देवप्रयाग - भगीरथी वा अलकनंदा का संगम
Devprayag - Confluence of Bhagirathi and Alaknanda
देवप्रयाग की यात्रा के बारे में पूरी जानकारी
देवप्रयाग भारत में उत्तराखंड राज्य के टिहरी गढ़वाल जिले का एक कस्बा है। यह एक पवित्र स्थान जहाँ से गंगा नदी भागीरथी और अलकनंदा नदियों के संगम के बाद निकलती है। यह स्थान पंच प्रयाग का भी एक हिस्सा है और हिंदू भक्तों के दिलों में इसका अत्यधिक महत्व है। देवप्रयाग में पूरे देश से सालभर हिंदू तीर्थयात्री और पर्यटक आते हैं। इस स्थान पर न केवल आध्यात्मिक माहौल है, बल्कि शांत वातावरण के बीच एकांत का आनंद लेने के लिए सबसे अच्छा स्थान है। नदियों और पहाड़ियों का मनमोहक दृश्य पर्यटकों को यहां खींच लाता है। यह उत्तराखंड के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में एक है।
देवप्रयाग कैसे पहुंचें – How To Reach Devprayag
देवप्रयाग में देश के कोने कोने से भारी संख्या में पर्यटक आते हैं। इसलिए यदि आप उत्तराखंड राज्य में स्थित देवप्रयाग की यात्रा करना चाहते हैं तो इसके लिए कई विकल्प मौजूद हैं। आइये जानते हैं देवप्रयाग कैसे पहुंचा जाए।
फ्लाइट से देवप्रयाग केसे जायें
देवप्रयाग का निकटतम हवाई अड्डा जॉली ग्रांट एयरपोर्ट है जो यहां से 91 किमी दूर है। दिल्ली सहित कई अन्य शहरों से इस एयरपोर्ट के लिए दैनिक उड़ानें हैं। आप हवाई अड्डे से देवप्रयाग टैक्सी या बस से जा सकते हैं।
देवप्रयाग ट्रेन से केसे पहुचें
ऋषिकेश रेलवे स्टेशन देवप्रयाग का निकटतम रेलवे स्टेशन है। इस रेलवे स्टेशन पर देश के प्रमुख शहरों से रेलगाड़ियों की सुविधा है। रेलवे स्टेशन पर उतरने के बाद आप निजी परिवहन या उत्तराखंड राज्य की बसों से देवप्रयाग पहुंच सकते हैं। ऋषिकेश रेलवे स्टेशन से देवप्रयाग की दूरी लगभग 72 किलो मीटर है।
बस से देवप्रयाग केसे जायें
सड़कमार्ग से देवप्रयाग जाने वाले पर्यटकों की संख्या सबसे ज्यादा है। देवप्रयाग उत्तराखंड के कई शहरों और भारत के विभिन्न शहरों से मोटर योग्य सड़कों से भी जुड़ा हुआ है। सड़कें देवप्रयाग को भारत के उत्तरी राज्यों से भी जोड़ती हैं। आईएसबीटी कश्मीर गेट से देवप्रयाग और ऋषिकेश के लिए नियमित रूप से बसें चलती हैं। श्रीनगर, हरिद्वार, देहरादून, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी और टिहरी जैसे प्रमुख शहरों से बसें और टैक्सियां सुलभ हैं। जिसके माध्यम से आप यहां आ सकते हैं।
प्रसिद्धि
बायें अलकनंदा और दायें भागीरथी नदियां देवप्रयाग में संगम बनाती हैं और यहां से गंगा नदी बनती है।
