ब्रिटिश कालीन भू-प्रबन्धन, वन प्रबन्ध, पुलिस व्यवस्था (British Land Management, Forest Management, Policing )

ब्रिटिशकाल में वन प्रबंधन और पुलिस व्यवस्था: एक ऐतिहासिक दृष्टि

ब्रिटिश काल के दौरान उत्तराखंड के कुमाऊँ और गढ़वाल क्षेत्रों में वन और पुलिस प्रबंधन का संगठित ढांचा तैयार किया गया। इस लेख में ब्रिटिश शासन के तहत जंगलों और न्याय व्यवस्था के विकास के चरणों, उनके प्रभाव, और स्थानीय जनता पर उनके प्रभाव की चर्चा की गई है।


ब्रिटिशकाल में वन प्रबंधन

ब्रिटिश शासन के दौरान वन प्रबंधन का मुख्य उद्देश्य वनों का आर्थिक दोहन था। वनों को तीन चरणों में व्यवस्थित किया गया:

  1. प्रथम चरण (1815-1878):
    इस चरण में ट्रेल महोदय ने जंगलों के संरक्षण पर ध्यान दिया। भाबर क्षेत्र में साल के पेड़ों की कटाई पर रोक लगाई गई।

    • मुख्य विशेषताएं:
      • 1855-61 में रेलवे के स्लीपरों के लिए बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई।
      • रामजे द्वारा जंगलात बंदोबस्त और भाबर क्षेत्र के जंगलों का संरक्षण।
    • इस चरण में जनता को विशेष कठिनाई नहीं हुई, और जंगल उनके लिए उपयोगी रहे।
  2. द्वितीय चरण (1878-1893):
    इस काल में वनों को संरक्षित और सुरक्षित घोषित किया गया।

    • प्रमुख घटनाएं:
      • लोहे की कंपनियों और चाय बागानों के लिए वन क्षेत्र आवंटित।
      • जनता के पारंपरिक अधिकार समाप्त किए गए।
  3. तृतीय चरण (1893 और इसके बाद):
    वर्ष 1893 में नैनीताल में राजाज्ञा जारी कर जंगलों को सरकारी घोषित किया गया।

    • जंगलों को तीन श्रेणियों में बांटा गया:
      • 'अ' श्रेणी: पूर्ण रूप से सुरक्षित।
      • 'ब' श्रेणी: सीमित अधिकार।
      • 'स' श्रेणी: खुले जंगल।
    • 1911-1917 में जनता के जंगल अधिकार समाप्त कर दिए गए।
    • प्रभाव:
      • जनता को भारी कष्ट।
      • वन गार्ड (पतरोलों) द्वारा अत्याचार।

पुलिस और न्याय व्यवस्था

ब्रिटिशकाल में पुलिस और न्याय व्यवस्था को व्यवस्थित किया गया।

  1. पुलिस प्रबंधन:

    • प्रारंभिक दौर में थोकदार और प्रधान स्थानीय पुलिस कार्य देखते थे।
    • गोरखों के समय में सैन्य अधिकारी इस कार्य को संभालते थे।
    • अंग्रेजों ने 1813 में पुलिस व्यवस्था को संगठित किया।
    • प्रमुख थाने:
      • 1837 में अल्मोड़ा।
      • 1843 में नैनीताल।
      • 1869 में रानीखेत।
    • ट्रेल महोदय ने राजस्व पुलिस (पटवारी) प्रणाली शुरू की।
  2. न्यायिक व्यवस्था:

    • वर्ष 1838 में न्याय व्यवस्था के लिए नियम-10 लागू किया गया।
    • 1894 तक कुमाऊँ कमिश्नर को फांसी देने का अधिकार था।
    • 1914 में न्याय विभाग को उच्च न्यायालय के अधीन किया गया।

जनता पर प्रभाव

  • वन अधिकार छिनने और पुलिस के कठोर नियमों ने जनता पर नकारात्मक प्रभाव डाला।
  • पटवारियों और अन्य अधिकारियों द्वारा शोषण बढ़ा।
  • असहयोग आंदोलन के बाद जनता में जागरूकता आई, जिससे शोषण में कमी आई।

निष्कर्ष

ब्रिटिश शासन के दौरान उत्तराखंड के वनों और पुलिस व्यवस्था का विकास प्रगतिशील था, लेकिन यह जनता के अधिकारों और आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाला था। वनों का संरक्षण और उनका आर्थिक दोहन, दोनों ही औपनिवेशिक शासन की प्राथमिकताएं रहीं।

 FQCs (Frequently Asked Questions) 


1. ब्रिटिशकाल में कुमाऊं क्षेत्र में वन प्रबंधन का क्या महत्व था?

