एक ऐंसा मंदिर जिसके कपाट मानव जाति के लिये सिर्फ एक दिन के लिये खुलते है

 एक ऐंसा मंदिर जिसके कपाट मानव जाति के लिये सिर्फ एक दिन के लिये खुलते है 

एक ऐंसा मंदिर जिसके कपाट मानव जाति के लिये सिर्फ एक दिन के लिये खुलते है


वंशी नारायण मंदिर चमोली गढ़वाल उत्तराखंड।

मान्यता है कि इस मंदिर में देवऋषि नारद 364 दिन भगवान नारायण की पूजा अर्चना करते हैं और यहां पर मनुष्यों को पूजा करने का अधिकार सिर्फ एक दिन के लिए ही है,

एक बार राजा बलि ने भगवान विष्णु से आग्रह किया कि वह उनके द्वारपाल बने। भगवान विष्णु ने राजा बलि के इस आग्रह को स्वीकार कर लिया और वह राजा बलि के साथ पाताल लोक चले गए। भगवान विष्णु के कई दिनों तक दर्शन न होने कारण माता लक्ष्मी परेशान हो गई और वह नारद मुनि के पास गई। नारद मुनि के पास पहुंचकर उन्होंने माता लक्ष्मी से पूछा के भगवान विष्णु कहां पर है। जिसके बाद नारद मुनि ने माता लक्ष्मी को बताया कि वह पाताल लोक में हैं और द्वारपाल बने हुए हैं।

वंशी नारायण मंदिर चमोली गढ़वाल उत्तराखंड।

नारद मुनि ने माता लक्ष्मी को भगवान विष्णु को वापस लाने का उपाय भी बताया । उन्होंने कहा कि आप श्रावण मास की पूर्णिमा को पाताल लोक में जाएं और राजा बलि की कलाई पर रक्षासूत्र बांध दें। रक्षासूत्र बांधने के बाद राजा बलि से वापस उन्हें मांग लें। इस पर माता लक्ष्मी ने कहां कि मुझे पाताल लोक जानें का रास्ता नहीं पता क्या आप मेरे साथ पाताल लोक चलेंगे। इस पर उन्होंने माता लक्ष्मी के आग्रह को स्वीकार कर लिया और वह उनके साथ पाताल लोक चले गए। जिसके बाद नारद मुनि की अनुपस्थिति में कलगोठ गांव के जार पुजारी ने वंशी नारायण की पूजा की तब से ही यह परंपरा चली आ रही है।

कातयूरी शैली में बने 10 फिट ऊंचे इस मंदिर का गर्भ भी वर्गाकार है। जहां भगवान विष्णु चर्तुभुज रूप में विद्यमान है। इस मंदिर की खास बात यह है कि इस मंदिर की प्रतिमा में भगवान नारायण और भगवान शिव दोनों के ही दर्शन होते हैं। वंशी नारायण मंदिर में भगवान गणेश और वन देवियों की मूर्तियां भी मौजूद हैं।

2 🚩वंशी नारायण मंदिर 🚩

वंशी नारायण मंदिर चमोली गढ़वाल उत्तराखंड।


♦️😯अद्भुत एक ऐसा मंदिर जो पूरे साल बस एक ही दिन खुलता है।  10 हजार फीट की ऊंचाई पर बंशीनारायन मंदिर उत्तराखंड का अकेला ऐसा मंदिर है जो मात्र एक दिन के लिए रक्षाबंधन के दिन खुलता है और कुंवारी और विवाहिताएं वंशीनारायण जी को राखी बांधने के बाद ही भाइयों की कलाई में रखी बंधती है सूर्यास्त होते ही मंदिर के कपाट एक साल के लिए फिर से बंद कर दिए जाते है

चमोली जिले के हिमालयी क्षेत्र में स्थित वंशीनारायण मंदिर तक पहुंचना बहुत मुश्किल है गोपेश्वर से उर्गम घाटी तक पहुंचने के बाद आगे 12 किलोमीटर का सफर पैदल ही नापना पड़ता है। पांच किलोमीटर दूर तक फैले मखमली घास के मैदानों को पार कर सामने नजर आता है प्रसिद्ध पहाड़ी शैली कत्यूरी में बना वंशीनारायण मंदिर।

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दस फुट ऊंचे मंदिर में भगवान की चतुर्भुज मूर्ति विराजमान है। परंपरा के अनुसार यहां मंदिर के पुजारी राजपूत हैं। वर्तमान पुजारी कलगोठ गांव के बलवंत सिंह रावत जी है उनके मुताबिक बामन अवतार धारण कर भगवान विष्णु ने दानवीर राजा बलि का अभिमान चूर कर उसे पाताल लोक भेजा। बलि ने भगवान से अपनी सुरक्षा का आग्रह किया। इस पर श्रीहरि विष्णु स्वयं पाताल लोक में बलि के द्वारपाल हो गए। ऐसे में पति को मुक्त कराने के देवी लक्ष्मी पाताल लोक पहुंची और राजा बलि के राखी बांधकर भगवान को मुक्त कराया। किवदंतियों के अनुसार पाताल लोक से भगवान यहीं प्रकट हुए। माना जाता है कि भगवान के राखी बांधने से स्वयं श्रीहरि उनकी रक्षा करते हैं। रक्षाबंधन को आसपास के दर्जनों गांवों के लोग यहां एकत्र होकर इस अद्भुत क्षण के गवाह बनते है।

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रक्षाबंधन के दिन कलगोठ गांव के प्रत्येक घर से भगवान नारायण के लिए मक्खन आता है। इसी मक्खन से वहाँ पर प्रसाद तैयार होता है। भगवान वंशी नारायण की फूलवारी में कई दुर्लभ प्रजाति के फूल खिलते हैं। इस मंदिर में श्रवण पूर्णिमा पर भगवान नारायण का श्रृंगार भी होता है। इसके बाद गांव के लोग भगवान नारायण को रक्षासूत्र बांधते हैं। मंदिर में ठाकुर जाति के पुजारी होते हैं। मंदिर के पास ही दाढ़ी भी स्थित है। यहां पर श्रद्धालु भोजन बनाने के साथ रात्रि विश्राम भी करते हैं।

कातुरी शैली में बने 10 फिट ऊंचे इस मंदिर का गर्भ भी वर्गाकार है। जहाँ भगवान विष्णु चर्तुभुज रूप में विद्यमान है। इस मंदिर की खास बात यह है कि इस मंदिर की प्रतिमा में भगवान नारायण और भगवान शिव दोनों के ही दर्शन होते हैं। वंशी नारायण मंदिर में भगवान गणेश और वन देवियों की मूर्तियां भी मौजूद हैं। इस मंदिर तक पहुंचना भी आसान नहीं है। यहां पहुंचने के लिए बद्रीनाय हाईवे से इलाद घाटी तक आठ किलोमीटर की दूरी वाहन से तय करनी पड़ती है। इसका 12 किलोमीटर का मुश्किल रास्ता शुरू होता है। यह रास्ता बहुत ही ज्यादा उबड़खाबड़ है। जिस पर चलना अत्यंत ही कठिन है।


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