मान्यतानुसार यहां देवशर्मा नामक एक तपस्वी ने कड़ी तपस्या की थी, जिनके नाम पर इस स्थान का नाम देवप्रयाग पड़ा। प्रयाग किसी भी संगम को कहा जाता है। यह स्व.आचार्य श्री पं.चक्रधर जोशी नामक ज्योतिष्विद एवं खगोलशास्त्री का गृहस्थान था, जिन्होंने १९४६ में नकषत्र वेधशाला की स्थापना की थी। ये वेधशाला दशरथांचल नामक एक निकटस्थ पर्वत पर स्थित है। यह वेधशाला दो बड़ी दूरबीनों (टेलीस्कोप) से सुसज्जित है और यहां खगोलशास्त्र संबंधी पुस्तकों का बड़ा भंडार है। इसके अलावा यहां देश के विभिन्न भागों से १६७७ ई से अब तक की संग्रह की हुई ३००० विभिन्न संबंधित पांडुलिपियां सहेजी हुई हैं। आधुनिक उपकरणों के अलावा यहां अनेक प्राचीन उपकरण जैसे सूर्य घटी, जल घटी एवं ध्रुव घटी जैसे अनेक यंत्र व उपकरण हैं जो इस क्षेत्र में प्राचीन भारतीय प्रगति व ज्ञान की द्योतक हैं।
रामायण में लंका विजय उपरांत भगवान राम के वापस लौटने पर जब एक धोबी ने माता सीता की पवित्रता पर संदेह किया, तो उन्होंने सीताजी का त्याग करने का मन बनाया और लक्ष्मण जी को सीताजी को वन में छोड़ आने को कहा। तब लक्ष्मण जी सीता जी को उत्तराखण्ड देवभूमि के ऋर्षिकेश से आगे तपोवन में छोड़कर चले गये। जिस स्थान पर लक्ष्मण जी ने सीता को विदा किया था वह स्थान देव प्रयाग के निकट ही ४ किलोमीटर आगे पुराने बद्रीनाथ मार्ग पर स्थित है। तब से इस गांव का नाम सीता विदा पड़ गया और निकट ही सीताजी ने अपने आवास हेतु कुटिया बनायी थी, जिसे अब सीता कुटी या सीता सैंण भी कहा जाता है। यहां के लोग कालान्तर में इस स्थान को छोड़कर यहां से काफी ऊपर जाकर बस गये और यहां के बावुलकर लोग सीता जी की मूर्ति को अपने गांव मुछियाली ले गये। वहां पर सीता जी का मंदिर बनाकर आज भी पूजा पाठ होता है। बास में सीता जी यहाम से बाल्मीकि ऋर्षि के आश्रम आधुनिक कोट महादेव चली गईं। त्रेता युग में रावण भ्राताओं का वध करने के पश्चात कुछ वर्ष अयोध्या में राज्य करके राम ब्रह्म हत्या के दोष निवारणार्थ सीता जी, लक्ष्मण जी सहित देवप्रयाग में अलकनन्दा भागीरथी के संगम पर तपस्या करने आये थे। इसका उल्लेख केदारखण्ड में आता है।[क] उसके अनुसार जहां गंगा जी का अलकनन्दा से संगम हुआ है और सीता-लक्ष्मण सहित श्री रामचन्द्र जी निवास करते हैं। देवप्रयाग के उस तीर्थ के समान न तो कोई तीर्थ हुआ और न होगा।[ख] इसमें दशरथात्मज रामचन्द्र जी का लक्ष्मण सहित देवप्रयाग आने का उल्लेख भी मिलता है तथा रामचन्द्र जी के देवप्रयाग आने और विश्वेश्वर लिंग की स्थापना करने का उल्लेख है
देवप्रयाग से आगे श्रीनगर में रामचन्द्र जी द्वारा प्रतिदिन सहस्त्र कमल पुष्पों से कमलेश्वर महादेव जी की पूजा करने का वर्णन आता है। रामायण में सीता जी के दूसरे वनवास के समय में रामचन्द्र जी के आदेशानुसार लक्ष्मण द्वारा सीता जी को ऋषियों के तपोवन में छोड़ आने का वर्णन मिलता है। गढ़वाल में आज भी दो स्थानों का नाम तपोवन है एक जोशीमठ से सात मील उत्तर में नीति मार्ग पर तथा दूसरा ऋषिकेश के निकट तपोवन है। केदारखण्ड में रामचन्द्र जी का सीता और लक्ष्मण जी सहित देवप्रयाग पधारने का वर्णन मिलता है।
