उत्तराखण्ड का इतिहास

 ( उत्तराखण्ड का इतिहास ) History of Uttarakhand 

👉 पुराणों में केदारखण्ड व मानसखण्ड से मिलकर उत्तराखण्ड राज्य बना है।
👉  कुमाँऊ एवं गढ़वाल "मौर्य साम्राज्य" अंग थे।
👉  छठवीं शताब्दी में यहाँ पौरव वंश का शासन था।
👉  सातवीं शताब्दी में यहाँ कत्यूरी राजवंश की स्थापना हुई।
कत्यूरी शासकों की राजधानी बागेश्वर जिले के समीप स्थित कार्तिकेयपुर नामक स्थान में थी।
👉 कत्यूरी राजवंशों ने कत्यूरी युग में कुमाऊं - गढ़वाल पर सात राजवंशों ने शासन किया।
(1) निम्बर का राजवंश बागेश्वर, पाण्डकेश्वर, और कंडारा लेख
से ज्ञात।
(2) पालवंश बैजनाथ लेखों से।
(3) सलोणदित्य का राजवंश पाण्डुकेश्वर और बालेश्वर लेख से।
(4) बसन्तदेव का राजवंश बागेश्वर लेख से।
(5) खर्पर देव का राजवंश बागेश्वर लेख से।
(6) असन्ति देव का राजवंश।
(7) क्राचल्लदेव और अशोक चल्ल का शासन।

👉  कत्यूरियों के बाद कुमाँऊ में चन्द व गढ़वाल में पवार शासको ने शासन की बागडोर संभाली।
👉  17 वीं शताब्दी में सन् 1771 में प्रधुमनशाह का गढ़वाल व कुमाऊँ सहित सम्पूर्ण उत्तराखण्ड में राज हो गया।
👉   उत्तराखण्ड का अन्तिम शासक प्रधुमनशाह था।
👉  1790 में कुमाऊँ नेपाली गोरखाओं के अधीन रहा
👉   1803 में गढ़वाल में भी गोरखाओं का शासन था।
👉   नेपाली शासक अमशाह और अंग्रेजो के मध्य (लेफ्टिनेन्ट कर्नल गार्डनर) के मध्य युद्ध के बाद समझौता हुआ, तब गोरखाओं ने 27 अप्रैल,
👉  1815 को एक संधि में हस्ताक्षर हुए जिस में नेपाली गोरखा कुमाऊँ के सम्पूर्ण क्षेत्र को छोड़ने के लिए तैयार हो गये।
👉  3 मई 1815 को कुमाऊँ व गढ़वाल में अंग्रेजों का अधिकार हो गया।
👉  सन 1816 में अंग्रजो और गोरखाओं के बीच संगोली की सन्धि हुई।
सिंगोली संधि    इस संधि के अनुसार टिहरी रियासत सुदर्शनशाह का प्रदान की गई और शेष का नॉन रेगुलेशन प्रांत बनाया गया जो  उत्तरी पूर्वी प्रांत का भी रहा।
👉 नॉन रेगुलेशन प्रांत सन् 1891 में खत्म कर दी।
👉  सनु 1901 में जब संयुक्त प्रान्त आगरा एवं अवध बना तो उत्तराखण्ड को इस में विलय कर दिया गया।
सुगौली सन्धि 19वीं सदी के शुरुआती दौर में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी और नेपाल के मध्य हुई थी। यह सन्धि 4 मार्च, 1816 ई. को सम्पन्न हुई। सन्धि में यह प्रावधान था कि, काठमांडू में एक ब्रिटिश प्रतिनिधि को नियुक्त किया जायेगा। इसके साथ ही ब्रिटेन को अपनी सैन्य सेवाओं में गोरखाओं की नियुक्ति का भी अधिकार मिल गया।

1816 ई. में हुई इस सन्धि के मसौदे पर नेपाल की ओर से राजगुरु गजराज मिश्र और अंग्रेज़ों की ओर से लेफ़्टिनेंट कर्नल पेरिस ब्रैडशॉ ने दस्तखत किए।
इस सन्धि के साथ ही अंग्रेज़ों व नेपालियों के बीच वर्ष 1814 ई. से चली आ रही जंग का अंत हो गया।
सन्धि के तहत नेपाल को अपना एक-तिहाई इलाका 'ब्रिटिश भारत' के अधीन कर देना पड़ा।
इस इलाके में पूर्वी छोर पर स्थित दार्जिलिंग व तिस्ता; दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र में बसे नैनीताल; पश्चिमी छोर पर बसे कुमाऊँ, गढ़वाल के अलावा कुछ तराई इलाके भी शामिल थे।
सन्धि के अनुसार काठमांडू में एक ब्रिटिश प्रतिनिधि की नियुक्ति तथा ब्रिटेन की सैन्य सेवाओं में गोरखाओं की नियुक्ति का मार्ग भी प्रशस्त हो गया।
वर्ष 1923 ई. में सुगौली सन्धि के स्थान पर 'सतत शांति व मैत्री संधि' के नाम से एक नई संधि की गई।

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