मंसूरी सीजन, हिमालय क्रान्तिकाल,द ईगल,

मंसूरी सीजन, हिमालय क्रान्तिकाल,द ईगल,

मंसूरी सीजन, 1872


सन् 1872ई0 में कोलमेन व नार्थम की साझेदारी में यह पत्र मसूरी से प्रकाशित हुआ। 1874 में कोलमेन द्वारा मंसूरी छोड़ने के साथ ही 'मंसूरी सीजन' नाम का यह समाचार पत्र सदा के लिए बन्द हो गया। अपने अत्यंत अल्प जीवनकाल में यह पत्र कोई खास प्रभाव नहीं छोड़ गया।

हिमालय क्रान्तिकाल, (1875-76)

उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध समाचार पत्र मेफिसलाइट के बन्द होने के पश्चात् इसके प्रतिनिधि के रूप में जॉन नार्थम ने 'हिमालय क्रान्तिकाल' नाम के समाचार पत्र का सम्पादन व प्रकाशन किया। कुलड़ी (मंसूरी) में स्थित प्रेस में छपने वाले इस पत्र ने 'मेफिसलाइट' के प्रतिनिधि की भूमिका को बखूबी निभाया तथा पाठकों पर अपना प्रभाव छोड़ते हुए अपार प्रसिद्धि प्राप्त की। कुछ समय तक नियमित मंसूरी से निकलने के पश्चात् इसका प्रकाशन मेरठ से किया जाने लगा।

द ईगल, 1878

मौर्टन के सम्पादन व प्रकाशन में 'द ईगल' नामक समाचार-पत्र सन् 1878 में छपना शुरू हुआ। आंग्ल भाषी यह पत्र काफी लोकप्रिय था। इसका अपना एक अलग ही प्रभाव था। फलतः इसके प्रसार में भी लगातार वृद्धि होती रहीं। 7-8 वर्ष नियमित निकलने के पश्चात् सन् 1885 में यह पत्र सदा के लिए बन्द हो गया।

उत्तराखण्ड में पत्रकारिता के इस 39 वर्ष के दूसरे चरण में अत्यधिक उतार-चढ़ाव देखने को मिलते हैं। इस काल की पत्रकारिता का मूल उद्देश्य स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए किये जाने वाले संघर्ष का प्रचार-प्रसार करना था। इस युग के समाचार पत्रों ने अंग्रेजों की स्वार्थपूर्ण नीति को जनता के सम्मुख लाकर उन्हें स्वतंत्रता के लिए प्रेरित करने का कार्य बखूबी किया। शक्ति, गढ़वाली, गढ़वाल समाचार, स्वाधीन प्रजा, तरूण कुमाऊँ, अभय, कास्मोपोलिटन, गढ़देश, संदेश, जागृत जनता, कर्मभूमि जैसे दैनिक व साप्ताहिक इस युग में प्रकाशित होने वाले  समाचार पत्रों में प्रमुख थे। इस युग में प्रकाशित समाचार पत्रों का संक्षिप्त परिचय अग्रवत् है-

  • रियासत टिहरी (पाक्षिक) 1901

सन् 1901 में टिहरी रियासत के तत्कालीन राजा कीर्तिशाह पंवार ने राजधानी टिहरी में रियासत का पहला मुद्रणालय स्थापित किया। इस प्रिन्टिंग प्रेस में 'रियासत टिहरी' नामक एक पाक्षिक पत्र प्रकाशित किया गया। यह पत्र एक प्रकार से रियासत का गजट मात्र था। इसमें छपने वाले समाचार जन समस्याओं से कोसो दूर थे। इसमें रियासत से जुड़े नियम-कानूनों की सूचना प्रमुखता से प्रकाशित होती थी। कुछ समय उपरान्त यह बन्द हो गया।

