मायादेवी मंदिर हरिद्वार की कथा

 मायादेवी मंदिर हरिद्वार की कथा


हरिद्वार को मायापुरी नाम से भी पुकारा जाता है। इसका कारण यह है कि यहां भगवती मायादेवी का मंदिर स्थित है। मायादेवी भगवती सती का ही एक स्वरूप हैं जिन्होंने अपने पिता दक्ष प्रजापति द्वारा किए गए यज्ञ में खुद सहित भगवान शिव को न बुलाए जाने पर यज्ञाग्रि द्वारा देहोत्सर्ग कर दिया था-

विश्वोद्भवस्थिति लयदिषु हेतु मेकं,
गौरीपति विदित तत्व मनंत र्कीतम।
मायाश्रमं विगत मायामङ्क्षचतप रूपं,
बोध स्स्वरूपममलहि शिव नमामि॥

भारत की सुप्रसिद्ध मोक्षदायिनी सप्तपुरियों में से एक मायापुरी है। गरुड़ पुराण के अनुसार सप्तपुरियां निम्न हैं-

अयोध्या, मथुरा, माया, काशी, काञ्ची, अवन्तिका, पुरी, द्वारावती चैव, सप्तैता मोक्षदायिका।

वर्तमान समय में विशेष प्रसिद्ध नाम हरिद्वार है क्योंकि कनखल, ज्वालापुर, भीमगोड़ा नाम की पुरियां सम्मिलित हैं। इनके केन्द्रीय स्थान मायापुर अर्थात प्राचीन मोक्षदायिका मायापुरी स्थित है। शेष अन्य चारों स्थान इसकी अंगभूता उपनगरियों के समान हैं। इसका नाम मायापुरी इसलिए भी है कि इसकी अधिष्ठात्री भगवती मायादेवी हैं।

इस मायापुरी क्षेत्र में पुरातन काल से ही तीन शक्तिपीठ इस प्रकार से स्थित हैं कि उनके द्वारा एक त्रिकोण बन जाता है। इस त्रिकोण के उत्तरी कोण में मंसादेवी, दक्षिण कोण में शीतला देवी और पूर्वी कोण में चंडी देवी स्थित हैं। इस त्रिकोण के मध्य में पूर्वाभिमुख स्थित होने पर वामपाश्र्व अर्थात् उत्तर दिशा में अधिष्ठात्री भगवती मायादेवी, दक्षिण पाश्र्व में माया के अधिष्ठाता भगवान शिव दक्षेश्वर महादेव के रूप में स्थित हैं।

यह मंदिर जिन भगवती माया देवी का है उनका वेदांत दर्शन की अनिवर्चनीय (मिथ्यारूप) माया से कोई संबंध नहीं है। यह तो परमब्रह्म परमात्मा भगवान शिव से अभिन्न उनकी स्वरूप युक्त पराशक्ति है। इसके विषय में आद्य शंकराचार्य ने कहा है-

शिव: शक्त्या युक्तो यदि भवति शक्त:

न चेदेवं देवों न खलु कुशल स्पङ्क्षदत मपि, अतस्त्वभाराध्यां हरिहर विरिञ्चादिभिरवि, प्रणंतु स्तो तुम वा कथमकृत पुण्य: प्रभवति॥

प्रजापति दक्ष ने यज्ञ तो कनखल में किया था मगर भगवती सती ने वर्तमान मायादेवी मंदिर पर देहोत्सर्ग किया, ऐसी मान्यता है। हरिद्वार जाने पर मायादेवी मंदिर जो नगर के मध्य में स्थित है, उनके दर्शन अत्यंत पुण्यमयी माने गए हैं।

मंदिर के आरम्भ में लोहे के सरिए व लकड़ी में जड़ी पिरोल है। वहां से प्रवेश करने पर लंबा-चौड़ा प्रांगण आता है। बाईं ओर आवासीय कक्ष स्थित है तथा मुख्य पिरोल से सटे हुए अन्य तीन दिशाओं में भी आवासीय व भोजन इत्यादि के कक्ष बने हुए हैं। मायादेवी मंदिर के ठीक दाहिनी ओर श्रीदत्तात्रेय चरणपादुका मंदिर स्थित है जिसे दूसरे शब्दों में समाधि स्थल भी कह सकते हैं।

