कईं रहस्य समेटे है देवीधुरा का मां बाराही धाम

 जय माता दी:- यह है देवीधुरा चंपावत में स्थित मां बाराही देवी मंदिर

कईं रहस्य समेटे है देवीधुरा का मां बाराही धाम

देवीधुरा की ख्याति भले ही विश्व में बग्वाल मेले के लिए हो, लेकिन मां बाराही के मन्दिर में रखी एक ताम्र पेटी भी अपने आप में कई रहस्य समेटे हुए है. आस्था के चलते जहां अभी तक कोई भी श्रद्धालु माँ की मूर्ति को खुली आँखों से नहीं देख पाया है. वहीं जिस श्रद्धालु ने कोशिश की उसकी आँखों की रोशनी चली गई. यही वजह हैं कि ताम्रपेटिका में रखी मूर्ति को नहीं देखने की परंपरा सदियों से चली आ रही है.
देवीधुरा में बसने वाली माँ बाराही का मंदिर 52 पीठों में से एक माना जाता है. मुख्य मंदिर में तांबे की पेटिका में मां बाराही देवी की मूर्ति है, मगर पेटिका में रखी इस देवी मूर्ति के दर्शन अभी तक किसी ने नहीं किए हैं. हर साल भाद्रपद कृष्ण प्रतिपदा को बागड़ जाती के क्षत्रीय वंशज द्वारा ताम्र पेटिका को मुख्य मंदिर से नंद घर में लाया जाता है, जहां आंखों में पट्टी बांध कर मां का स्नान कर श्रगार किया जाता है.
यह भी मान्यता है कि जिसने माँ की मूर्ति के दर्शन खुली आँखों से किए, मूर्ति के तेज से उसकी आँखों की रोशनी चली जाती है. 


माँ की मूर्ति की तरह देवीधुरा में दिख रही ये भीम शीला पत्थरों को जहाँ पुराने समय के बग्वाल युद्ध से जोड़कर देखा जाता है. वहीं माँ का मुख्य मंदिर भी गुफा के अंदर है.
मान्यता है कि चम्याल खाम की एक बुजुर्ग की तपस्या से प्रसन्न होने के बाद नर बलि बंद हो गई और बग्वाल की परम्परा शुरू हुई. इस बग्वाल में चार खाम चम्याल, वालिक, गहरवाल और लमगड़िया के रणबांकुरे बिना जान की परवाह किये एक इंसान के रक्त निकलने तक युद्ध लड़ते हैं. भले ही तीन साल से बग्वाल फल-फूलो से खेली जा रही हो, लेकिन उसके वावजूद योद्धा घायल होते हैं और उनके शरीर रक्त निकलता दिखता है.
वहीं मन्दिर के पुजारी और बग्वाल के रंबकारों का कहना है कि फल फूल आसमान में पत्थर का रूप ले लेते हैं . अपने आप में देवीधुरा का प्रसिद्ध माँ बाराही का धाम भले ही अपने कई रहस्यों को छिपाये हुए हैं.
यह स्थान सड़क मार्ग द्वारा बेहतर तरीके से जुड़ा हुआ है टैक्सी या निजी वाहन से इस स्थान पर पहुंचा जा सकता है पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण इस स्थान में रहने खाने की उत्तम व्यवस्था है।

इस उत्सव का मुख्य आकर्षण बग्वाल (पाषाण युद्ध यानी पत्थरों से खेला जाने वाला युद्ध) होता है जो कि श्रावणी पूर्णिमा को आयोजित किया जाता है।इस प्रसिद्ध मेले (Bagwal Mela) को देखने के लिए देश के कोने-कोने से लोग यहां मां बाराही के मंदिर तक पहुंचते हैं ।

बच्चे ,बड़े,  बुजुर्ग सब मेले में बड़े उत्साह व उमंग से भाग लेते हैं। आस्था और विश्वास का यहां पाषाण युद्ध मां बाराही मंदिर के प्रांगण में बड़े जोश व वह पूरे विधि विधान के साथ तथा पूरी तैयारी के साथ खेला जाता है। यह अपने आप में एक अनोखा व अद्भुत मेला है जो शायद ही दुनिया में और कहीं खेला जाता हो।
एक प्रचलित कथा के अनुसार हिरणाक्ष व धर्मराज एक बार माता पृथ्वी को जबरदस्ती पाताल लोक ले जा रहे थे। तब पृथ्वी ने भगवान विष्णु को मदद के लिए पुकारा। पृथ्वी की करुण पुकार सुनकर भगवान विष्णु ने वाराह का रूप धारण कर पृथ्वी को बचाया और उन्हें वामन में धारण किया।

हिमालय की गोद में खूबसूरत पहाड़ी वादियों के बीच स्थित चंपावत जिले के लोहावट कस्बे से 45 किलोमीटर लोहाघाट-हल्द्वानी मोटर मार्ग में तथा समुद्र तल से लगभग 6500 मीटर की ऊंचाई पर स्थित मां बाराही देवी का मंदिर ,देवीधुरा अपने अलौकिक सौंदर्य व प्रसिद्ध बग्बाल मेले (Bagwal Mela) के लिए दुनिया भर में जाना जाता है।

श्रावणी पूर्णिमा के दिन मनाया जाने वाला यह उत्सव मुख्य रूप से नैनीताल तथा चंपावत जनपदों के सीमांत क्षेत्र देवीधुरा में मनाया जाता है।यह मेला प्रसिद्ध शक्तिपीठ देवीधुरा के मां बाराही देवी के प्रांगण में प्रतिवर्ष श्रावण शुक्ल एकादशी ( रक्षाबंधन के अवसर पर ) को पूजा के साथ प्रारंभ होकर भाद्र कृष्ण द्वितीय तक चलता है।


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