योग ध्यान बद्री व उसका इतिहास, महत्व, कथाये, पौराणिक, लोक कथा

 योग ध्यान बद्री  व उसका इतिहास, महत्व, कथाये, पौराणिक, लोक कथा

उत्तराखंड (uttarakhand) को देवों की भूमि के रूप में पहचाना जाता है। इसका कारण यह है कि उत्तराखंड में कई ऐतिहासिक धार्मिक स्थल मौजूद हैं। इन्हीं धार्मिक स्थलों में से एक है योगध्यान बदरी मंदिर (yogdhyan badri temple)। यह मंदिर हिंदुओं के प्रसिद्ध और प्राचीन धार्मिक स्थलों में से एक है। योगध्यान बदरी मंदिर पांडुकेश्वर (pandukeshwar) में है। अलकनंदा नदी के गोविंद घाट (govind ghat) के तट पर स्थित यह धार्मिक स्थल समुद्र तल से लगभग 1,920 मीटर की ऊंचाई पर है। इस मंदिर पवित्र सप्त-बद्री समुह में शामिल है। योगध्यान बदरी मंदिर जोशीमठ से लगभग 22 किलोमीटर और हनुमान चट्टी से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर है। बदरीनाथ धाम (badrinath dham) यात्रा के दौरान यह मंदिर आता है।
योगध्यान बदरी मंदिर में भगवान विष्णु की मूर्ति एक ध्यान मुद्रा में स्थापित है। इसलिए इस धार्मिक स्थान को योग ध्यान बदरी के नाम से पहचाना जाता है। माना जाता है कि भगवान विष्णु की कांस्य की प्रतिमा को इस स्थान पर पांडवों के पिता राजा पांडु ने स्थापित किया था। कई लोगों का मानना है कि यह वही स्थान है, जहां पर पांडव पैदा हुए थे और राजा पांडु ने इस स्थान पर मोक्ष प्राप्त किया था। बदरीनाथ मंदिर के कपाट बंद होने पर भगवान बदरी की उत्सव-मूर्ति के लिए योगध्यान बदरी को शीतकालीन निवास माना जाता है। इसके अलावा यहां कुबेर और भगवान विष्णु की उत्सव मूर्ति की पूजा भी की जाती है। यहां दक्षिण भारत के पुजारी मुख्य पुजारी के रूप में कार्य करते हैं।

पौराणिक कथा

हिंदू मान्यताओं के अनुसार पांडुकेश्वर में ही पांडवों का जन्म हुआ था और उनके पिता पाण्डु का निधन भी इसी जगह पर हुआ था। पौराणिक कथा के अनुसार महाभारत का युद्ध खत्म होने के बाद अपने चचेरे भाई कौरवों को मारने का पश्चाताप करने के लिए पांडव यहां पर आए थे। पांडवों ने अपने राज्य हस्तीनापुर को अपने पोते परीक्षित को सौंप दिया और हिमालय में तपस्या करने के लिए गए थे। यहां स्थित मंदिरों की बनावट देखने में केदारनाथ धाम जैसी ही लगती है, लेकिन ये मंदिर आकार में काफी छोटे है। इस मंदिर के आसपास का इलाका मन्त्रमुग्ध कर देने वाला है।

कैसे पहुंचें: 

बायय एयर ट्रेन द्वारा सड़क के द्वारा

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