कल्पेश्वर मंदिर पंच केदार 'कल्पनाथ', वर्ष भर खुले रहते हैं यहाँ भोले का द्वार..
सीमांत जनपद चमोली की प्रसिद्ध ऊर्गम घाटी में हेलंग से लगभग 13 किमी की दूरी पर स्थित है कल्पेश्वर मंदिर। कल्पेश्वर मंदिर तक सडक पहुंचने से पंच केदारों में सबसे सरल और सुगम यात्रा है यहाँ की जहां बमुश्किल से 100 मीटर की ही पैदल दूरी तय करनी पडती है। समुद्र तल से 2200 मीटर (7220 फीट) की ऊचाई पर से स्थापित है भोले का ये धाम। नन्दीकुंड ट्रैकिग एंड एडवेंचर ग्रुप हिमालय देवग्राम उर्गम घाटी के सीईओ और लोकसंस्कृति कर्मी रघुवीर सिंह नेगी नें बताया की कल्पेश्वर मंदिर पांडवों द्वारा बनाया गया था। पत्थर की गुफा में बना हुआ कल्पेश्वर मंदिर की वास्तुकला उत्तर भारतीय शैली में है। यह एकमात्र पंच केदार मंदिर है, जो पूरे वर्ष भर आम श्रद्धालुओं के लिए खुला रहता है। पंचकेदारों में भोले के दर्शन करनें के लिए हर साल हजारों श्रद्धालु देश विदेश से यहाँ पहुंचते हैं। सावन के महीने तो श्रद्धालुओं की भारी भीड होती है। खासतौर पर सावन के सोमबार को यहाँ भोले के भक्तों का तांता लगा रहता है।
कल्पेश्वर मंदिर धार्मिक आस्था!
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार पांडवों पर गोत्र हत्या का पाप लगा। इस पाप से मुक्ति के लिए पांडवों ने भगवान शिव की आराधना की। मगर भगवान शिव पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे। पांडवों ने भगवान शिव का पीछा किया तो उत्तराखंड के पंचकेदारों में भगवान शिव ने पांडवों को अपने शरीर के पांच अलग-अलग हिस्सों के दर्शन कराए। ऐसा माना जाता है कि कल्पेश्वर में भगवान शिव की जटा प्रकट हुई थी। इसलिए इस मंदिर में भगवान शिव की ‘जटा’ की पूजा की जाती है। इस कारण ही भगवान शिव को जतधर या जतेश्वर भी कहा जाता है। जटा शब्द का अर्थ होता है ‘बाल’।
कल्पेश्वर मंदिर की मान्यता!
मान्यता है कि देवताओं की प्रार्थना पर भगवान शिव ने यहीं से समुद्र मंथन की पूरी योजना बनाई थी। भगवान शिव के त्रीनेत्र से निकले जल से समुद्र मंथन हुआ था, जिसका वर्णन केदारखंड के 53 से 57 वें अध्याय में मिलता है। कल्पेश्वर मंदिर के पास एक कुंड है, जिसके जल से भगवान शिव का जलाभिषेक किया जाता है। मान्यता है कि यह जल शिव भगवान के नेत्र से निकला है, इसलिए यह जल पवित्र है। कहते हैं कि शिवरात्रि के दिन जो भी भक्त सच्चे हृदय से जो कुछ मांगता है भगवान शिव उसकी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। कल्पेश्वर मंदिर के आचार्य विजय प्रसाद सेमवाल कहते हैं कल्पनाथ धाम पंचकेदारों में अंतिम केदार हैं। इसी स्थान पर देवराज इंद्र व महर्षि दुर्वासा ऋषि ने भी तपस्या की थी। उर्गम घाटी को उत्तर के कांचीपुरी के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि यहां पर भगवान शिव और भगवान विष्णु एक ही जगह रहते हैं। दूसरा दक्षिण में कर्नाटक में है।
बाबा का धाम प्राकृतिक सौंदर्य का खजाना!
कल्पेश्वर धाम का समूचा परिवेश इतना अलौकिक है कि, यहां के सौन्दर्य को शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता है। मंदिर जाते समय पूरे ऊर्गम घाटी की बेपनाह सुंदरता हर किसी का मन मोह लेती है। कल्पगंगा के किनारे स्थित इस मंदिर में आनें से शांति और शुकुन मिलता है। मंदिर के समीप बहने वाली कल्पगंगा का कल कल करता शोर मन को आनंदित कर देता है जबकि मंदिर से 50 मीटर की दूरी पर पहाड़ से गिरने वाला खूबसूरत पानी का झरना यहाँ आनें वाले हर श्रद्धालु को मोहित कर देता है। कल्पेश्वर मंदिर से 5 किमी की दूरी पर फ्यूंला नारायण मंदिर और 10 किमी की दूरी पर बंशीनारायण मंदिर स्थित है जहां हर साल रक्षाबंधन और जन्माष्टमी को विशाल मेला भी लगता है। दूर दूर से इस दिन श्रद्धालु यहाँ पहुंचते हैं।
कल्पेश्वर मंदिर कैसे पहुंचे यहाँ!
ऋषिकेश से बस या छोटी गाडी में 240 किमी हेलंग तक और फिर हेलंग से 13 किमी कल्पेश्वर तक वाहन से। जिसके बाद मात्र 100 मीटर पैदल दूरी तय करके भोले के पांचवें धाम में पहुंचा जा सकता है। रात्रि विश्राम और खाने पीने के लिए ऊर्गम में ठहरने की व्यवस्था है
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