देवप्रयाग से जुड़ी पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान राम जब रावण का वध करके लंका से भारत वापस आ रहे थे तब ऋषिमुनि ने उन्हें एक ब्राह्मण के वध के पाप के दोष को दूर करने के लिए देवप्रयाग में भागीरथी और अलकनंदा के संगम तट पर तपस्या करने के लिए कहा था। इसलिए भगवान राम ने नदियों के इस संगम स्थल पर साधना की थी। तभी से यह स्थान पवित्र माना जाता है। इसके अलावा यह भी मान्यता है कि राजा भागीरथ ने गंगा को जब पृथ्वी पर उतरने के लिए मनाया था तब स्वर्ग से करोड़ों देवी देवता उनके साथ ही देवप्रयाग में उतरे थे। इसलिए इसे देवी देवताओं का संगम और गंगा की जन्मभूमि माना जाता है।
देवप्रयाग के बारे में रोचक तथ्य – Interesting Facts About Devprayag
- देवप्रयाग का नाम संस्कृत से लिया गया है, जहां देव का अर्थ ‘भगवान’ और प्रयाग का अर्थ ‘संगम’ होता है। इस प्रकार देवप्रयाग का अर्थ ईश्वर का संगम है।
- देवप्रयाग में एक खगोल विज्ञान वेधशाला है जिसमें 2 दूरबीनें लगी हैं। यह पं चक्रधर जोशी द्वारा स्थापित किया गया था।
- देवप्रयाग के किनारे एक ही राजमार्ग, रुद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग, नंदप्रयाग, चमोली, जोशीमठ जैसे प्रमुख स्थानों को कवर करते हुए बद्रीनाथ तक जाता है।
- देवप्रयाग में अलकनंदा शांत रूप से बहती है और भागीरथी बहुत उबड़-खाबड़ होकर बहती है और जब वे विलीन होती हैं, तो पवित्र नदी गंगा का निर्माण करती हैं।
- देवप्रयाग को सुदर्शन क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है। यहां की सबसे खास बात यह है कि यहां कौवे दिखायी नहीं देते हैं।
देवप्रयाग क्यों जाएं – Why To Visit Devprayag
देवप्रयाग को रहस्यमयी अनुभव प्राप्त करने वाले और साहसिक गतिविधियों के लिए भी उपयुक्त माना जाता है।
लोग मुख्य रूप से भगवान से आशीर्वाद लेने और चिंतन मनन एवं ध्यान करने के लिए यहां आते हैं।
नीरसता को दूर करने के लिए देवप्रयाग एक उत्तम स्थान है। यहां आप अपनी छुट्टियां बेहतर तरीके से बिता सकते हैं।
यह जगह तीर्थयात्रा के लिए भी प्रसिद्ध है इसलिए आप घर के बूढ़े सदस्यों को इस स्थान की यात्रा करा सकते हैं।
देवप्रयाग न केवल एक पवित्र स्थान है बल्कि यह साहसिक खेलों का केंद्र भी है। आप यहां एक शानदार राफ्टिंग का आनंद ले सकते हैं। हालांकि, यदि आप बहुत सारे दर्शनीय स्थलों की तलाश कर रहे हैं, तो देवप्रयाग में ये नहीं मिलेगा।
देवप्रयाग जाने का सबसे अच्छा समय – Best Time To Visit Devprayag
देवप्रयाग के सुंदर परिवेश, मंदिरों और धार्मिक एवं पवित्र स्थान होने के कारण पर्यटक इस स्थान पर साल भर आते हैं। हालांकि गर्मी के मौसम में देवप्रयाग की यात्रा करने का सबसे अच्छा समय होता है। ग्रीष्मकाल देवप्रयाग में मध्यम ठंडी जलवायु काफी सुखद होती है इसलिए आम तौर पर मार्च से मई के बीच यहां अधिक संख्या में पर्यटक आते हैं। देवप्रयाग में जुलाई से सितंबर के महीनों में भारी वर्षा होती है। इस दौरान यहां की ताजगी और कायाकल्प करने वाली हरियाली देखने लायक होती है। लेकिन चूकिं पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण भूस्खलन और बारिश की जोखिम के डर से इस मौसम में कम संख्या में पर्यटक यहां आते हैं।
