1857 ई० का विद्रोह और उत्तराखण्ड
1857 का विद्रोह, जिसे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की पहली क्रांति कहा जाता है, ने पूरे भारत में अंग्रेजों के खिलाफ एक जबरदस्त लहर पैदा की। इस समय, जब पूरे उत्तरी और मध्य भारत में विद्रोह की लहर फैल रही थी, गढ़वाल क्षेत्र में ब्रिटिश शासन ने क्रांति को काबू करने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए।

गढ़वाल में ब्रिटिश शासन की भूमिका
जब सम्पूर्ण भारत में क्रांति की आग सुलग रही थी, तो गढ़वाल में बैकेट डिप्टी कमिश्नर थे, जिन्होंने गढ़वाल को विद्रोहियों से सुरक्षित रखने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने गढ़वाल के सभी महत्वपूर्ण मार्गों पर नाकेबंदी कर दी, जो मैदानी क्षेत्रों से जुड़े थे। इस दौरान कुमाऊँ कमिश्नर हेनरी रेमजे ने भी गढ़वाल में विद्रोहियों के दमन के लिए कदम उठाए, और अल्मोड़ा से गोरखा सैनिकों को श्रीनगर भेजा।
गढ़वाल में कुछ हिंसक घटनाएं
हालाँकि गढ़वाल में ब्रिटिश शासन के खिलाफ कोई बड़ी हिंसक घटना नहीं घटी, लेकिन विद्रोह के दौरान कुछ लोग अंग्रेजों के खिलाफ जागृत हुए थे। ऐसे व्यक्तियों को पकड़कर श्रीनगर लाया जाता था और उन्हें गंगा नदी के किनारे स्थित एक टीले पर गोली मार दी जाती थी, जिसे स्थानीय लोग 'टिबरी' कहते थे।
ब्रिटिश गढ़वाल और टिहरी रियासत
ब्रिटिश गढ़वाल के थोकदारों और जमींदारों ने 1857 के विद्रोह में भाग नहीं लिया और उन्होंने ब्रिटिश शासन का पूरी तरह से समर्थन किया। इस समय, पदम सिंह नेगी और शिवराम सिंह नामक दो गढ़वाली थोकदारों ने अंग्रेजों की तरफ से कोटद्वार-भावर क्षेत्र की रक्षा की। उनके इस योगदान को देखकर, क्रांति के बाद उन्हें बिजनौर के कुछ गाँवों में जमींदारी प्रदान की गई।

कुमाऊँ कमिश्नर हेनरी रेमजे का योगदान
कुमाऊँ के कमिश्नर हेनरी रेमजे ने 1857 के विद्रोह के दौरान कुमाऊँ की जनता को शांत और राजभक्त रहने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने लार्ड कैनिंग को पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने कुमाऊँ की जनता की शांतिपूर्ण स्थिति को दर्शाया। इस पत्र का इतना गहरा प्रभाव पड़ा कि कैनिंग ने पर्वतीय क्षेत्रों की जनता से उनके हथियार छीनने के आदेश को तुरंत निरस्त कर दिया।
टिहरी रियासत का सहयोग
टिहरी रियासत के राजा सुदर्शन शाह ने भी 1857 के विद्रोह के दौरान ब्रिटिश शासन का समर्थन किया। उन्होंने ब्रिटिश परिवारों को मंसूरी में आश्रय दिया और उनकी सुरक्षा के लिए सैनिक तैनात किए। इसके अलावा, सुदर्शन शाह ने ब्रिटिश सरकार को एक लाख रुपये की आर्थिक सहायता भी दी थी।
बम्बू खां का संघर्ष
बम्बू खां, जो नजीबाबाद का नवाब था, ने अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया और बिजनौर जिले में अपना साम्राज्य स्थापित किया। उन्होंने टिहरी के राजा सुदर्शन शाह को पत्र भेजकर उन्हें ब्रिटिश शासन के खिलाफ क्रांति में भाग लेने के लिए प्रेरित किया।
कुमाऊँ क्षेत्र में विद्रोह
कुमाऊँ क्षेत्र में भी विद्रोह की भावना थी। खान बहादुर ने बरेली में आंदोलन का नेतृत्व किया और नैनीताल पर कब्जा करने के लिए हल्द्वानी पर आक्रमण किया। कालू माहरा ने काली कुमाऊँ में गुप्त संगठन स्थापित किया और अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध छेड़ा। इसके अलावा, तराई क्षेत्र के बंजारों ने भी संघर्षकारियों का समर्थन किया।
1857 के बाद
1857 के विद्रोह के बाद उत्तराखण्ड में कोई बड़ा सशस्त्र संघर्ष नहीं हुआ, लेकिन यह निश्चित रूप से एक वैचारिक क्रांति का शुभारंभ था। इसके बाद, कंपनी शासन का समापन हुआ और ब्रिटिश साम्राज्य ने रानी विक्टोरिया के शासन को स्थापित किया।
इस प्रकार, हम पाते हैं कि 1857 के विद्रोह ने उत्तराखण्ड के लोगों को अंग्रेजों के खिलाफ जागरूक किया, भले ही वे सशस्त्र संघर्ष में भाग न ले सके। इसके बावजूद, इसने क्षेत्र में एक राजनीतिक चेतना का जन्म दिया, जो आने वाले समय में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण साबित हुई।
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