पेशावर कांड, नमक सत्याग्रह,
पेशावर कांड
पेशावर कांड की घटना ने गढ़वाल में सविनय अवज्ञा आन्दोलन को मजबूत गति प्रदान की। सन् 1930 के वर्ष में गढ़वाल की तीसरी बटालियन के वीर सपूतों के बलिदान और साहस के कारण गढ़वाल का नाम दुनिया के इतिहास में लिखा गया। उत्तर-पश्चिम सीमा प्रान्त के मुसलमान खान अब्दुल गफ्फॉर खाँ के साथ सविनय अवज्ञा आन्दोलन में भाग ले रहे थे। इस आन्दोलन को कुचलने के लिए ब्रिटिश सरकार ने इस क्षेत्र में सेनाओं की विभिन्न इकाईयाँ तैनात कर दी। इसमें गढ़वाल राइफल्स के सैनिको की टुकड़ी भी पेशावर में थी। अंग्रेज कप्तान रैकेट हिन्दू और मुसलमानो के मध्य वैमनस्य पैदा कर संघर्ष करवाना चाहता था। गढ़वाली सैनिकों को भी इस बात का पता लग चुका था। इसलिये चन्द्र सिंह गढ़वाली ने अपने सभी साथियों को इस बात की सूचना दी कि ब्रिटिश सरकार उनका उपयोग मुसलमानो के विरूद्ध कर सकते है अतः आप सब सचेत रहे। 23 अप्रैल, 1930 को गढ़वाली सेना की एक कम्पनी पेशावर के किस्साखानी बाजार में तैनात कर दी गयी।
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इस दिन शहर में कांग्रेस का एक जुलूस ब्रिटिश शासन व्यवस्था के खिलाफ नारे लगाते हुए जा रहा था। खान अब्दुल गफ्फर खाँ कांग्रेस के इस आन्दोलन का नेतृत्व कर रहे थे। जुलूस में हिन्दू-मुस्लिम व सभी नर-नारी सम्मिलित थे। दूसरी ओर नगर के काबुली फाटक पर भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के प्रदर्शनकारी खड़े थे। अंग्रेज कप्तान रैकेट ने सभा कर रही जनता को वहाँ से हटने को कहा। साथ ही कहा कि यदि वे नहीं हटे तो उन पर गोलियाँ चलायी जायेगी। कप्तान रैकेट ने हुक्म दिया 'गढ़वाली थ्री राउण्ड फायर" । बांयी ओर से आवाज आयी 'गढ़वाली सीज फायर। ये आवाज थी हवलदार चन्द्र सिंह गढ़वाली की। रायफलें जमीन पर खड़ी हो गयी। सैनिकों की इस बगावत के बाद अंग्रेजो ने स्थिति को अपने नियन्त्रण में करते हुए मशीनगनों से भीड़ पर गोली चला दी। कई लोग घायल हुए व कई मारे गये। गढ़वाली सैनिकों की वर्दी उतारकर उन्हें थाने पहुँचा दिया गया। गढ़वाली सैनिकों की ओर से बैरिस्टर मुकुन्दीलाल ने मुकदमें की पैरवी की। 13 जून, 1930 ई0 को चन्द्र सिंह गढ़वाली को पेशावर काण्ड का नायक ठहराते हुए आजन्म कारावास की सजा दी और 'काला पानी' भेज दिया। 3 सैनिक सरकारी गवाह बन गये। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने 26 जनवरी 1931 को पूर्ण स्वाधीनता दिवस को स्मरण पत्र प्रस्तुत किया, इसमें गढ़वाल राईफल्स के सैनिकों का आभिवादन करते हुए प्रस्ताव पारित किया गया कि उन्होंने अपना जीवन खतरे में डालकर अपने देशवासियों पर गोली चलाने से इंकार किया। उनके प्रति कांग्रेस कृतज्ञता व गौरव प्रकट करती है। रजनी पामदत्त लिखते है कि अपने देशवासियों पर गोली न चलाने की जो मिसाल गढ़वाली सैनिकों ने कायम की उसके विषय में कम से कम यह तो कहा जा सकता है कि गांधी जी के सर्वाधिक प्रिय सिद्धान्त अहिंसा का यह सफल प्रदर्शन था।
• नमक सत्याग्रह
गांधी जी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन का प्रारम्भ नमक सत्याग्रह से किया। 12 मार्च 1930 को गांधी जी ने साबरमती आश्रम से डाण्डी तक पद यात्रा की। उनके साथ 78 सत्याग्रही थे। उनमें सबसे छोटा सत्याग्रही 16 साल का विट्ठल लीलाधर ठक्कर था। वह आश्रम के स्कूल का विद्यार्थी था और सबसे बड़े स्वयं गांधी जी 60 साल के सत्याग्रही थे। गांधीजी के डांडी मार्च के सहयोगियों में कुमाऊँ से जयोतिराम कांडपाल और भैरवदत्त जोशी भी शामिल थे।