लोग मुख्य रूप से भगवान से आशीर्वाद लेने और चिंतन मनन एवं ध्यान करने के लिए यहां आते हैं।
नीरसता को दूर करने के लिए देवप्रयाग एक उत्तम स्थान है। यहां आप अपनी छुट्टियां बेहतर तरीके से बिता सकते हैं।
यह जगह तीर्थयात्रा के लिए भी प्रसिद्ध है इसलिए आप घर के बूढ़े सदस्यों को इस स्थान की यात्रा करा सकते हैं।
देवप्रयाग न केवल एक पवित्र स्थान है बल्कि यह साहसिक खेलों का केंद्र भी है। आप यहां एक शानदार राफ्टिंग का आनंद ले सकते हैं। हालांकि, यदि आप बहुत सारे दर्शनीय स्थलों की तलाश कर रहे हैं, तो देवप्रयाग में ये नहीं मिलेगा।
देवप्रयाग जाने का सबसे अच्छा समय – Best Time To Visit Devprayag
देवप्रयाग के सुंदर परिवेश, मंदिरों और धार्मिक एवं पवित्र स्थान होने के कारण पर्यटक इस स्थान पर साल भर आते हैं। हालांकि गर्मी के मौसम में देवप्रयाग की यात्रा करने का सबसे अच्छा समय होता है। ग्रीष्मकाल देवप्रयाग में मध्यम ठंडी जलवायु काफी सुखद होती है इसलिए आम तौर पर मार्च से मई के बीच यहां अधिक संख्या में पर्यटक आते हैं। देवप्रयाग में जुलाई से सितंबर के महीनों में भारी वर्षा होती है। इस दौरान यहां की ताजगी और कायाकल्प करने वाली हरियाली देखने लायक होती है। लेकिन चूकिं पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण भूस्खलन और बारिश की जोखिम के डर से इस मौसम में कम संख्या में पर्यटक यहां आते हैं।
देवप्रयाग के आसपास घूमने की जगह
देवप्रयाग उत्तराखंड का एक ऐसा स्थल है जहां घूमने के लिए बहुत सारी जगहें नहीं हैं। इसलिए यदि आप देवप्रयाग की यात्रा करने जा रहे हैं तो इसके आसपास मौजूद कुछ सीमित स्थलों को देख सकते हैं।
- संगम यहां का नजारा बहुत ही अद्भुत है। यहां दो दिव्य नदियों का मिलन स्थान है जो पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है।
- दशरथशिला स्थानीय लोक कथाओं के अनुसार, माना जाता है कि राजा दशरथ ने इस स्थान पर तपस्या की थी। वह शिला आज भी मौजूद है जिसे देखा जा सकता है।
- रघुनाथजी मंदिर भागीरथी और अलकनंदा के संगम पर स्थित रघुनाथजी मंदिर दस हजार साल से अधिक पुराने भगवान राम के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है। मंदिर विशाल चट्टानों से बना है, जो देखने लायक है।
- चंद्रबदनी मंदिर यह देवी सती का मंदिर है और शक्तिपीठ में से एक है। कथाओं के अनुसार, जब भगवान शिव देवी सती की लाश को ले जा रहे थे, तब उनका धड़ इसी स्थान पर गिरा था। मंदिर बहुत छोटा है और इसमें मूर्ति की बजाय एक सपाट पत्थर रखा गया है।
- सस्पेंशन ब्रिज सस्पेंशन ब्रिज देवप्रयाग के लोकप्रिय आकर्षणों में से हैं, जो भागीरथी और अलकनंदा नदियों पर स्थित हैं। ये पुल पूरे शहर को एक सुंदर दृश्य प्रदान करता है।
- तीन धारा ऋषिकेश देवप्रयाग राजमार्ग पर स्थित एक रेस्टिंग प्लेस है। यहां नदियों की तीन धाराएं मिलती हैं जिन्हें एनएच 58 से देखा जा सकता है।
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