तीन झरने वाला छोटा केदारेश्वर
रतलाम (मप्र) से आठ किमी दूर पहाड़ी में चट्टानों के बीच बनी प्राकृतिक गुफा में स्वयं प्रगट शिवलिंग है। इस गुफा का पता 500 साल पूर्व चला था। यहां तक पहुंचने के लिए पहले नदी पार करनी पड़ती है, फिर पहाड़ी की चढ़ाई पूरी कर पहुंचा जा सकता है।
छोटे केदारेश्वर में तीन झरने है। इसमें एक 50 फीट, दूसरा 40 फीट और तीसरा 30 फीट नीचे है। इन तीनों झरनों का पानी 50 मीटर के बाद एक साथ मिल जाता है। इस स्थान को संगम कहते हैं। इन सभी का पानी सरवन के आगे बुंदन नदी मिलता है। इस नदी के जरिए यहां बांसवाड़ा के पास माही नदी में इसका पानी पहुंचता है।
भूगोलवेत्ताओं का मत है कि इस घाटी का निर्माण हिमालय उत्थान के बाद हुआ था। वजह, यहां पर अवसादी चट्टानें पाई जाती हैं। ये रेत, बालू, चिका व मिट्टी से बनी हैं, जो हिमालय से जो नदियों के द्वारा लाए गए अवसादों से बनी हैं जिन्हें हम बलुआ पत्थर के रूप से पहचान कर सकते हैं। कुछ चट्टानें ज्वालामुखी के दरारी उद्भेदन से निकले लावा से बनी हैं, जिनकी पहचान हम बेसाल्ट चट्टानों के रूप में कर सकते हैं, कालांतर में जब इस घटी के आसपास पृथ्वी के आतंरिक शक्तियों के हलचल के कारण भ्रंश उत्पन्न हो गए हैं और यह स्थान नीचे बैठ गया।
यह ऐतिहासिक स्थल सैलाना के पहाड़ी क्षेत्र में है। 281 साल पहले 1736 में यहां के पहाड़ों में सैलाना (रतलाम जिले में पड़ने वाली एक पुरानी रियासत) के महाराज जयसिंह ने मंदिर का निर्माण करवाया था। ‘महाकेदारेश्वर' के रूप में महाराज जयसिंह ने ही इस मंदिर का नामकरण भी किया था। बाद में अन्य राजाओं ने यहां कई और निर्माण कार्य करवाए। बारिश के मौसम में यहां घूमने कई पर्यटक पहुंचते हैं। हरी-भरी घास में लिपटे खूबसूरत पहाड़, झरने, नदियों के संगम का विहंगम दृश्य देखते ही बनता है।
हर हर महादेव...
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