हिलजात्रा महोत्सव
कुमाऊँ, पिथौरागढ़ जनपद में कुछ उत्सव समारोह पूर्वक मनाये जाते हैं,
हिलजातरा उत्सव जो कि पूरी तरह कृषि से सम्बन्धित माना गया है, की शुरुआत नेपाल से हुई थी। किंवदंती है कि नेपाल के राजा ने चार महर भाईयों की वीरता से खुश होकर यह जातरा (जो नेपाल में इन्द्र जात्रा के रूप में मनाई जाती है) भेंट स्वरुप कुमाऊं के चार महर भईयौं, कुंवर सिंह महर, चैहज सिंह महर, चंचल सिंह महर और जाख सिंह महर को प्रदान की थी। इस जात्रा के साथ-साथ इस महोत्सव में काम आने वाले बिभिन्न मुखौटे तथा हल इत्यादि वस्तुएं भी प्रदान की थीं। जिसे लेकर ये चारों महर भाई कुमाऊं में स्थित पिथौरागढ़ लौट आये और सर्वप्रथम कुमौड़ गाँव में ‘हलजातरा’ के नाम से उत्सव मनाया. तब से लेकर आज तक यह प्रतिवर्ष भादो मास में गौरा महोत्सव पर्व के आठ दिन बाद मनाई जाती है। कालान्तर में इसे हिलजातरा नाम से सम्बोधित किया जाने लगा। इस उत्सव का आरम्भ और समापन बड़े हर्ष और उल्लास के साथ किया जाता है। कुमौड़ के अतिरिक्त भी जिले के कई अन्य गांवों, यथा- अस्कोट और देवलथल में भी इस पर्व को मनाया जाता है किन्तु लखिया भूत के पात्र का प्रदर्शन केवल कुमौड़ गाँव और देवलथल के उड़ई गांव में ही किया जाता है। सुबह से ही हिलजातरा में स्वांग भरने वाले अपने लकड़ी के मुखौटों को सजाने – चमकाने में लगे रहते हैं। दोपहर में कुमौड़ गांव में डेढ़ सौ साल पुराने झूले के पास दुकानें सजनी शुरू हो जाती हैं। सर्वप्रथम गाँव के सामने मुखिया आदि लाल झंडों को लेकर गाजे-बाजे व नगाडों के साथ कोट (ग्यारहवीं शताब्दी में बना स्थान जहाँ पर महर थोकदारों ने अपना आवास बनाया था) के चक्कर लगते हैं। फिर घुड़सवार का स्वांग भर कर एक व्यक्ति काठ, घास-फूस के घोड़े में आता है और अपने करतब दिखता है फिर स्वांग दिखने का सिलसिला शुरू हो जाता है।
हुक्का-चिलम पीते हुए मछुआरे, शानदार बैलों की जोड़ियां, छोटा बल्द (कुमाउनी भाषा में बैल को बल्द कहा जाता है) , बड़ा बल्द, अड़ियल बैल (जो हल में जोतने पर लेट जाता है), हिरन चीतल, ढोल नगाडे, हुडका, मजीरा, खड़ताल व घंटी की संगीत लहरी के साथ नृत्य करती नृत्यांगानाएं, कमर में खुकुरी और हाथ में दंड लिए रंग-बिरंगे वेश में पुरुष, धान की रोपाई का स्वांग करते महिलायें ये सब मिल कर एक बहुत ही आकर्षक दृश्य प्रस्तुत करते हैं जिसे लोग मंत्रमुग्ध हो निहारते हैं।
अचानक ही गावं से तेज नगाडों की आवाज आने लगती है। यह संकेत है हिलजात्रा के प्रमुख पात्र ‘लखिया भूत’(वीरभद्र) के आने का। सभी पात्र इधर-उधर पंक्तियों में बैठ जाते हैं और मैदान खाली कर दिया जाता है। तब हाथों में काला चंवर लिए काली पोशाक में, गले में रुद्राक्ष तथा कमर में रस्सी बांधे लखिया भूत बना पात्र वहां आता है। सभी लोग लखिया भूत की पूजा अर्चना करते हैं और घर-परिवार, गाँव की खुशहाली के लिए आशीर्वाद मांगते हैं। लखिया भूत सब को आशीर्वाद देकर वापस चला जाता है। फिर प्रत्येक पात्र धीरे-धीरे वापस जाते हैं। भले ही आज का वर्तमान दौर संचार क्रांति का दौर बन चुका हो, किन्तु यहाँ के लोगों में अपनी सांस्कृतिक विरासत को बचाने की भरपूर ललक दिखी देती है। कम से कम गाँव में मनाये जाने वाले इन उत्सवों से तो यही प्रतीत होता है। इससे लोगों के बीच अटूट धार्मिक विश्वास तो पैदा होता ही है साथ ही लोक कलाओं का दूसरी पीढियों में आदान-प्रदान भी होता है।
इस पर्व का आगाज भले ही महरों की बहादूरी से हुआ हो, लेकिन अब इसे कृषि पर्व के रूप में मनाये जाने लगा है।हिलजात्रा में बैल, हिरन, चित्तल और धान रोपती महिलाएं, यहां के कृषि जीवन के साथ ही पशु प्रेम को भी दर्शाती हैं। समय के साथ आज इस पर्व की लोकप्रियता इस कदर बढ़ गई है कि हजारों की तादाद में लोग इसे देखने आते हैं।
पिथौरागढ़ में स्थानीय उद्योग की वस्तुओं का विक्रय भी होता है। राजकीय सीमान्त उद्योग के द्वारा कई वस्तुओं का निर्माण होता है। यहाँ के जूते, ऊन के वस्र और किंरगाल से बनी हुई वस्तुओं की अच्छी मांग है। सैलानी यहाँ से इन वस्तुओं को खरीदकर ले जाते हैं।
पिथौरागढ़ में सिनेमा हॉल के अलावा स्टेडियम औरनेहरु युवा केन्द्र भी है। मनोरंजन के कई साधन हैं। पिकनिक स्थल हैं। यहाँ जर्यटक जाकर प्रकृति का आनन्द लेते हैं।
पिथौरागढ़ में हनुमानगढ़ी का विशेष महत्व है। यह नगर से २ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहाँ नित्यप्रति भक्तों की भीड़ लगी रहती है। एक किलोमीटर की दूरी पर उल्का देवी का प्रसिद्ध मन्दिर है। लगभग एक किलोमीटर पर राधा-कृष्ण मन्दिर भी दर्शनार्थियों का मुख्य आकर्षण है। इसी तरह एक किलो मीटर पर राय गुफा और एक ही किलोमीटर की दूरी पर भटकोट का महत्वपूर्ण स्थान है।
पिथौरागढ़ सीमान्त जनपद है। इसलिए यहाँ के कुछ क्षेत्रों में जाने हेतु परमिट की आवलश्यकता होती है। पिथौरागढ़ के जिलाधिकारी से परमिट प्राप्त कर लेने के बाद ही सीमान्त क्षेत्रों में प्रवेश किया जा सकता है। पर्यटक परमिट प्राप्त कर ही निषेध क्षेत्रों में प्रवेश कर सकते हैं। चम्पावत तहसील के सभी क्षेत्रों में और पिथौरागढ़ के समीप वाले महत्वपूर्ण स्थलों में परमिट की आवश्यकता नहीं होती
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