मायादेवी मंदिर का प्रारंभ लोहे की रेलिंगों से होता है। तीन पंक्तियां व्यवस्थित ढंग से मंदिर के आगे भक्तगण प्रवेश कर सकें, इस हेतु अवस्थित हैं। रेलिंग के फर्श पर कालीन बिछे हुए हैं। मंदिर के दाहिनी ओर श्रीदत्तात्रेय जी के मंदिर के आगे अनेक प्रकार के पौधे अवस्थित हैं। मंदिर में जाने के लिए छ:-सात पैडिय़ां लांघनी पड़ती हैं। जहां मंदिर का मुख्य प्रवेश स्थल आता है जो बिना फाटक का है। उसके पश्चात बड़ा प्रांगण आता है जिसे सभामंडप कहते हैं।

सभामंडप में तीन बड़े-बड़े घंटे लटके हुए हैं। सभामंडप के बाईं ओर विद्युत नगाड़े हैं। नगाड़ों के ठीक पास में सोफेनुमा झूला है। झूले की पिछली दीवार पर माता के विविध रूपों के चित्र अंकित हैं। झूले में जो विग्रह अवस्थित हैं उसके तीनों ओर तीन तकिए समान स्वरूप लगाए हुए हैं। झूले के मुख्य पूजनीय विग्रह के पास ही एक अन्य विग्रह भी अवस्थित है। उनके नीचे माता के स्वरूपों से संबंधित मंत्र संगमरमर पर उत्कीर्ण हैं।

मंदिर में माता के विविध रूपों की मूर्तियां बंद तस्वीरनुमा स्थिति में चारों ओर अवस्थित हैं। उनके नीचे माता-पिता के स्वरूपों संबंधित मंत्र संगमरमर पर उत्कीर्ण हैं। मंदिर में इसी प्रकार से माता के विविध रूपों की तथा अन्य देवी-देवताओं की बड़ी-बड़ी तस्वीरें टंगी हुई हैं। मंदिर की परिक्रमा गैलरी काफी लम्बी-चौड़ी है।

मंदिर की सायंकालीन आरती लगभग पौने घंटे चलती है। उस समय एक अलग ही परम्परा का निर्वाह होता है। आरती में मुख्य पुजारी धूपियों तथा कई बत्तियों वाले धूपियों से आरती करते हैं।

मंदिर परिसर में स्थित माता के विविध रूपों के आगे भी आरती की जाती है। आरती के दौरान मुख्य पुजारी के पदचरणों में भक्तगण आसननुमा बिछावन बिछाते जाते हैं। एक से दूसरे स्थान पर आरती करते समय बिछावन उस स्थान पर बिछाते रहते हैं जहां आरती की जाती है।

मंदिर परिसर में भक्तगण मुख्य पुजारी के पदचरणों में आसननुमा बिछावन बिछाते रहते हैं और हटाते रहते हैं। आरती के बाद जयकारे इत्यादि लगाए जाते हैं।

मंदिर के गर्भगृह में कामाख्या देवी, कालीमाता, दुर्गावती, मायादेवी माता का विग्रह अवस्थित है। इन सभी विग्रहों के ऊपर छोटे-छोटे छत्र लटके हुए हैं। इन विग्रहों के पीछे चित्रकारी की हुई है। मायादेवी माता विग्रह लगभग तीन फुट ऊंचा जान पड़ता है। माता का चेहरा सिंदूरी है, सिर पर चांदी का मुकुट अवस्थित है। माता के गले में विविध प्रकार के हार तथा मालाएं अवस्थित हैं। माता सहित सभी विग्रहों के एक जैसे रंग के वस्त्र अवस्थित हैं।

माता के विग्रह के दोनों ओर बड़े-बड़े त्रिशूल खड़ी अवस्था में हैं। यह मंदिर बहुत प्राचीन है। किंवदंती के अनुसार 11वीं सदी में खुदाई के दौरान माता का मुख्य विग्रह प्रकट हुआ था।

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