अनसूया माता मंदिर: यहां बच्चे बन गए थे ब्रह्मा, विष्णु और महेश, जानिए मान्यता

अनसूया माता मंदिर: यहां बच्चे बन गए थे ब्रह्मा, विष्णु और महेश, जानिए मान्यता

उत्तराखंड के चमोली जिले के मंडल क्षेत्र में स्थित अनसूया माता मंदिर न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह ऐतिहासिक और पौराणिक कथाओं से भी जुड़ा हुआ है। यह मंदिर देवी अनसूया को समर्पित है, और यहाँ प्रतिवर्ष दत्तात्रेय जयंती समारोह धूमधाम से मनाया जाता है। इस मंदिर का इतिहास और धार्मिक मान्यताएँ आज भी लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करती हैं। संतान सुख की कामना रखने वाले दंपत्तियों के लिए यह मंदिर विशेष रूप से प्रसिद्ध है।

पौराणिक मान्यता

पौराणिक कथाओं के अनुसार, अनसूया माता ने अपने तपोबल से त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु, और महेश) को शिशु रूप में बदल दिया था। त्रिदेवों ने माता अनसूया के सतीत्व की परीक्षा लेने के लिए उन्हें यह चुनौती दी थी कि वे उन्हें निर्वस्त्र होकर आशीर्वाद दें। लेकिन माता ने अपनी तपस्या और आस्था के बल पर उन्हें शिशु रूप में बदल दिया और उनका पालन-पोषण किया। इस घटना के बाद त्रिदेवों को फिर से उनका वास्तविक रूप प्राप्त हुआ और यहीं से माता अनसूया को "सती अनसूया" के नाम से पूजा जाने लगा।

माता अनसूया के तपोबल और सतीत्व की यह कथा आज भी श्रद्धालुओं के बीच प्रचलित है। हर साल दत्तात्रेय जयंती पर यहाँ विशाल मेला लगता है, जिसमें लोग संतान सुख की कामना करते हुए पूजा अर्चना करते हैं।

मंदिर की भव्यता

यह मंदिर चमोली जिले के मंडल क्षेत्र में पहाड़ों की ऊँचाई पर स्थित है, जो प्राकृतिक सौंदर्य और शांति का अद्भुत संगम प्रस्तुत करता है। मंदिर तक पहुँचने के लिए यात्रियों को पहले गोपेश्वर तक पहुँचना होता है, फिर वहाँ से एक पैदल मार्ग द्वारा मंदिर तक पहुँचना होता है। रास्ते में सुंदर वन, बुरांस और देवदार के पेड़, और अमृत गंगा की कल-कल करती धारा यात्रियों को मंत्रमुग्ध कर देती है।

दत्तात्रेय जयंती का महत्व

दत्तात्रेय जयंती पर यहाँ एक विशेष मेला आयोजित होता है। यह मेला आमतौर पर मार्गशीर्ष मास की चतुर्दशी और पूर्णिमा को आयोजित किया जाता है। इस मेले में हजारों श्रद्धालु अपनी संतान सुख की कामना लेकर आते हैं और माता अनसूया तथा भगवान दत्तात्रेय की पूजा करते हैं। मंदिर परिसर में देवी अनसूया की भव्य पाषाण मूर्ति के साथ-साथ शिव, पार्वती, भैरव, गणेश और वनदेवताओं की मूर्तियाँ भी स्थापित हैं।

कैसे पहुँचें

मंदिर तक पहुँचने के लिए सबसे पहले आपको ऋषिकेश जाना होगा, जो कि यहाँ का नजदीकी प्रमुख शहर है। ऋषिकेश से गोपेश्वर तक टैक्सी या बस के माध्यम से पहुँचा जा सकता है। गोपेश्वर से मंडल तक की यात्रा टैक्सी से की जा सकती है, और मंडल से मंदिर तक 5-6 किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई पैदल करनी होती है। यह यात्रा किसी रोमांचक अनुभव से कम नहीं होती।

अंत में

यहां का शांतिपूर्ण वातावरण और मंदिर की धार्मिक महिमा श्रद्धालुओं के दिलों को शांति प्रदान करती है। चाहे वह संतान सुख की कामना हो या त्रिदेवों के शिशु रूप में बदलाव की पौराणिक कहानी, यह मंदिर एक अनूठा स्थान है जहां हर किसी को आस्था, विश्वास और भक्ति की शक्ति का अहसास होता है।

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