उत्तराखण्ड राज्य आंदोलन मंसूरी कांड

मंसूरी कांड

उत्तराखण्ड राज्य आंदोलन के इतिहास में पहला पुलिस हत्याकांड खटीमा में हुआ। खटीमा कांड के विरोध में सारे पहाड़वासियों ने अपना विरोध प्रदर्शित किया। इसी क्रम में मंसूरी में 2 सितम्बर को आंदोलनकारियों ने मौन जुलूस निकालने की तैयारी की थी, किन्तु शान्ति भंग की आशंका से पुलिस के घटना स्थल पर कब्जा और आंदोलनकारियों की गिरफ्तारी ने शांत जनता को आक्रोशित कर दिया। लोग गिरफ्तार आंदोलनकारियों को मुक्त करने एवं धरना स्थल पुलिस कब्जे से खाली कराने की मांग करने के लिए सड़कों पर उतर आए। आंदोलन स्थल पर पुनः एक बार असामाजिक तत्वों ने गनहिल की तरफ से कुछ पत्थर उछाले जो न केवल पुलिस बल्कि स्थल पर मौजूद आंदोलनकारियों पर भी पड़े। पुलिस ने बिना चेतावनी यहाँ भी लाठियां बरसानी, अश्रु गैस दागनी शुरू कर दी। इस घटनाक्रम में 6 लोग मारे गए, स्वयं क्षेत्राधिकारी घायल हुए जिन्होंने समय पर मेडिकल सुविधा न मिलने के कारण बाद में दम तोड़ दिया।

उत्तराखण्ड राज्य आंदोलन मंसूरी कांड 

इसके अगले दिन मंसूरी में कर्फ्यू लगा दिया गया। इस घटना के औचित्य पर स्वयं परगनाधिकारी का अदालत को दिया बयान था जिसमें उन्होंने कहा कि पी.ए.सी के जवानों ने बिना आर्डर फायरिंग की एवं घटना के पश्चात राइफल तानकर उनसे फायरिंग ऑर्डर पर हस्ताक्षर करवा लिए"। कालान्तर में मानवाधिकार संगठनों की जाँच में भी पुलिस की कार्यप्रणाली पर ऊँगली उठाई गई। बहरहाल पृथक् राज्य आंदोलन की कड़ी में प्रशासन की गैर जिम्मेदारना कार्यवाही का यह दूसरा नमूना था।

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