गोरखा काल में कर व्यवस्था: गढ़वाल और कुमाऊं में आर्थिक शोषण का एक काला अध्याय (Tax System in Gorkha Period)

गोरखा काल में कर व्यवस्था: गढ़वाल और कुमाऊं में आर्थिक शोषण का एक काला अध्याय

गोरखा शासनकाल (1790–1815) गढ़वाल और कुमाऊं के लिए कई मायनों में कठिनाई भरा दौर था। इस समय, स्थानीय जनता पर विभिन्न प्रकार के कर लगाए गए, जो उनकी आर्थिक स्थिति को कमजोर करने का कारण बने। कर वसूली की यह व्यवस्था न केवल आर्थिक रूप से अनुचित थी, बल्कि सामाजिक अन्याय का प्रतीक भी बन गई थी।

गोरखा शासनकाल में वसूले जाने वाले प्रमुख कर

  1. पुंगाड़ी

    • यह भूमिकर था और गोरखा शासन को लाखों रुपये की वार्षिक आय होती थी।
    • 'पंगड़ा' (खेत) से इस कर का नाम लिया गया।
  2. सुवांगी दस्तूर

    • प्रत्येक वीसी (खेती योग्य) भूमि पर एक रुपये का कर वसूला जाता था।
  3. सलामी

    • एक प्रकार का भेंट या नजराना, जो गोरखा अधिकारियों को दिया जाता था।
  4. तिमारी

    • फौजदार को 4 आना और सूबेदार को 2 आना देने का प्रावधान था।
    • 1811 ई. में काजी बहादुर भंडारी ने इसकी दर निर्धारित की, लेकिन पालन नहीं हुआ।
  5. पगरी

    • भूमि और संपत्ति के लेन-देन से संबंधित कर, जिसे एकमुश्त जमा करना होता था।
    • गोरखों की आय का मुख्य स्रोत था।
  6. मेजबानी दस्तूर

    • सुरक्षा के एवज में लिया गया कर, जिसकी दर ढाई आना थी।
  7. टीका-भेंट

    • शादी, विवाह और अन्य शुभ अवसरों पर वसूला जाने वाला स्वैच्छिक कर।
  8. मांगा

    • हर नौजवान से एक रुपये का कर लिया जाता था।
    • युद्धकाल में इसे तुरंत वसूल किया जाता था।
  9. सोन्या-फागुन

    • सावन और फाल्गुन के उत्सवों के लिए लिया जाने वाला कर।
    • इसे भैंस या बकरी के रूप में वसूला जाता था।
  10. टानकर

    • यह कर भोटिया और हिंदू बुनकरों से कपड़ों के रूप में लिया जाता था।
  11. मिझारी

    • जगरिया (भजन गाने वाले) ब्राह्मणों और शिल्पकारों से लिया जाने वाला कर।
  12. बहता

    • छिपाई गई संपत्ति पर लगाया जाने वाला कर।
  13. घी-कर

    • पशुपालकों से वसूला जाने वाला कर, जो घी के रूप में लिया जाता था।

अन्य कर और प्रथाएँ

गोरखा शासन ने चंद शासनकाल से चले आ रहे करों को भी जारी रखा। इनमें शामिल थे:

  • घरही-पिछही: प्रत्येक परिवार से 2 रुपये का कर।
  • दोनिया: भावर क्षेत्र में पशुपालकों से वसूला गया।
  • गोबर और पुछिया: अन्य करों के रूप में।

ठेका प्रथा और आर्थिक शोषण

गोरखा शासन ने काश्तकारों से कर ठेका प्रथा के तहत एकत्रित किया। अधिकारियों को राजस्व वसूली का अधिकार दिया जाता था, और वे अपने वेतन सहित अन्य खर्च इसी से निकालते थे। वसूली में मनमानी की जाती थी, जिससे जनता कर चुकाने में असमर्थ हो जाती थी।

गोरखा शासन का प्रभाव

गोरखा काल में भारी करों और शोषण के कारण:

  • कई गाँव खाली हो गए।
  • बस्तियाँ जंगलों में तब्दील हो गईं।
  • जनता की स्थिति बदतर हो गई।

निष्कर्ष

गोरखा शासनकाल में कर व्यवस्था ने कुमाऊं और गढ़वाल की जनता को आर्थिक रूप से कमजोर कर दिया। इस शोषणकारी प्रणाली के परिणामस्वरूप, लोगों ने गोरखा शासन के खिलाफ आवाज उठाई, जो अंततः ब्रिटिश हस्तक्षेप और गोरखा शासन के पतन का कारण बनी।

यह अध्याय आज भी हमें हमारे इतिहास की चुनौतियों और संघर्षों की याद दिलाता है।

गोरखा काल में कर व्यवस्था से जुड़े FQCs (Frequently Asked Questions)

1. गोरखा शासनकाल में कौन-कौन से प्रमुख कर वसूले जाते थे?

