कुमाऊँ के प्रशासनिक सुधार और विकास में लुशिंगटन व बैटन का योगदान

कुमाऊँ के प्रशासनिक सुधार और विकास में लुशिंगटन व बैटन का योगदान

कुमाऊँ के तृतीय कमिश्नर के रूप में कर्नल जार्ज गोबान की नियुक्ति 1836 में हुई। हालांकि, गोबान का प्रशासनिक अनुभव सीमित था, और उनके कार्यकाल के दौरान कई शिकायतें सामने आईं। इन शिकायतों पर ध्यान देते हुए, बोर्ड ऑफ रेवन्यू के वरिष्ठ सदस्य रॉबर्ट मार्टिन्स बर्ड ने कुमाऊँ में सुधार की आवश्यकता को रेखांकित किया। बर्ड ने कुमाऊँ को उत्तरी पश्चिमी प्रान्त के अनुरूप एक व्यवस्थित प्रांत बनाने के लिए कई सुझाव दिए, जिसमें बंदोबस्त, कर्मचारी निर्धारण, और कुमाऊँ के लिए एक स्थानीय कानून बनाने की आवश्यकता थी। इन सुझावों के आधार पर कुमाऊँ को एक स्थिर प्रांत बनाने की प्रक्रिया आरंभ हुई।


गोबान के कार्यकाल में प्रमुख सुधार:

  1. दास प्रथा का अंत: गोबान के प्रशासन में दासों को बेचने, महिलाओं और विधवाओं को बेचने पर रोक लगाई गई। इससे समाज में एक नया चेतना जागृत हुआ।

  2. गोवध पर रोक: गोवध की अनुमति को समाप्त कर दिया गया, और स्थानीय लोग अब इसके खिलाफ मुखर हो गए थे।

  3. न्याय की 'दिव्य' व्यवस्था का अंत: गोवध और दास प्रथा जैसे सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ इस सुधार के कारण कुमाऊँ में सामाजिक बदलाव हुआ।

लुशिंगटन का योगदान (1838-1848):

कुमाऊँ के पहले कमिश्नर के रूप में जॉर्ज लुशिंगटन ने अप्रैल 1838 में कार्यभार संभाला और अपने दस वर्षों के कार्यकाल में कई महत्वपूर्ण सुधार किए। उन्होंने नैनीताल शहर की स्थापना की और राज्य के प्रशासनिक ढांचे को मजबूत किया। उनके कार्यकाल में राजस्व, वन प्रबंधन, शिक्षा, सड़क निर्माण और भाबर तराई प्रबंधन में महत्वपूर्ण कार्य किए गए।

  1. नए बंदोबस्त का प्रारंभ: लुशिंगटन ने कुमाऊँ में बंगाल और 1833 के उत्तर-पश्चिमी प्रान्त के रेगुलेशन के अनुरूप एक नया बंदोबस्त लागू किया, जिसे 'बैक प्रोसेस' बंदोबस्त कहा जाता है। इस बंदोबस्त में भूमि की उर्वरता, कृषकों की क्षमता और वित्तीय स्थिति के आधार पर राजस्व तय किया गया।

  2. राजस्व प्रशासन में सुधार: लुशिंगटन के मार्गदर्शन में, कुमाऊँ में राजस्व प्रशासन की बुनियादी संरचना स्थापित की गई। इसके तहत कई निर्देश जारी किए गए और 'कुमाऊँ प्रिंटेड रूल्स' को लागू किया गया, जो आज भी प्रभावी हैं।

  3. शिक्षा में सुधार: 1839 में, श्रीनगर में एक स्कूल की स्थापना की गई, और बद्री-केदार यात्रा मार्ग पर एक असिस्टेंट सर्जन की नियुक्ति की गई।

  4. सड़क और संपर्क मार्गों का निर्माण: लुशिंगटन के नेतृत्व में, 1845 में खैरना-नैनीताल मार्ग का निर्माण शुरू हुआ, और बागेश्वर में गोमती पर पुल का निर्माण हुआ। इसने कुमाऊँ के संपर्क मार्गों में सुधार किया और राज्य को एक नई दिशा दी।

बैटन का कार्यकाल (1848-1852):

लुशिंगटन की मृत्यु के बाद, बैटन ने कुमाऊँ के कमिश्नर के रूप में कार्यभार संभाला। उनके कार्यकाल में भी कई महत्वपूर्ण सुधार हुए, जैसे:

  1. राजस्व बंदोबस्त: बैटन ने खसरा सर्वेक्षण आधारित राजस्व बंदोबस्त लागू किया और प्रशिक्षित पटवारियों की तैनाती की।

  2. सड़क निर्माण और डाक विभाग: उन्होंने सड़क निर्माण और डाक बंगलों के निर्माण पर ध्यान दिया। इसके अलावा, पुलिस और न्याय प्रशासन में भी सुधार किए गए।

  3. नैनीताल को मुख्यालय बनाना: बैटन ने नैनीताल को कमिश्नरी का मुख्यालय बनाने के प्रयास किए और इसे एक प्रमुख पर्यटक स्थल बनाने के लिए कई सुधारों की शुरुआत की।

