जगतचंद ने अपने अल्पशासन काल में ही इतनी लोकप्रियता अर्जित

जगतचंद
जगतचंद ने अपने अल्पशासन काल में ही इतनी लोकप्रियता अर्जित


जगतचंद ने अपने अल्पशासन काल में ही इतनी लोकप्रियता अर्जित की कि इतनी किसी भी अन्य चंद नरेश को नसीब नहीं हुई। इसके काल में राज्य आर्थिक रूप से समृद्ध था। राजा स्वयं प्रजा हित के कार्यों में अत्यधिक रूचि लेता था। इसी कारण इस काल को विद्वानों ने 'कुमाऊँ का स्वर्ण काल' की संज्ञा दी है।

जगतचंद अपने पिता के काल में गढराज्य के विरूद्ध युद्ध में भाग ले चुका था। उसके बरम ताम्रपत्र से ज्ञात होता है कि ज्ञानचंद को बाधानगढ़ जीतने में सफलता वीरेश्वर जोशी वैधकुड़ी की जासूसी के कारण मिली थी। इसलिए ज्ञानचंद ने उसे रौत में जमीन प्रदान की थी। किन्तु किसी अग्निकांड में ताम्रपत्र नष्ट हो जाने के कारण जगतचंद ने पुनः दूसरा ताम्रपत्र वीरेश्वर जोशी के पुत्रों को निर्गत किया था।

अपने राज्यभिषेक के प्रथम वर्ष ही उसने गढराज्य के लोहबागढ़ और बधानगढ़ पर सफल आक्रमण किया। इसके पश्चात् उसने गढराज्य की राजधानी श्रीनगर की ओर रूख किया। श्रीनगर के इस भीषण युद्ध में गढ़नरेश फतेशाह परास्त हुआ। श्रीनगर पर अधिकार कर जगतचंद ने भंयकर लूटपाट की। अपने प्रतिनिधि को श्रीनगर का शासन सौंप वह वापस आ गया। इस बीच फतेशाह ने अपनी शक्ति में वृद्धि की। फतेशाह ने जगतचंद के प्रतिनिधि को परास्त कर श्रीनगर पर पुनः अधिकार किया और एक बड़ी सेना के साथ कत्युर घाटी पर आक्रमण कर दिया। फतेहशाह ने गरूड़ व बैजनाथ घाटी विजित करने पश्चात् गरसार ग्राम बद्रीनाथ को दान दिया।

जगतचंद के अपने समकालीन मुगल बादशाह से मृदु सम्बन्ध थे। वह नियमित दिल्ली दरबार भेंट भेजता था। अन्ततः उसकी चेचक से दुःखद मौत हुई।

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