पहाड़ी कुछ ऐश कभी इस तरह था मेरा गाँव

 कभी इस तरह था मेरा गाँव

पठाल के ढके मकान.थोड़ी सी गरीबी.पर आत्मीयता की कमी नही.दुख सुख में सब एक। एक घर का चूल्हा जला तो करछी में आग के कोयले ले कर दुसरा अपना चूल्हा जलाता.इस प्रकार कई घरों के चूल्हे जलते। किसी के घर में दूध नही तो थोडा थोडा दूध गिलास में भर कर पडोसी उस घर में पहुचाते.और इस घर में इतना दूध हो जाता कि न सिर्फ इस घर के बच्चे डटकर पीते वरन कभी कभी पर्या पर छा छुगली भी होती।

Simkhet PauriGarhwal

एक की बेटी की शादी होती तो पूरा गां.जुट जाता था। याद आता है.अब जंगल भीसमाल झील से मालू के पत्ते तोड कर लान  और शादी के लिए पत्तल पुडे बनाना।

हंसी मजाक.ठटठा लगाना.नाराज होना फिर मान भी जाना। पुंगडों में सवेरे ही बैल.हल लेकर जाना.एक दो स्यू लगाना कि कभी हल की फाल का निकल जाना.कभी हल ताडी तो कभीकभी नसूडू टूट जाना तो कभी पडवा बल्द के नखरे सहना.झूझला जाना तभी मां का रोटी सब्जी लैकर पुंगडे मैं आना.साथ में कंडी में बैलों के लिए एक पूली

घास भी लाना.एक लोटे पानी में हाथ भी धोना चर चरी भुजी के साथ रोटी खाना और उतने ही पानी से प्यास बुझाना.हां मां की लायी रोटीयों में एक रोटी के दोनो बैलों को खिलाना न भूलना सब याद। 

तीज त्योहार पर सबका जुडना और होली में रंग मस्त होना भाभियो के साथ  ठसाक मजाककभी कभी कालेज गोल कर जीरो बैड में लूकना भी याद है।या नहाने के लिए धडाम दोपहर में बाल खिला गदरा या बैतरणी जाना कैसे भूलें।छोटे थे तो स्कूल के कपड़े उतार कर बैतरणी में बग्वती काटना अचानक पानी लेने भाभीयों का वहां आना तो मारे शर्म के कुंड गदरे से बाहर ही न आना।घर आ कर मां बवा जी उनके द्वारा की गई शियाकयत पर कांडली या भ्यंकुल की स्यटगी में मार खाना आज भी याद है।

कभी जाती का अहंकार या धृणा का न होना देखा और भोगा है। गुलाबू बोडा की कडकती आवाज में झाड खाना। आलम दास दिदा की हडताल और उनसे हाथ जोडकर निवेदन करना  कि बावा जी या मां  को न बताना सव आज भी याद है।

हमारे गांव में सभी फसलें कभी खूब होती थी। वो ग्यूं की दैं करना. सटटी का मांडना. उडद के लगुले को खीस के डंडो से कूटना कौन भूलेगा। लम्बी कहानी है। मेरे गांव की 

पल अब ये नगर बन गया है सीमेंट के डिजाइन दार कुछ बड़े स कुछ  कुछ छोटे कुछ आलीशान बिजली. पंखे.प्रिज.टीवी. स्मार्ट फोन. जाने कितनी गाड़िया.बाईक अब गांव के लोग ही नही हर आेर के लोगो ने अपना लिया है।इस पहाड को पर मेरे  छुटपन का पहाड जाने कहां हर्च गया  खो गया गांव से नगर-नगर से नगर पालिका. बन गया है। ये बड़ा शहर पर में ढूढता हूँ अभी अभी वो छोटा सा गांव जहां कभी वो सब कुछ था जो अब बडे होने पर जाने कहां खो गया |

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