निष्कर्ष:

लुशिंगटन और बैटन के कार्यकाल में कुमाऊँ में कई प्रशासनिक, सामाजिक और आर्थिक सुधार हुए, जिन्होंने ब्रिटिश शासन के तहत कुमाऊँ को एक बेहतर प्रांत बनाने में मदद की। इन सुधारों ने न केवल कुमाऊँ के प्रशासनिक ढांचे को मजबूत किया, बल्कि कुमाऊँ के विकास की दिशा भी तय की। उनके द्वारा किए गए प्रयासों का असर आज भी कुमाऊँ के प्रशासन और समाज पर देखा जा सकता है।


FAQs (Frequently Asked Questions)

1. कुमाऊँ के पहले कमिश्नर कौन थे और उनका योगदान क्या था?

कुमाऊँ के पहले कमिश्नर जॉर्ज लुशिंगटन थे, जिनकी नियुक्ति अप्रैल 1838 में हुई थी। उन्होंने नैनीताल शहर की स्थापना की, राजस्व, वन प्रबंधन, शिक्षा, सड़क निर्माण और भाबर तराई प्रबंधन में महत्वपूर्ण कार्य किए। उनके कार्यकाल में राजस्व प्रशासन को बेहतर बनाने के लिए 'कुमाऊँ प्रिंटेड रूल्स' लागू किए गए।


2. कर्नल जार्ज गोबान के कार्यकाल में क्या प्रमुख सुधार हुए थे?

कर्नल जार्ज गोबान के कार्यकाल में दास प्रथा का अंत हुआ, गोवध पर रोक लगी और महिलाओं तथा विधवाओं को बेचने की प्रथा को समाप्त किया गया। इसके अलावा, 1836 में काशीपुर को मुरादाबाद और तराई क्षेत्र को रुहेलखण्ड में शामिल किया गया था।


3. लुशिंगटन ने कुमाऊँ में किस प्रकार के प्रशासनिक सुधार किए थे?

लुशिंगटन ने कुमाऊँ में राजस्व प्रशासन में सुधार किए, जिसमें 'बैक प्रोसेस' बंदोबस्त लागू किया। इसके अलावा, उन्होंने कुमाऊँ के लिए नए नियम बनाए और 'कुमाऊँ प्रिंटेड रूल्स' लागू किए। उन्होंने नैनीताल शहर की स्थापना की और संपर्क मार्गों का निर्माण किया।


4. बैटन के कार्यकाल में क्या प्रमुख सुधार हुए थे?

बैटन के कार्यकाल में खसरा सर्वेक्षण आधारित राजस्व बंदोबस्त लागू किया गया और प्रशिक्षित पटवारियों की तैनाती की गई। इसके अलावा, सड़क निर्माण, डाक बंगलों की स्थापना और पुलिस व न्याय प्रशासन में सुधार किए गए। बैटन ने नैनीताल को कमिश्नरी का मुख्यालय बनाने की दिशा में भी कार्य किया।


5. कुमाऊँ में शिक्षा के क्षेत्र में कौन सा महत्वपूर्ण कदम उठाया गया था?

लुशिंगटन के कार्यकाल में 1839 में श्रीनगर में एक स्कूल की स्थापना की गई, और बद्री-केदार यात्रा मार्ग पर एक असिस्टेंट सर्जन की नियुक्ति की गई। इसके अलावा, 1848 में चिकित्सा क्षेत्र में सुधार के लिए एक डिस्पैन्सरी कमेटी गठित की गई।


6. कुमाऊँ में सड़क निर्माण और संपर्क मार्गों का क्या महत्व था?

लुशिंगटन और बैटन के कार्यकाल में सड़क निर्माण पर विशेष ध्यान दिया गया, जिससे कुमाऊँ के विभिन्न क्षेत्रों के बीच बेहतर संपर्क स्थापित हुआ। 1845 में खैरना-नैनीताल मार्ग का निर्माण शुरू हुआ और 1848 में बागेश्वर में गोमती पर पुल का निर्माण हुआ, जिसने यात्रा और परिवहन में सुधार किया।


7. कुमाऊँ के लिए 'कुमाऊँ प्रिंटेड रूल्स' क्या थे और इनका क्या महत्व था?

'कुमाऊँ प्रिंटेड रूल्स' वे संशोधित नियम थे, जिन्हें लुशिंगटन के नेतृत्व में कुमाऊँ में लागू किया गया था। ये नियम कुमाऊँ के प्रशासन को अधिक व्यवस्थित और पारदर्शी बनाने के लिए बनाए गए थे, और इनका प्रभाव आज भी देखा जाता है।


8. बैटन द्वारा किए गए सुधारों का कुमाऊँ पर क्या प्रभाव पड़ा था?

बैटन के सुधारों ने कुमाऊँ के प्रशासन को मजबूत किया, जिसमें राजस्व प्रबंधन, पुलिस व्यवस्था, और सार्वजनिक सेवाओं में सुधार किया गया। इसके अलावा, बैटन ने नैनीताल को कमिश्नरी का मुख्यालय बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए।

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