गोरखा शासनकाल में वसूले जाने वाले प्रमुख करों में शामिल थे:

  • पुंगाड़ी: भूमिकर
  • सुवांगी दस्तूर: प्रत्येक वीसी भूमि पर एक रुपये का कर
  • सलामी: भेंट या नजराना
  • तिमारी: फौजदार और सूबेदार को दिया जाने वाला कर
  • पगरी: संपत्ति लेन-देन से संबंधित कर
  • मेजबानी दस्तूर: सुरक्षा के बदले वसूला गया कर
  • मांगा: युद्धकाल में नौजवानों से वसूला गया कर

2. "पुंगाड़ी" कर क्या था?

यह गोरखा शासनकाल का भूमिकर था, जिससे शासन को लाखों रुपये की वार्षिक आय होती थी। इसका नाम 'पंगड़ा' से लिया गया है, जो स्थानीय भाषा में खेत को कहते हैं।

3. सुवांगी दस्तूर का क्या महत्व था?

सुवांगी दस्तूर एक प्रकार का भू-कर था, जो प्रत्येक खेती योग्य भूमि (वीसी) पर एक रुपये की दर से वसूला जाता था।

4. तिमारी कर किसे और क्यों देना पड़ता था?

तिमारी कर फौजदार को 4 आना और सूबेदार को 2 आना देना होता था। इसे सैनिकों के वेतन के रूप में लिया जाता था।

5. "मांगा" कर किससे वसूला जाता था?

मांगा कर प्रत्येक नौजवान से लिया जाता था। यह युद्धकाल में तत्कालीन कर के रूप में एकत्रित किया जाता था।

6. "सोन्या-फागुन" कर क्या था?

यह कर सावन और फाल्गुन के त्योहारों के खर्च के लिए लिया जाता था। इसे भैंस या बकरी के रूप में वसूला जाता था।

7. गोरखा शासन में "टानकर" का क्या अर्थ है?

'टानकर' कपड़े के रूप में लिया जाने वाला कर था, जिसे भोटिया और हिंदू बुनकरों से वसूला जाता था।

8. मिझारी कर किससे वसूला जाता था?

मिझारी कर जगरिया (भजन गाने वाले ब्राह्मणों) और शिल्पकारों से लिया जाता था।

9. क्या गोरखा शासन में छिपी संपत्ति पर भी कर लगाया जाता था?

हाँ, छिपी हुई संपत्ति पर "बहता" नामक कर लगाया जाता था।

10. गोरखा शासनकाल में कर वसूली की क्या प्रक्रिया थी?

गोरखा शासन में कर ठेका प्रथा के आधार पर एकत्रित किए जाते थे। राज्य के हिस्सों को फौजी अधिकारियों को सौंप दिया जाता था, जो अपनी आवश्यकताएँ वसूली से निकालते थे।

11. गोरखा शासनकाल में जनता पर करों का क्या प्रभाव पड़ा?

अत्यधिक करों के कारण:

  • गाँव खाली हो गए।
  • बस्तियाँ जंगलों में बदल गईं।
  • जनता आर्थिक रूप से कमजोर हो गई।

12. गोरखा शासन में "सलामी" क्या थी?

सलामी एक प्रकार का नजराना या भेंट था, जो गोरखा अधिकारियों को दिया जाता था।

13. गोरखा काल में "पगरी" कर क्यों लिया जाता था?

पगरी कर भूमि और संपत्ति के लेन-देन से संबंधित था। इसे प्राप्तकर्ता को एकमुश्त देना पड़ता था।

14. गोरखा शासन में कौन-कौन से अन्य कर वसूले जाते थे?

अन्य करों में शामिल थे:

  • घरही-पिछही
  • गोबर और पुछिया
  • दोनिया
  • वक्ष्यात (बख्शीस)
  • ऊपरी रकम
  • कल्याण धन
  • केरू
  • घररू

15. गोरखा शासन के करों के बोझ का अंत कब हुआ?

गोरखा शासन का अंत 1815 में अंग्रेजों के हस्तक्षेप के बाद हुआ, जिसने जनता को भारी करों के बोझ से मुक्त किया।

16. गोरखा प्रशासन में ठेका प्रथा क्या थी?

गोरखा प्रशासन में ठेका प्रथा के तहत कर वसूलने की जिम्मेदारी सैनिक अफसरों को दी जाती थी, जो अपने वेतन सहित सभी खर्च इसी से निकालते थे।

17. क्या गोरखा काल में कोई स्वैच्छिक कर था?

हाँ, शादी-विवाह और अन्य शुभ कार्यों पर "टीका-भेंट" नामक स्वैच्छिक कर लिया जाता था।

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