ब्रिटिशकाल में कुमाऊं क्षेत्र में वन प्रबंधन का मुख्य उद्देश्य साम्राज्य के खजाने को बढ़ाना था। इसके तहत जंगलों का संरक्षण किया गया, लेकिन यह स्थानीय लोगों के पारंपरिक अधिकारों के उल्लंघन के साथ था। अंग्रेजों ने जंगलों को तीन श्रेणियों में बांटा और स्थानीय लोगों की कटाई पर सख्त पाबंदियां लगाईं।


2. ब्रिटिशकाल में कुमाऊं की पुलिस व्यवस्था कैसे काम करती थी?

ब्रिटिश शासन ने कुमाऊं में एक संगठित पुलिस व्यवस्था बनाई थी। शुरू में, पुलिस का काम ठेके पर था, लेकिन बाद में इसे कुमाऊंनी बटालियन को सौंप दिया गया। ट्रेल महोदय ने पटवारियों को पुलिस कार्यों की जिम्मेदारी दी, जिससे पुलिस व्यवस्था सुदृढ़ हुई।


3. कुमाऊं में ब्रिटिश शासन के दौरान न्याय व्यवस्था का क्या ढांचा था?

ब्रिटिश शासन के दौरान कुमाऊं में न्याय व्यवस्था का प्रमुख कार्य कुमाऊं कमिश्नर के हाथों में था, जो फांसी तक का अधिकार रखते थे। 1914 में न्याय विभाग को उच्च न्यायालय से जोड़ा गया, और 1929 में पहला मुंसिफ नियुक्त किया गया।


4. ब्रिटिशकाल में वन प्रबंधन के तीन चरण क्या थे?

ब्रिटिशकाल में वन प्रबंधन के तीन प्रमुख चरण थे:

  1. प्रथम चरण (1815-1878 ई.): इस दौरान काठबाँस और कत्थे पर कर लगाया गया।
  2. द्वितीय चरण (1878-1893 ई.): ब्रिटिश शासन ने जंगलों को संरक्षित और सुरक्षित घोषित किया।
  3. तृतीय चरण (1893 ई. से वर्तमान तक): इस चरण में जंगलों को तीन श्रेणियों में बांटा गया और विशेष नियंत्रण लागू किया गया।

5. ब्रिटिशकाल के दौरान कुमाऊं के स्थानीय लोगों पर वन प्रबंधन के क्या प्रभाव पड़े?

ब्रिटिशकाल में वन प्रबंधन के कारण स्थानीय लोगों के पारंपरिक वन उपयोग अधिकारों में कमी आई। उन्हें जंगलों की कटाई और उनके संसाधनों का उपयोग करने के लिए सीमित कर दिया गया, जिससे उनके जीवन यापन पर असर पड़ा।


6. ब्रिटिश काल में कुमाऊं के जंगलों में संरक्षण कैसे किया गया?

ब्रिटिश शासन ने कुमाऊं के जंगलों को संरक्षित और सुरक्षित बनाने के लिए कई उपाय किए। उन्होंने कुछ जंगलों को पूरी तरह से बंद कर दिया और उनका उपयोग स्थानीय लोगों के लिए प्रतिबंधित कर दिया। यह कदम अंग्रेजों के साम्राज्य की आर्थिक जरूरतों को पूरा करने के लिए था।


7. क्या ब्रिटिश शासन के दौरान कुमाऊं में पुलिस व्यवस्था के सुधार हुए?

हां, ब्रिटिश शासन के दौरान पुलिस व्यवस्था में कई सुधार हुए। खासकर, कुमाऊं में एक सशक्त और संगठित पुलिस प्रणाली स्थापित की गई। बाद में पटवारियों को पुलिस कार्यों की जिम्मेदारी दी गई, जिससे कानून व्यवस्था मजबूत हुई।


8. ब्रिटिश शासन के दौरान कुमाऊं में वन प्रबंधन और न्याय व्यवस्था के क्या परिणाम थे?

ब्रिटिश शासन के दौरान वन प्रबंधन और न्याय व्यवस्था ने कुमाऊं में विकास को प्रभावित किया। जहां एक ओर यह व्यवस्था प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण में सहायक रही, वहीं दूसरी ओर स्थानीय लोगों के शोषण और अधिकारों की हानि भी हुई।

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