मां अनसूया को पुत्रदायिनी के रूप में पूजा

 जय माँ अनुसुया देवी, आशीर्वाद देई, सब थें राजी खुशी राखी, 45 सालों बाद देवरा पर जायेगी माँ अनुसुया, विजयदशमी पर चमोली जनपद की मंडल घाटी के नौ से अधिक गांवों खल्ला, मंडल, सिरोली, कोटेश्वर, बणद्वारा, बैरागना, भदाकोटी, कुनकुली, मंडोली तथा अनुसूया गांव की इष्ट देवी है माँ अनुसुया। 45 साल बाद इस साल मां अनुसुया देवरा यात्रा पर निकलेगी। 8 अक्तूबर को विजयदशमी के पावन पर्व पर आगामी 9 महीने के लिए माता अनुसूया देवी की उत्सव डोली देवरा यात्रा पर निकलेगी और अपनी ध्याणियों से मिलने उनके ससुराली गांव जायेगी। 1973-74 के लंबे अंतराल के बाद इस बार देवरा यात्रा निकलेगी। इस दौरान देव डोली केदारनाथ, बदरीनाथ की यात्रा पर भी जाएगी। इसके लिए मंडल घाटी में जोरदार तैयारियां शुरू हो गई हैं। देवरा यात्रा के बाद मंडल में महाकुंभ का भी आयोजन होगा। इस देवरा यात्रा में  के लोगों की सामूहिक भागीदारी रहेगी।


मां अनसूया को पुत्रदायिनी के रूप में पूजा जाता है!

पुराणों में मां अनुसूया को सती शिरोमणि का दर्जा प्राप्त है। अनसूया मंदिर के निकट अनसूया आश्रम में त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु व महेश) ने अनुसूया माता के सतीत्व की परीक्षा ली थी। मान्यता के अनुसार एक बार महर्षि नारद ने त्रिदेवियों (सरस्वती, लक्ष्मी व पार्वती) से कहा कि तीनों लोकों में अनसूया से बढ़कर कोई सती नहीं है। नारद मुनि की बात सुनकर त्रिदेवियों ने त्रिदेवों को अनसूया के सतीत्व की परीक्षा लेने के लिए मृत्युलोक भेजा। तीनों देवता अनसूया आश्रम में साधु वेष में आए और मां अनसूया से नग्नावस्था में भोजन करवाने को कहा। साधुओं को बिना भोजन कराये सती मां वापस भी नहीं भेज सकती थी। तब मां अनुसूया ने अपने पति अत्रि ऋषि के कमंडल से तीनों देवों पर जल छिड़ककर उन्हें शिशु रूप में परिवर्तित कर दिया और स्तनपान कराया। कई सौ सालों तक जब तीनों देव अपने स्थानों पर नहीं पहुंचे तो चिंतित होकर तीनों देवियां अनसूया आश्रम पहुंची तथा मां अनुसूया से क्षमा याचना कर तीनों देवों को उनके मूल स्वरूप में प्रकट करवाया। तब से इस स्थान पर सती मां अनसूया को पुत्रदायिनी के रूप में पूजा जाता है। मार्गशीष पूर्णिमा को प्रत्येक वर्ष दत्तात्रेय जयंती पर यहां दो दिन का विशाल मेला भी लगता है। रक्षाबंधन को यहां ऋषितर्पणी मेला लगता है।

प्राचीन काल में यहां पर देवी अनुसूया का छोटा सा मंदिर था। सत्रहवीं सदी में कत्यूरी राजाओं ने इस स्थान पर अनुसूया देवी के भव्य मंदिर का निर्माण किया था, मगर अठारहवीं सदी में विनाशकारी भूकंप से यह मंदिर ध्वस्त हो गया था। बाद में संत ऐत्वारगिरी महाराज ने निंगोल गधेरे व मैनागाड़ गधेरे के बीच के क्षेत्र के ग्रामीणों की मदद से इस मंदिर का निर्माण कराया। मंदिर स्थानीय पत्थरों से बनाया गया है।


नवरात्र में अनसूया देवी के मंदिर में नौ दिन तक मंडल घाटी के ग्रामीण मां का पूजन करते है। इस मंदिर की विशेषता यह है कि अन्य मंदिरों की तरह यहां पर बलि प्रथा का प्रावधान नहीं है। यहां श्रद्धालुओं को विशेष प्रसाद दिया जाता है। यह स्थानीय स्तर पर उगाए गए गेहूं के आटे का होता है। आज भी हर साल हजारों श्रद्धालु अनुसुया माता के दरबार में मत्था टेकने हर बरस आते हैं।

टिप्पणियाँ