  •  द मसूरी टाइम्स, 1900


बीसवी सदी के प्रारम्भिक दिनों में कुलड़ी की मेफिसलाइट प्रेस (मंसूरी) से प्रकाशित यह समाचार-पत्र अपने युग का सर्वाधिक लोकप्रिय व लम्बे समय तक चलने वाला अखबार था। प्रसिद्ध लेखक एफ० बॉडीकार ने इसे छपवाना प्रारम्भ किया था। बाद में जे० एच० जॉन्सन इसके स्वामी व सम्पादक हुए। सन् 1947 में यह समाचार पत्र बन्द हो गया। ('द मंसूरी टाइम्स' के सम्बन्ध में अधिक जानकारी इसी पुस्तक में पूर्व में दी जा चुकी है।) वर्तमान में यह समाचार पत्र अपनी पुरानी लोकप्रियता के साथ हिन्दी में प्रकाशित हो रहा है।

  • गढ़वाली, 1905

'गढवाली' के प्रकाशन से पूर्व प्रकाशित होने वाले अधिकांश समाचार-पत्र राजशाही व अंग्रेज नीतियों के प्रचारक की भूमिका में रहे। उत्तराखण्ड में एक उद्देश्य पूर्ण पत्रकारिता के प्रारम्भ का श्रेय 'गढवाली' मासिक को जाता है। पंडित विश्म्भरदत्त चन्दोला के द्वारा 'गढ़वाली' का प्रकाशन ऐसे समय में किया गया, जब देश में हर दिशा में स्वाधीनता व पराधीनता के विचारों के मध्य संघर्ष प्रारम्भ हो चुका था। सम्भवतः यह किसी भी अच्छे समाचार-पत्र के लिए परीक्षा की घड़ी थी, जब स्वाधीनता या पराधीनता किसी का भी खुलकर समर्थन करना किसी भी समाचार पत्र की दीर्घायु के लिए उचित नहीं था। अतः अपने प्रथम चरण में 'गढ़वाली' ने मध्यम मार्ग का अनुकरण किया। पत्र के सम्पादक विश्म्भरदत्त चन्दोला पत्रकारिता में अधिक उग्र नहीं थे। वे नरम व सुधारवादी विचारों के समर्थक माननीय गोखले के अनुयायी थे। दूसरे दशक तक गढ़वाली सामान्य अखबार की भूमिका निभाता रहा। इसमें क्षेत्रीय समाचार, स्थानीय लेखकों की रचनाएं तथा सुधारवादी लेखों को प्रमुखता से प्रकाशित किया जाता था। इसके अतिरिक्त यातायात साधनों में सुधार, बाल विवाह, बहुविवाह, कन्या विक्रय जैसी सामाजिक कुरीतियों का भी गढ़वाली ने पुरजोर विरोध किया।

वह दौर दासता का था तथा टिहरी रियासत की जनता इस समय दोहरी दासता को झेल रही थी। ऐसे में अखबार के माध्यम से टिहरी जनता की आवाज को बुलन्द किया जा सकता था किन्तु सम्पादक इसके दुष्परिणामों से भी भली-भांति अवगत थे। अतः उन्होंने अखबार का आदर्श भी बना रहे और राजभक्ति पर भी आंच न आये, की नीति का बखूबी निर्वहन किया।

तीसरे दशक के प्रारम्भ होते-होते देशभर में राष्ट्रीयता के विचारों का सैलाब सा उमड़ चुका था और सभी देशभक्त व जनता प्रत्येक अखबार की ओर आशा भरी निगाहों से देखने लगे। फलतः अब विश्म्भरदत्त चन्दोला को भी अपने समाचार पत्र की रीति-नीति को बदलना पड़ा। उन्हें स्थानीय समाचारों के साथ-साथ राष्ट्रीय समाचारों को भी प्रमुखता देनी पड़ी। इस प्रयास में 'गढ़वाली' ने लेखकीय व सम्पादकीय कॉलम के माध्यम से स्वाधीनता आन्दोलन की खबरों को प्रमुखता दी तथा राष्ट्रीय नेताओं के विचारों को प्रमुखता से छापा जाने लगा। परन्तु फिर भी अपने सम्पूर्ण जीवन काल में 'गढ़वाली' कभी भी आक्रामक नहीं रहा। वह क्रान्ति की नीति पर नहीं वरन् गांधीवाद की सत्याग्रही नीति पर चलने वाला समाचार पत्र था।

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