नमक सत्याग्रह के आरम्भ होने पर देश के विभिन्न भागों में कई जन आन्दोलन शुरू हो गये। गढ़वाल में गांधीजी के इस आन्दोलन को स्थानीय जन समस्याओं को दूर करने के लिये चलाया गया व नमक को सत्याग्रह का प्रतीक माना गया। ब्रिटिश गढ़वाल में नमकीन पानी के स्त्रोतों का बहिष्कार कर यहाँ नमक सत्याग्रह आन्दोलन का शुभारम्भ किया गया। इसी अवधि में मात्र उदयपुर (पौड़ी गढ़वाल) के सत्याग्रहियों ने लूनी जल स्त्रोत को आन्दोलन का प्रतीक मानकर नमक बनाया और कानून का उल्लंघन किया।
सर मालकम हैली जो संयुक्त प्रान्त के गर्वनर थे का 'अमन सभा' के अनुरोध पर पौड़ी आना हुआ। यहाँ के अधिकारियों व अमन सभाईयों ने उन्हें यह बताना चाहा कि गढ़वाल में तो कांग्रेस मर चुकी है। जयानन्द भारती उन दिनों बाहर गये हुए थे। उनसे यह बात बर्दाश्त नहीं हुई। 'अमन सभा' की स्थापना नवम्बर 1930 को प्रशासन के सहयोग से लैन्सडाउन में हुई थी। इन्हें प्रशासन ने कांग्रेस के प्रतिपक्ष में स्थापित किया था। जयानन्द पुलिस के सख्त पहरे की भी परवाह न करते हुए पौड़ी के विशाल दरबार में किसी प्रकार घुस गये और ठीक गर्वनर के सामने राष्ट्रीय तिरंगे झण्डे का प्रदर्शन करके यह सिद्ध कर दिया कि "कांग्रेस अमर है, और गढ़वाल में भी जीवित है।"
सन् 1931 में गढ़वाल और कुमाऊँ जनपद के कांग्रेसी कार्यकर्ताओं का सम्मेलन नैनीताल में आयोजित किया गया। इस अधिवेशन में 200 प्रतिनिधि व 100 से अधिक कार्यकर्ता सम्मिलित थे। आंग्ल शासन की विसंगतियों के विरोध में जनशक्ति को कांग्रेस मंच पर संगठित करने के उद्देश्य से कुमाऊँ परिषद् की नैनीताल, अल्मोड़ा तथा गढ़वाल की शाखाओं का कांग्रेस के साथ पूर्ण विलय करने का निश्चय किया गया। काली कुमाऊँ की सल्ट पट्यिों में लगान बन्दी की आवाज उठी। सल्ट क्षेत्र में नशाबंदी, विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार, स्वदेशी का प्रयोग और तंबाकू विरोधी आंदोलन चलाया गया। धर्मसिंह नाम के मालगुजार का तो तंबाकू का पूरा भण्डार जला दिया गया।
नमक सत्याग्रह में भी इस क्षेत्र ने बढचढ कर हिस्सा लिया और चमकना, उभरी एवं हटुली में नमक बनाया गया। 1930 में मालगुजारों ने सामुहिक इस्तीफे दिए। ये लोग ही पटवारी व्यवस्था की रीढ थे। अतः पटवारी ने गलत रिपोर्ट भेजनी शुरू कर दी। सन 1930 को डिप्टी कलेक्टर 5080 जवानो के साथ दमन को निकल पड़ा। खुमाड़ से कुछ दूर नयेड़ नदी तट पर नरसिंगबगड़ में उसने कैंप लगाया और ढुंगला गांव को घेर कर बीमार एवं बुढों की पिटाई कर दी क्योंकि अधिकांश उस समय खेतों में थे। स्वतंत्रता सेनानी बचेसिंह के घर की कुर्की कर दी। जब यह सूचना लोगों को मिली तो रणसिंगा बज गया और सैकड़ों लोग लाठी डंडो से लैस नयेड़ तट पहुँच गए। अंग्रेज कप्तान तो गोली चलाने पर आमादा था किन्तु डिप्टी कलेक्टर के कहने से रुक गया। यहां तक की डिप्टी कलेक्टर 5 रुपये मुआवजा देने को भी तैयार हो गया। इसके बाद मौलेखाल की सभा में जनता को अत्याचारों से बचाने के लिए गिरफ्तारी देने का निर्णय हुआ एवं ठेकेदार पानसिंह ने पहली गिरफ्तारी दी।
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