सविनय अवज्ञा आन्दोलन और उत्तराखण्ड
असहयोग आन्दोलन के बाद गांधीजी ने उसकी नींव पर सविनय अवज्ञा आन्दोलन चलाया। इसका प्रारम्भ उन्होंने नमक सत्याग्रह व डांडी मार्च से किया। गढ़वाल में भी यह आन्दोलन एक सुनियोजित एवं संगठित ढंग से चलाया गया। यहाँ पर कांग्रेस कमेटी द्वारा नमक कानून के स्थान पर स्थानीय जन समस्याओं, लगान व शराब बन्दी हेतु आन्दोलन चलाया गया। नमकीन पानी के स्त्रोतों का बहिष्कार भी किया गया। आन्दोलन के संचालन के लिए रूपरेखा तैयार की गई, जिसमें लगान बन्दी आन्दोलन, शराब की दुकानों पर धरना, सार्वजनिक भवनों और स्थलों पर झंडा फहराना तथा सामूहिक सत्याग्रह कर ब्रिटिश शासन का विरोध किया गया। गढवाली सैनिकों ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन के दौरान पेशावर में अफगान पठानों पर गोली न चलाकर देशभक्ति की एक मिसाल कायम की और गढ़वाल का नाम दुनिया में अमर कर दिया। इसमें गांधीजी के अहिंसा के सिद्धान्त का पालन किया गया। इसके अलावा बेगार व जंगलात की समस्याओं से छुटकारा पाने के लिये जनता ने तिलाड़ी में आन्दोलन किया जो वांई गोलीकाण्ड के नाम से जाना जाता है। इस गोलीकाण्ड में कई लोग शहीद हो गये।
जब गांधी जी ने सामूहिक कार्यवाही के स्थान पर सीमित पैमाने पर व्यक्तिगत सत्याग्रह आन्दोलन प्रारम्भ किया। यह आन्दोलन पूर्ववर्ती आन्दोलनों की अपेक्षा कम व्यापक था। इसका उद्देश्य भारत के द्वितीय महायुद्ध में प्रवेश कराने का विरोध करना था। इस आन्दोलन के दौरान टिहरी के प्रताप हाईस्कूल के छात्रों ने छात्र हितों के लिए आन्दोलन किया था। गढ़वाल में जगमोहन सिंह नेगी प्रथम सत्याग्रही थे। गढ़वाल के विभिन्न क्षेत्रों से सत्याग्रहियों ने सत्याग्रह कर अपनी गिरफ्तारी दी। इस दौरान जन-जागरण अभियान चलाया गया।
व्यक्तिगत सत्याग्रह सम्पूर्ण गढ़वाल में जोर पकड़ रहा था तभी डोला-पालकी की समस्या के कारण गांधीजी ने 25 जनवरी 1941 को गढ़वाल के व्यक्तिगत सत्याग्रह पर प्रतिबन्ध लगा दिया। इसके बाद गढ़वाल कांग्रेस कमेटी के एक प्रतिनिधि मण्डल द्वारा आश्वासन देने के बाद ही गांधी जी ने 28 फरवरी 1941 को व्यक्तिगत सत्याग्रह से प्रतिबन्ध हटाया। राष्ट्रीय स्तर पर महात्मा गांधी द्वारा संचालित सविनय अवज्ञा आन्दोलन की गूंज गढ़वाल के पर्वतीय अंचलों में भी पहुँची। अब तक गढ़वाल में आवागमन के साधन भी सुलभ हो गये थे और संसाधनों का भी विकास हुआ था। जिससे राष्ट्रीय व स्थानीय नेताओं का ग्रामीण जनता से सम्पर्क भी आसान हुआ। गढ़वाल की जनता भी गांधीजी के इस आन्दोलन में अपना सहयोग देना चाहती थी। किन्तु गढ़वाल की अपनी कुछ स्थानीय समस्यायें भी थी। अतः सविनय अवज्ञा आन्दोलन यहाँ स्थानीय समस्याओं को हल करने के लिए चलाया गया। इनमें महात्वपूर्ण हैं
बाल सभा
सविनय अवज्ञा आन्दोलन से पहले ही गढ़वाल में देशभक्ति की भावना जन्म ले चुकी थी। सभी किसी न किसी रूप में राष्ट्रीय आन्दोलन में अपना योगदान देने को तत्पर थे। उन्ही में से एक थे- सत्य प्रसाद रतूड़ी जिन्होंने टिहरी में 10 मार्च 1929 का बालसभा की स्थापना की। इसका उद्देश्य बालकों में चरित्र निर्माण व देशभक्ति की भावनाओं को बढ़ावा देना था। बाल सभा की बैठक प्रत्येक शनिवार को होती थी। इस बैठक में देशभक्ति की कहानियाँ सुनाना, अनुशासन पालन सिखाना, भारत व अन्य विषय पर निबन्ध लिखना, भाषण व वाद-विवाद आदि कार्यक्रम होते थे। बाल-सभा के सदस्यों और नगर के गणमान्य व्यक्तियों के सहयोग से 'केसरी' नाम से पत्रिका प्रारम्भ की गयी। बालसभा के सदस्यों में जात-पात की भावना नहीं थी। उसमें नगर के सभी वर्गों के परिवार के बेटे थे। बालसभा जनसेवा भी करती थी। उसने टिहरी की एक सबसे बुरी छरोली प्रथा को अपने प्रयासों से समाप्त करा दिया था। इसमें होलिका दहन के दूसरे दिन लोग-बाग राख, कीचड़, जूते-चप्पल का प्रयोग करते थे व हुडदंग मचाते थे
गढ़वाल का ऐतिहासिक दुगड्डा सम्मेलन
दिसम्बर 1929 में कांग्रेस का लाहौर में जो अधिवेशन हुआ उसमें गढ़वाल के प्रताप सिंह नेगी, राम प्रसाद नौटियाल, देवकी नन्दन ध्यानी, कृपा राम मिश्र, जगमोहन नेगी आदि नेताओं ने भाग लिया था। वापस आकर इन्होंने गढ़वाल में भी एक सम्मेलन करने का विचार किया। अतः 1930 में दुगड्डा में राजनीतिक सम्मेलन का आयोजन किया गया। सम्मेलन में प्रताप सिंह नेगी को अध्यक्ष और कृपाराम मिश्र को स्वागत समिति का मंत्री बनाया गया। गोविन्द बल्लभ पन्त को सम्मेलन के उद्घाटन के लिये आमन्त्रित किया गया किन्तु उन्हें कुमाऊँ में नमक सत्याग्रह में भाग लेने के कारण सरकार द्वारा बन्दी बना लिया गया। प्रताप सिंह नेगी की अध्यक्षता में एक कमेटी बनायी गई। इस कमेटी में राम प्रसाद नौटियाल, देवकी नन्दन ध्यानी, कृपाराम मिश्र आदि कांग्रेस कार्यकर्ता सम्मिलित थे। समिति को 7 जून 1930 तक यह निर्णय लेने लेने को कहा गया कि गढ़वाल में सत्याग्रह किस तरह चलाया जायेगा।
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