घिंघारू: उत्तराखंड का औषधीय और बहुउपयोगी जंगली फल
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परिचय
उत्तराखंड की पर्वतीय भूमि पर उगने वाला एक खास फल — घिंघारू — अपनी औषधीय गुणों और बहुउपयोगी प्रकृति के कारण अब चर्चा में है। इसे कुमाऊनी में "घिंगारू", गढ़वाली में "घिंघरू" और नेपाली में "घंगारू" के नाम से जाना जाता है। इसका वानस्पतिक नाम Pyracantha crenulata (टीगस नूलाटा) है, जो रोजैसी कुल का एक बहुवर्षीय झाड़ीनुमा पौधा है।

घिंघारू का प्राकृतिक आवास
यह पौधा समुद्र तल से 1700 से 3000 मीटर की ऊँचाई पर विशेषकर मध्य पश्चिमी हिमालय के क्षेत्र में पाया जाता है। इसकी झाड़ियां अक्सर पहाड़ी ढलानों, सड़कों के किनारे, घाटियों और रास्तों के किनारे उगती हैं। जून-जुलाई-अगस्त के महीनों में यह झाड़ी लाल रंग के छोटे-छोटे सेव जैसे फलों से लकदक हो जाती है।
बच्चों और पक्षियों की पसंद
स्कूल जाने वाले बच्चे, जंगलों में चारे के लिए जाने वाले ग्वाल-बाल, महिलाएं और पक्षी इस फल को बड़े चाव से खाते हैं। यह फल देखने में जितना सुंदर है, उससे कहीं अधिक इसके गुणकारी उपयोग हैं, जिनके बारे में आज भी बहुत कम लोग जानते हैं।
घिंघारू के उपयोग और औषधीय लाभ
1. हृदय के लिए अमृत
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घिंघारू के फूलों से रक्षा जैव ऊर्जा अनुसंधान संस्थान, पिथौरागढ़ ने "हृदय अमृत" नामक औषधि तैयार की है।
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यह हृदय को स्वस्थ रखने और उच्च रक्तचाप व हाइपरटेंशन जैसी बीमारियों को दूर करने में सहायक है।
2. पाचन सुधारक
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इसके फलों का सेवन पाचन क्रिया को मजबूत बनाता है और डाइजेशन संबंधी समस्याओं में राहत देता है।
3. एनर्जी और विटामिन का भंडार
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इसमें ग्लूकोज, विटामिन्स और एंटीऑक्सीडेंट्स की भरपूर मात्रा होती है जो शरीर को ताजगी और ऊर्जा प्रदान करते हैं।
4. रक्तवर्धक और सूजनरोधी
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घिंघरू का फल खून की कमी को दूर करता है और सूजन कम करने में भी उपयोगी है।
5. त्वचा और कॉस्मेटिक उपयोग
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इसकी पत्तियों से एंटी-सनबर्न क्रीम और हर्बल चाय बनाई जाती है।
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कई सौंदर्य प्रसाधनों में भी इसकी पत्तियों का उपयोग होता है।
6. स्त्री रोगों में लाभदायक
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इसकी छाल का काढ़ा स्त्री रोगों में लाभकारी होता है।
7. लकड़ी और टहनियों का उपयोग
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मजबूत लकड़ी होने के कारण इससे लठ, हॉकी स्टिक, कृषि उपकरण और खेल सामग्री बनाई जाती है।
8. डायबिटीज और पेचिश में उपयोगी
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इसके फल के चूर्ण और दही के मिश्रण का उपयोग डायबिटीज और पेचिश में होता है।
संरक्षण की आवश्यकता
आज जानकारी के अभाव, पलायन, और जलवायु परिवर्तन जैसे कारणों से यह फल हर वर्ष बर्बाद हो रहा है। यदि उत्तराखंड सरकार इसका संरक्षण करे, लोगों को इसके औषधीय गुणों के बारे में जागरूक करे और इसका संगठित उत्पादन करे, तो यह फल आने वाली पीढ़ियों के लिए स्वास्थ्य और स्वरोजगार दोनों का स्रोत बन सकता है।
निष्कर्ष
घिंघारू कोई सामान्य फल नहीं, बल्कि हिमालय का एक अमूल्य उपहार है। इसकी जड़ से लेकर पत्तियों तक हर हिस्सा औषधीय और बहुउपयोगी है। जरूरत है इसे बचाने, बढ़ावा देने और उपयोग में लाने की — ताकि यह फल हमारे समाज, स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था तीनों को लाभ पहुंचा सके।
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