्ञ में शिव शंकर के अपमान से कुपित होकर माता सती ने हवनकुंड में आहुति दे दी। इस पर शिव शंकर व्यधित होकर पत्‍‌नी के वियोग में खो गए। कहते हैं कि वियोग में भोले शंकर सती के मृत शरीर को लेकर जगह-जगह भटकने लगे। इस पर विष्णु भगवान ने शिव शंकर के वियोग को समाप्त करने के लिए सुदर्शन चक्र से सती की मृत काया के 51 हिस्से कर दिए। ये हिस्से जहां-जहां गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई। मान्यता है कि माया देवी मंदिर में सती की मृत काया की 'नाभि' गिरी थी और यह जगह माया देवी के रूप में विख्यात हुई। इसीलिए मायादेवी मंदिर को सभी 51 शक्तिपीठों में से प्रमुख शक्तिपीठ माना जाता है। मान्यता है कि इसी कारण इस पावन धरा का नाम 'मायापुरी' पड़ा। ब्रह्मपुराण में सप्त पुरियों को मोक्षदायिनी बताया है। इनमें मायापुरी भी शामिल है।



माया देवी को हरिद्वार की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है, जिसका इतिहास 11 शताब्दी से उपलब्ध है। मंदिर के बगल में 'आनंद भैरव का मंदिर' भी है। पर्व-त्योहारों के समय बड़ी संख्या में श्रद्धालु माया देवी मंदिर के दर्शन करने को पहुंचते हैं। प्राचीन काल से माया देवी मंदिर में देवी की पिंडी विराजमान है और 18वीं शताब्दी में इस मंदिर में देवी की मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा की गई। इस मंदिर में धार्मिक अनुष्ठान के साथ ही तंत्र साधना भी की जाती है। हरिद्वार में भगवती की नाभि गिरी थी, इसलिए इस स्थान को ब्रह्मांड का केंद्र भी माना जाता है। हरिद्वार की रक्षा के लिए एक अद्भुत त्रिकोण विद्यमान है। इस त्रिकोण के दो बिंदु पर्वतों पर माँ मनसा और माँ चंडी रक्षा कवच के रूप में स्थित हैं तो वहीं त्रिकोण का शिखर धरती की ओर है और उसी अधोमुख शिखर पर भगवती माया आसीन हैं।

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